“मम्मी जी, सामान की लिस्ट बना दी है, ये कुछ जरूरी सामान है जो मंगवाना हैं”, कोमल ने लिस्ट अपनी सास रंजना जी के हाथ में थमा दी।
रंजना जी ने चश्मा ठीक किया और गहरी नजरें गढ़ा के हर सामान पढ़ा, फिर पेन लाने को कहा,” ये दाल दो किलो की क्या जरूरत है? डेढ़ किलो ही बहुत है, और ये मूंगफली वो भी आधा किलो ज्यादा है, ये भी कम करो, पांच किलो घी !! बहू तू तो इस घर को ही डुबो देगी, पैसे क्या पेड़ पर उगते हैं, जो इतना सामान लिख दिया, मै नहीं हो तो तू तो इस घर को ही बेचकर खा जायें, तुझे क्या पता कितनी मुश्किलों से मैंने ये घर बनाया है, इसका एक-एक सामान सजाया है, तेरी तरह राशन पर इतना पैसा फूंकती तो ये घर ना बना पाती”,।
लेकिन मम्मी जी, मूंग की दाल पापाजी की सेहत के लिए अच्छी रहेगी, उन्हें पचाने में भी आसानी रहेगी, और मूंगफली तो रोज खाना चाहिए इससे प्रोटीन मिलता है, अब मूंगफली बादाम से तो सस्ती ही आती है, और अभी सर्दियों में आप लड्डू तो बनाओगे, इसलिए इकट्ठा घी सस्ता पड़ेगा, अब एक -एक किलो घी तो महंगा ही पड़ेगा, कोमल ने समझाना चाहा।
तभी रंजना जी फिर से गुस्सा करने लगती है,” तू अपनी गणित अपने पास ही रख, इकट्ठा घी लाना भी महंगा होगा, और तू मुझसे बहसबाजी मत कर, ये घर मेरा है तो मेरे हिसाब से ही चलेगा, जिस तरह सामान हर महीने आता है, उसी तरह से आयेगा, तू मेरी रसोई में ज्यादा दखलअंदाजी मत किया कर, अपना खाना बना और मुंह बंद रखा कर”, रंजना जी के कहने के बाद कोमल फिर से चुप हो गई, फिर ये पहली बार तो नहीं हुआ है कि उसको इस तरह से डांटा गया हो।
दोनों सास-बहू के बीच तकरार होती ही रहती थी।
रंजना जी की तो आदत ही हो गई है, वो अपनी बहू को अपने पैरों की जूती समझती है और उसकी बिल्कुल भी कदर नहीं करती है, हर समय तानें देना, अपमान करना उनकी आदत में है, कोमल भी कुछ तो संस्कारों की वजह से सब सहन कर रही थी, और कुछ उसकी मजबूरी थी, उसका पति मुकेश ज्यादा कुछ कमाता नहीं था, ससुर प्रकाश जी की तो सरकारी नौकरी थी पर मुकेश ज्यादा नहीं पढा तो उन्होंने ही एक बिजली की छोटी सी दुकान खुलवा दी, बस वो उसी पर सुबह -शाम बैठता था, पर कमाई इतनी भी नहीं थी कि दोनों जनों का पेट भी भर सकें।
इस कहानी को भी पढ़ें:
घर का सारा मोटा खर्चा मुकेश के पापा ही उठाते थे, इसलिए वो और कोमल उनसे दबकर रहते थे, उसके अलावा रंजना जी की घर में तूती बोलती थी, वो पूरे घर को अपनी अंगुली पर रखती थी, और सब घरवालों को नचाती थी।
रंजना जी के एक ही बेटा है, मुकेश पढ़ाई में ठीक ही था तो ज्यादा ऊंची पढ़ाई नहीं कर पाया और घर पर ही रहा। अब भला बेरोजगार
लड़के से कौन अपनी लड़की की शादी करता ?
