“सास हो तो ऐसी” –  कविता भड़ाना

घर का माहौल आज बड़ा बोझिल सा हो रहा था  कांता जी कई दिनों से ये बदलाव महसूस तो कर रही थी की दोनों बहुएं आपस में ना तो बात कर रही है और ना ही पहले की तरह घर के कामों में खुशी खुशी सहयोग ही कर रही है,पर उन्हें समझ नही आ रहा था कि बात क्या है….. आज जब उनके पति शंकरदयाल जी अपने दोनो बेटो के साथ अपनी – अपनी दुकानों पर निकल गए तो कांता जी ने दोनों बहुओं को आवाज देकर अपने पास बुलाया और सीधे बोली “कई दिनों से देख रही हूं तुम दोनो खींची – खींची सी रहती हो… ना ही आपस में बात कर रही हो….

आखिर बात क्या है?…क्या कोई तनाव तुम्हे परेशान कर रहा है या कोई और बात है… तुम दोनों आज अपने मन की बात मुझ से कह डालो और दोनों बहुओं के सर पर प्यार से हाथ रख दिया…

कई दिनो से दिल में एक गुब्बार लिए घूम रही दोनो बहुओं को जैसे ही प्यार भरा स्पर्श मिला वैसे ही बड़ी बहु के आंसू निकल पड़े और रोते – रोते बोली ..  

“माजी आप ने हमेशा मुझे बेटी जैसा मान दिया है, शादी करके जब ससुराल में कदम रखा तो बड़ी घबराहट थी की कैसे होगा सब,  मुझे तो घर के कामों और खाना बनाने का भी अंदाजा नहीं था पर आपने मुझे प्यार से सब कुछ सिखाया लेकिन साल भर से छोटी बहु के आ जाने से आपने मुझे रसोई के कार्यों से दूर ही कर दिया.. क्या में इतना बुरा खाना बनाती हूं….

कांता जी को हंसी आ गई वो कुछ बोलती उससे पहले छोटी बहु मोटी मोटी आंखों में आसूं भरकर बोली… 

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“माजी जब से में ससुराल आई हूं तभी से देख रही हूं की आपने बड़ी भाभी को बाहर का सारा काम संभालने की जिम्मेवारी दी हुईं है…बाजार का, अपने बच्चो को स्कूल लाने ले जाने का , कही भी जाना हो तो दीदी गाड़ी लेकर तैयार रहती है… माना की ससुर जी, जेठ जी और मेरे पति देव सुबह के निकले देर रात तक ही घर आ पाते है और ऐसे में हम महिलाओं की ही जिम्मेवारी बनती है घर और बाहर दोनों जगह के काम देखने की, लेकिन दीदी को सिर्फ बाहर का और मुझे सिर्फ घर का काम ही देखना, आखिर ऐसा “भेदभाव” क्यों????…

ओह!!तो ये बात है कांता जी ने मुस्कुरा कर कहा…”अच्छा अब ये बताओ भेदभाव वाली बात तुम दोनो के दिमाग में कैसे आई भला?? कांता जी ने पूछा… जबकि ये दोनो कामों को करने में अभी हफ्ते भर पहले तक तो तुम दोनो को कोई दिक्कत नही थी…

“जी माजी मुझे तो बुआ जी ने बोला था की बड़ी बहु क्यों सारा दिन बाहर के कामों में खुद को उलझाए रखती हो 

धूप हो, बारिश हो या कड़ाके की ठंड तुम्ही लगी रहती हो” बड़ी बहु बोली….

