सानिध्य -तृप्ति शर्मा

“आप मेरी चूड़ियां पकड़कर क्यों सोते हैं।”शादी के कुछ दिनों बाद ही थोड़ी हिचकिचाहट के साथ रुचि ने अभिनव से पूछ लिया। अभिनव ने रुचि की आंखों में आंखें डाल कर मुस्कुराते हुए कहा। मुझे अच्छा लगता है इनका सानिध्य इनकी खनखनाहट रुचि ,और इन्हें छूकर मुझे तुम्हारे पास होने का एहसास भी होता है। बहुत ही प्यारा रिश्ता था दोनों पति-पत्नी के बीच। रुचि मन की बहुत सीधी थी ।जिसके बोलने की कम आदत के कारण बहुत ही कम दोस्त है उसके।

शादी के बाद अभिनव में ही सारे रिश्ते ढूंढ लिए थे उसने ,दिल हल्का करना होता तो दोस्त बना लेती ,चुगली करनी होती तो पड़ोसन । अभिनव ही अब उसके सब कुछ थे।

ऐसा ही रिश्ता अभिनव का भी रुचि के साथ बन गया था ।दोनों बिना बोले दूसरे की मन की बात जान लेते थे ।घर बैठे अगर रुचि का मन जलेबी खाने का होता तो पता नहीं कैसे अभिनव को भनक लग जाती और लौटते वक्त उसके हाथों में जलेबियां देख रुचि चौक जाती , तब अभिनव बोलते क्यों जलेबी खाने का मन था ना आज तुम्हारा?

रुचि मुस्कुरा कर खुद ही अपनी किस्मत पर रश्क करने लगती। हाय ,कितने प्यारे पति हैं अभिनव।


ऐसे ही एक दूसरे को समझते बूझते कब 10 वर्ष बीत गए पता ही नहीं चला। पर अब, पता नहीं क्यों एक दूसरे की समझ के बीच मनमुटाव होने लगे थे।

वह पहला सा प्यार, मान मनुहार कम हो गया था। जैसे रुचि को अपनी ही नजर खा गई हो। बात बात पर बहस और मनमुटाव होने लगा था दोनों के बीच। रुचि का मुरझाया चेहरा उसकी मनोदशा व्यक्त करने लगा था। उदास और गुमसुम रहने लगी।

इधर अभिनव भी चिड़चिड़े हो गए। जिंदगी जैसे बस बहे चली जा रही थी।

एक दिन जब दोनों का झगड़ा हद से बढ़ गया तो रुचि से रहा नहीं गया। सारा गुबार आंसू बन अभिनव को भिगोता चला गया। उस दिन अभिनव को एहसास हुआ कि उन दोनों का रिश्ता जिसकी मिसाल कभी रिश्तेदार भी दिया करते थे कहीं खो कर रह गया है।

अभिनव परेशान हो गए रुचि को यूं रोता देखकर, और उस को अपनी तरफ खींच कर बोले मैं जिम्मेदारियों से थका नहीं हूं रुचि ना ही तुमसे मेरा प्यार कम हुआ है बस भविष्य संवारने के लिए अपना आज खोता चला गया हू। संघर्ष बन गया है जीवन।



कहकर वह चुपचाप भारी कदमों से बाहर निकल गए।

रुचि काफी देर तक सुबकती रही और थक कर सो गई। अपने हाथों पर स्पर्श पाकर धीरे से आंख खोल कर देखती है। अभिनव आज फिर उसकी चूड़ियों से खेल रहे हैं, पति की नजरों में पहला जैसा प्यार देखकर रुचि की बहुत समय से जागी आंखों को सुकून सा मिलता है। अभिनव का प्यार भरा सानिध्य पाकर वह चैन की नींद सो जाती है। खिड़की के ठीक ऊपर चांद भी अपनी चांदनी के आगोश में इठलाता नजर आता है।

तृप्ति शर्मा।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!