रंजना जी ने जिद की और एक दुकान किरगये पर ली और उसमें ही बिजली का सामान भर दिया, ताकि इसी बहाने मुकेश व्यस्त तो रहे, शादी तो उनको भी बेटे की करनी थी।
कोई भी लड़की वाला आता तो वो यही कहती,” एक ही बेटा है हमारा, आगे-पीछे जो भी है, सब इसका ही है, कमाई का तो क्या है, दुकान तो चल रही है और मेरे पति की भी सरकारी नौकरी है, बुढ़ापे में हमें तो पेंशन मिलेगी, तो आपकी बेटी पर भार नहीं आयेगा, वो हमारी जिम्मेदारी से तो मुक्त रहेगी, इतना बड़ा घर भी
है, और रहने वाले हम तीन लोग हैं, आपकी बेटी आयेगी तो हमारे घर पर राज ही करेगी, ये घर सोना-चांदी सब उसका ही होगा, कोमल के पिता ने ये सब सुना तो उन्हें लगा कि उनकी कोमल तो इस घर पर राज ही करेगी, इसलिए उन्होंने हामी भर दी।
कोमल को ये रिश्ता पसंद नहीं था पर उसकी बड़ी बहन मानसिक रोगी थी, पापा- मम्मी उसके कारण तनाव में रहते थे, बहुत जगह इलाज करा चुके थे, बहुत सा पैसा भी लगा चुके थे, ऐसे में उनके लिए शादी करना आसान नहीं होगा पर बेटी की शादी तो करनी ही है, और छोटी बहन भी कब तक कुंवारी बैठी रहेगी?
सब कुछ सोच-समझकर, देखभाल करके कोमल के पापा ने हामी भर दी, पर वो ये भुल गये कि लड़की की शादी के लिए घर-परिवार और ससुर जी की नौकरी से ज्यादा जरूरी है कि लड़के की काबिलियत और उसकी कमाई देखी जाएं, आखिर लडकी को जिंदगी लड़के के साथ ही बितानी है, पति की कमाई हो तो वो सिर ऊपर उठाके चल सकती है, गर्व से जी सकती है
कोमल और मुकेश की शादी हो गई, शुरूआती दिन तो अच्छे रहें पर बाद में उसकी सास ने अपने रंग दिखाने शुरू किये, उसकी सास उसकी हर बात और हर काम में टोका-टोकी करने लगी थी, जो उसके लिए असहनीय थी, हर बात में वो ये जताने लगी थी कि उनका पति कमा रहा है तो उसे सोच-समझकर खर्च करना चाहिए।
इस कहानी को भी पढ़ें:
कोमल चाय बनाती तो रंजना जी टोक देती,” थोड़ा दूध कम डाला कर, दूध आजकल ब़ड़ा महंगा हो गया है, कपड़ों पर ज्यादा साबून मत घिसा कर, तेरे ससुर जी बड़ी मेहनत से कमाकर लाते हैं, ज्यादा देर तक लाइट पंखे मत चलाया कर, अब बिजली का बिल मुकेश तो नहीं भर देगा, ये टीवी देखना तो लाइट की बर्बादी है, इन सबसे कुछ मिलता नहीं है।
कोमल का जीना मुश्किल हो गया था, वो मायके भी कुछ नहीं कह सकती थी क्योंकि उसके मायके वाले वैसे ही बड़ी बेटी की बीमारी से बहुत परेशान थे, कोमल छुपकर आंसू बहा लेती थी, अब सास तो रोज ही ये जताती थी कि घर उसके पति की कमाई से ही चल रहा है। रोज किसी ना किसी बहाने कोमल से तकरार करती थी।
सच है जो ज्यादा कमाता है, वो सबके सिर पर सवार रहता है, रंजना जी के व्यवहार में कोई सुधार नहीं आया ,और उधर मुकेश की कमाई भी ज्यादा नहीं बढ़ी थी इसलिए वो अपना दबदबा बनाए रखती थी।
मुकेश सुबह का गया रात को घर आता था, वो अपनी पत्नी को कभी कहीं घुमाने या सिनेमा दिखाने भी नहीं ले जाता था, क्योंकि थोड़ी बहुत जो दुकान से कमाई होती थी वो दुकान का किराया भरने मे ही काम आ जाती थी, और ऊपर से मुकेश के पापा अपनी कमाई में से पैसा देते थे।
कोमल का जीवन एक मशीन की तरह हो गया था, सुबह जल्दी उठो, सारे काम करो, दिन-रात सास के तानें सुनो, एक खुली जेल में वो सजा काट रही थी, पर उसके मन की सुनने वाला कोई भी नहीं था, वो अकेले में आंसू बहाकर रह जाती थी, मुकेश से क्या कहती, वो तो खुद अपने काम से रात तक घर आता था और सुबह जल्दी जाकर दुकान खोल देता था।
कोमल एक दिन खाना बना रही थी तो रंजना जी रसोई में आकर बोलती है,” थोड़ा देखभाल के सामान काम में लिया कर, इतनी महंगाई का जमाना है, और ये पापड़ सेंकने की क्या जरूरत है? बेकार में ही सलाद काट रही है, कोई चीज मुफ़्त में नहीं आती है, रोज-रोज दाल बनाने की भी क्या जरूरत है? तेरे पापाजी और मै तो कितना कम खाते हैं”।