“मुझे भी कुछ ऐसा ही बुआ जी ने ही बोला था की छोटी बहु क्यों सारा दिन रसोई घर के कामों में उलझी रहती हो, बड़ी बहु को देखो सारा दिन बाहर रहती है और उसे कोई कुछ नही कहता”…

 “अब समझ आया ये सारा जहर बुआ जी का उगला है “

 कांता जी बोली…. “पांच बेटो की मां कलावती बुआ की कभी भी अपनी बहुओं से नहीं बनी, दो दो महीने के लिए अपने पांचों बेटों – बहुओं के साथ बारी – बारी से रहती थी पर जिस बेटे के पास रहती उसका जीना मुहाल कर देती फिर चाहे वो कितनी भी सेवा कर ले पर बुआ जी तो अपनी आदत से मजबूर थी और अभी कुछ दिन पहले ही कांता जी के यहां रह कर गई है, छोटे बेटे की शादी में नहीं आ पाई तो अब दस दिन रहकर हफ्ते भर पहले ही अपने घर लौटी है, लेकिन अपनी आदत के मुताबिक कांता जी की दोनों बहुओं के बीच जहर घोल गई और उसी का नतीजा था की दोनों बहुओं को ये लग रहा है की उनकी सास उनसे भेदभाव करती है…

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 कांता जी ने दोनों को अपने पास बैठाया और बोली अब तुम दोनों मेरी बात सुनो… बड़ी बहु की शादी कम उम्र में ही हो गई थी, इसे खाना बनाना भी नही आता था, पर मैने इसे सभी कामों में परिपक्त बनाया,  पूरे घर को तो बहुत अच्छे से संभाल लिया था लेकिन बाहर के कामों के लिए इसे दूसरे का मुंह देखना पड़ता था, मैने जोर देकर गाड़ी चलाना सिखाया पर इसका डर कम ही नहीं होता था उसके बाद तुम घर की छोटी बहु बनकर आई तो तुम बाहर के सब कामों में निपुण निकली, कुछ भी परेशानी या काम होता फटाक से गाड़ी निकालती और काम कर आती पर तुम्हारा हाथ रसोई के कामों में तंग था , मैने भी तभी एक फैसला लिया की जो जिस काम में कमतर है उसे उसी काम में लगाया जाए ताकि मेरी दोनों बहुएं किसी भी मुश्किल का आसानी से सामना कर सके और उसके लिए लगातार प्रयत्न बहुत जरूरी होता है , इसीलिए बड़ी बहु का डर निकालने के लिए उसे सारे बाहर के काम सौंपे और छोटी बहु तुम्हे रसोई के कामों  में इसलिए लगाया ताकि तुम्हारा रसोई का डर कम हो सके और मेरा ये निर्णय बिल्कुल सही साबित हुआ आज तुम दोनों ही घर हो या बाहर, दोनों जगह के काम बड़ी आसानी से कर सकती हो … 

 पर बुआ जी को शायद यही बात अच्छी नहीं लगी की मेरी दोनों बहुएं हर काम में निपुण कैसे है और हम तीनों की इतनी अच्छी कैसे बनती है तो उन्होंने अपनी जुबान में शहद लपेटकर तुम दोनों के ही दिमाग में एक दूसरे के प्रति ज़हर भर दिया…. 

 मेरी बच्चियों ये संसार हितेषी लोगों से कम और कपटी लोगो से अधिक भरा है, इनकी बातों को दिमाग में बिठाने से पहले आपस में बात करके मामला सुलझाने की कोशिश करना … चुप रहने से रिश्तों में दूरियां आती है इसलिए बात करके मन का मैल साफ कर लेना चाहिए




 दोनों बहुओं को बात समझ आ गई थी , दोनों ने अपनी सास के पैर छुए और दुआ करी की भगवान सभी को ऐसी ही सुलझी और सुंदर विचारो वाली सास दे….. 

 तभी बड़ी बहु बोली “छोटी आज खाना में बनाऊंगी तुम जरा बाजार से गरमा गर्म जलेबी और रबड़ी ले आओ” और दोनों की हंसी से कांता जी का घर फिर से गुलजार हो गया…

 मौलिक स्वरचित रचना

 #भेदभाव

 कविता भड़ाना

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