” मांजी, वो कल मम्मी को चेकअप के लिए ले कर जाना है। पापा की तबियत भी ठीक नहीं है तो क्या मैं कल अपने मायके चली जाऊं??” रेणु ने अपनी सासु माँ सुभद्रा जी से इजाजत मांगते हुए कहा।
रेणु की मायके जाने की बात सुनते ही सुभद्रा जी का मुंह बन गया ।
“बहू अब, इस उम्र में तो ये सब लगा ही रहेगा । ये तो रोज का हीं काम है… अब मुझे हीं देख लो… इस दाएं पैर में मुआ इतना दर्द हो रहा है कि पूछो मत…… सोच रही थी बहू से कहूंगी की थोड़ी मालिश कर दे.. लेकिन बहू को तो अपने माता पिता की सेवा से ही फुर्सत नहीं मिलती । आजकल की बहूएं ये भी नहीं जानती कि असली पुण्य तो सास- ससुर की सेवा से ही मिलता है।” सुभद्रा जी अपने पैरों को मसलते हुए बोलने लगीं।
सास की बात सुनकर रेणु का चेहरा उतर गया। हर बार मायके जाने के नाम पर सुभद्रा जी ऐसे ही कोई ना कोई छींटाकशी करती रहती थीं लेकिन कम से कम रेणु का इतना हक तो बनता ही था कि हारी बीमारी में तो अपने माता-पिता के पास जा हीं सकती थी। लेकिन इस बार भी सुभद्रा जी ने खुद की तकलीफ़ को ऊपर रखते हुए मना कर दिया।
रात को रेणु का उतरा चेहरा देखकर उसके पति रमन ने पूछ लिया ,” क्या बात है रेणु ?? तुम कुछ उदास लग रही हो!!”
” रमन, क्या शादी के बाद एक लड़की का अपने मायके के प्रति कोई फर्ज नहीं रह जाता !! क्या सिर्फ सास ससुर की सेवा से हीं पुण्य की प्राप्ति होती है ??” रेणु ने भी रमन के सवाल पर सवाल दाग दिया ।
रमन ने अचरज से रेणु की तरफ देखा। वो अपनी मां के स्वभाव से वाकिफ था। उसे समझते देर ना लगी आज फिर सास बहू के बीच कुछ बात हो गई है । उसने मुस्कुराते हुए कहा ,” तुम ऐसा क्यों बोल रही हो? क्या मां ने आज भी कुछ कहा ??”
” रमन, मेरे पापा की तबियत ठीक नहीं है और मां को भी चेकअप के लिए ले कर जाना है। उनका सुगर लेवल काफी बढ़ गया है। मैंने सोचा कि मां को लेकर मैं चली जाऊं .. लेकिन मांजी सोचती हैं कि ये सब बस बहाना है। अब भईया भी शहर से बाहर रहते हैं ऐसे में मैं नहीं देखूंगी तो कौन देखेगा ?? मानती हूं मां जी की तबियत भी ठीक नहीं है लेकिन आप तो हैं ना मांजी के पास.”
” अच्छा… तो ये बात है !! चलो कोई बात नहीं। एक काम करो तुम मां के पास रहो। तुम्हारी मम्मी को मैं चेकअप के लिए ले जाऊंगा। मां की बात भी रह जाएगी और इसी बहाने सास- ससुर की सेवा का थोड़ा पुण्य मुझे भी प्राप्त हो जाएगा।”
रमन ने हंसते हुए कहा तो रेणु के चेहरे पर भी सुकून आ गया। सच में यदि रमन मम्मी को लेकर जाएंगे तो मम्मी पापा को बहुत अच्छा लगेगा। उन्हें भी बेटे की कमी महसूस नहीं होगी।
दूसरे दिन रमन रोजाना की तरह ही तैयार होकर निकल गया। रेणु ने भी एक बार भी मायके जाने की बात नहीं कही तो सुभद्रा जी अपनी जीत पर खुश थीं। लेकिन जब वो रेणु को खुश देख रही थीं तो उन्हें ये बात भी हजम नहीं हो रही थी कि मायके जाने से मना करने पर भी बहू आखिर खुश कैसे है?? और तो और बेटे से भी सिफारिश नहीं लगवाई !!
सारा दिन इसी उहापोह में बीत गया। शाम को जब रमन घर वापस आया तो रेणु ने आतुर होते हुए पूछ लिया ,” रमन, मम्मी की रिपोर्ट कैसी आई है?? पापा मम्मी दोनों ठीक तो हैं ना ?? ,,
“हां हां रेणु , सब ठीक है । बस थोड़ा सुगर लेवल बढ़ा हुआ था तो डाक्टर ने दवाईयां और खाने पीने का परहेज़ बताया है ।” रमन बोला ।
बेटे बहू की बात सुनकर सुभद्रा जी को काटो तो खून नहीं ।
” रमन, तू इसकी मां को डाक्टर के पास ले कर गया था !!” सुभद्रा जी ने झटाक से पूछा ।
“हां मां , आप हीं तो कहती हैं ना कि सास ससुर की सेवा से बड़ा पुण्य मिलता है .. तो फिर मैंने सोचा थोड़ा पुण्य आपका ये बेटा भी कमा ले। रेणु यहां आपकी सेवा करके पुण्य कमा रही थी और मैं वहां.” रमन ने शरारती अंदाज में कहा ।
सुभद्रा जी के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था। ” हां , हां … लेकिन भला दामाद से कौन सेवा करवाते हैं। वो तो मैंने बस ऐसे ही कह दिया था। बहू तूं ही चली जाना अगली बार जाना हो तो । इस तरह रमन की आफिस का हर्जाना करवाने की क्या जरूरत थी? मैं तुझे मना थोड़े ही करती हूं।”
रमन और रेणु एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुरा रहे थे। वो समझ गए थे कि अगली बार जरूरत पड़ने पर मां कभी रेणु को मम्मी पापा के पास जाने से नहीं रोकेगी क्योंकि एक बेटे की मां से शायद ये कभी हजम नहीं हो सकता कि उसका बेटा बहू के माता-पिता के आगे पीछे घूमता रहे । आखिर बेटे की मां तो दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहती है । बेटा भी सिर्फ अपना रहे और बहू भी ससुराल की हीं हो कर रह जाए।
लेखिका : सविता गोयल।