” घर में जो सबसे ज्यादा कमाता है,जब वो ही नहीं खायें तो बाकी चीजें बनाने का क्या मतलब है? और तेरे पापाजी और मुझे ये सब्जी पसंद नहीं है, मत बनाया कर, पहले जो ज्यादा कमाता है, उसका ध्यान रखा कर, मुकेश के लिए दुकान टिफिन भेजकर भरने की क्या जरूरत है? वो वहां दिनभर बैठा ही तो रहता है “।
कोमल ये सब सुनकर चौंक गई, रंजना जी उसे हर बात में टोका करती थी, और कोमल के मन को यही बात कचोटती थी, वो बेहद दुखी रहने लगी थी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
घर का काम तो हो जाता था, उसके बाद कोमल अपने कमरे में ही रहती थी, उसकी पढ़ाई शादी के कारण अधुरी रह गई थी, जिसे वो पूरा करना चाहती थी, उसने अपनी सास को अपने फेसले के बारे में बताया तो वो भड़क गई,” अब भला पढ़ाई-लिखाई करके क्या करेगी? शादी तो तेरी हो गई है, तू घर ही संभाल, पर इस मामले में कोमल के ससुर जी ने उसका साथ दिया,” तुम्हें क्या है, तुम्हारा काम तो हो जायेगा, उसके बाद बचे समय में ये पढ़ना चाहती है तो क्या बुराई है? हमारा बेटा तो नहीं पढ़ पाया, कम से कम बहू तो पढ़ाई कर लेगी, हो सकता है ये पढ़ाई करके अपने पैरों पर खड़ी हो जायें, तो हमारे मुकेश का भी भाग्य खुल जायेगा।
ससुर जी की सहमति मिलते ही वो पढ़ाई में जुट गई, और उसने अपनी डिग्री पूरी कर ली, डिग्री पूरी करते ही प्रकाश जी ने उसे प्रतियोगी परीक्षा का फार्म भरवा दिया और कुछ महीनों बाद कोमल की सरकारी नौकरी लग गई, ये बात उसकी सास को हजम नहीं हुई, पढ़ाई तक तो ठीक था पर अब बहू नौकरी करेगी तो घर कौन संभालेगा? और वो किस पर राज करेगी?
मुकेश अपनी पत्नी की सफलता से बहुत खुश था वहीं प्रकाश जी ने बहू को बहुत सारा आशीर्वाद दिया, पर रंजना जी अड़ गई कि बहू नौकरी नहीं करेगी, ” ठीक है पढ़ाई कर ली, परीक्षा दे दी, नौकरी भी लग गई, पर नौकरी करना जरूरी तो नहीं है, तेरे ससुर जी कमा रहे हैं, हम खुद भी खायेंगे और तुझे तेरे पति को भी खिलायेंगे।
“मम्मी जी, खाना तो भिखारी को मंदिर के बाहर भी मिल जाता है, पर पेट भरना ही काफी नहीं है, उसे कितनी बाद दुत्कारा जाता है, भीख के लिए सुनाया जाता है, उसकी हंसी उड़ाई जाती है, उसका अपमान किया जाता है,”, कोमल ने कहा।
“मै भी यही सब सहन कर रही हूं, मै इस घर में रहती तो हूं, खाना भी खाती हूं पर वो इज्जत की रोटी नहीं होती है क्योंकि वो रोटी मेरे पति की कमाई से नहीं मेरे ससुर जी की कमाई से आती है, और उसके लिए मुझे तानें दिये जाते हैं, मैने सब सहन किया क्योंकि मैं तब मजबूर थी, पर अब मजबूर नहीं हूं, अब मै भी अपने पैरों पर खड़ी हूं, मै इज्जत की रोटी खा सकती हूं”, रोज-रोज की तकरार से भी मै परेशान रहती हूं।”
“मेरे पापा ने मेरी शादी कर दी, क्योंकि उनकी मजबूरी थी, मैंने मम्मी -पापा का मन रखने के लिए शादी की थी, मुझे लगा था कि चलो कोई ना एक ही बेटा है तो मेरी सास अपनी बहू के लाड़ करेगी, पर आपने तो मुझे दिन-रात तानें दिये कि मेरा पति कमाता नहीं है, पर मम्मी जी, मुकेश जी मेरे पति बनने से पहले आपके बेटे हैं, मै भी कह सकती हूं कि जब आपका बेटा इतना कमाता नहीं है कि वो अपनी पत्नी का पेट भर सकें तो आपने उसकी शादी क्यों की? क्यों किसी लड़की की जिन्दगी बर्बाद की? क्या बहू को तानें देने के लिए ही ससुराल लाया जाता है? ताकि वो ये सब सहन करती रहें, इन सबके बीच में मेरा क्या दोष है? जो मुझे हर बात के लिए सुनाया गया, आखिर क्यों?
आप मुझे कोई चीज प्यार से भी तो बता सकती थी, आप मुझे समझा भी सकती थी, कह सकती थी कोई बात नहीं, अभी मुकेश की कमाई कम है तो क्या हुआ? आगे बढ़ जायेगी, ये दिलासा भी दे सकती थी कि,” अभी तो मै और तेरे ससुर जी है तो तू किसी बात की फ्रिक मत कर” हम सब देख लेंगे, संभाल लेंगे।
इस कहानी को भी पढ़ें:
इन सबसे मुझे कितनी हिम्मत मिलती, मै आपकी दिल से इज्जत करती, पर अब मै और नहीं सहन करूंगी, मै नौकरी करूंगी, और अपना अलग घर लूंगी, जहां मै
इज्जत की रोटी खा सकूं।
ये सुनते ही रंजना जी के पास कोई जवाब नहीं था, वो मन ही मन ग्लानि महसूस कर रही थी।
तभी प्रकाश जी बोले,” बहू तुम नौकरी करो, पर अलग घर की जरूरत क्या है? यही सब साथ में रह लेंगे”।
“पापाजी, मै आपकी दिल से इज्जत करती हूं, आज मै जो भी हूं, सिर्फ आपकी ही वजह से हूं, आप मुझे प्रेरणा नहीं देते तो मै कुछ नहीं कर पाती”, लेकिन मैं अलग घर लेकर रहूंगी, चाहें आपके सामने वाला घर ही ले लूंगी, ताकि वहां मैं इज्जत से अपनी मर्जी से रह सकूं, और रोज होने वाली सास-बहू की तकरार से बच जाऊं।
अब मैं नौकरी करूंगी तो दिनभर बाहर रहूंगी, घर पर ध्यान नहीं दे पाऊंगी, फिर से घर में कलह होगी, वो सब मै नहीं चाहती हूं, इससे अच्छा है हम आमने-सामने रहें, एक दूसरे के दुःख सुख के साथी बनकर रहेंगे, पास भी रहेंगे और दूर भी रहेंगे, मम्मी जी अपना घर संभालेगी और मै अपना घर संभालूंगी”।
मुकेश भी चुपचाप खड़ा था, वो अपने मम्मी-पापा के सामने कुछ नहीं बोलता था, पर उसे भी पता था कि रंजना जी कोमल के साथ में कैसा व्यवहार करती है।
उसने भी अपनी मौन स्वीकृति दे दी, कोमल ने ऑफिस जाने से पहले घर के सामने ही एक घर किराये पर ले लिया, और वहां अपने पति के साथ इज्जत से रहने लगी।
पाठकों , बेटा कमाता नहीं हो, या कम कमाता हो तो उसका दोष बहू को क्यों दिया जाता है ? सास-ससुर जैसे दुख में अपनी बेटी का साथ देते हैं, वैसे ही बहू का साथ क्यों नहीं देते हैं? पैसे को लेकर जो सास बहू से रोज तकरार करें, उसे ताना दें, ऐसी सास के साथ रहने से अच्छा है कि बहू अलग ही इज्जत से रहें।
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना