रोते रोते बस अपनी किस्मत को कोसती जा रही थी – माधुरी गुप्ता : Moral Stories in Hindi

सुमन को पार्क में आए तीन घंटे हो चुके थे,रोज की तरह सुबह सात बजे सैर के लिए घर से निकली थी और अब दस बज रहे थे ,सैर भी कितनी करती आखिर।थक चुकी थी,घर वापस जाने को मन ही नही कर रहा था,सोचने लगी कैसा घर किसका घर।पहले घर पति का था अब घर पर बहू पूजा का राज है,सब कुछ उसी के अनुसार चलता है।

आज पूजा की किट्टी पार्टी है सो सुबह से ही काम में जुटी है,सुमन ने पूछा कि बहू कुछ काम है तो मैं तुम्हारी मदद कर देती हूं।

तभी पूजा चहकती हुई बोली ,मदद ही करनी है तो जब तक मेरी सहेलियां अपने अपने घर वापस न चली जाय तब तक घर में पैर मत रखना ।मैं नही चाहती कि मेरी सहेलियों के सामने मेरा मजाक बने। तुम्हारी बातें व पहनावा देखकर मेरी इज्ज़त कम होती है।

परन्तु क्यों बहू मैने ऐसा क्या कर दिया,जो तुम मुझ पर इस तरह के इल्ज़ाम लगा रही हो।

क्यों भूल गई क्या आप, पिछली किट्टी में मेरी सहेलियों ने आपके हाथ की बनी मठरी व आम के हींग के अचार की तारीफ क्या करती आपका तो दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ गया।अब वे लोग जब भी फोन करती हैं सिर्फ यही कहती हैं

अपनी सासूमां से बात कर बादो बट सावित्री व्रत आरहाहै सो पूजा की बिधि पूछनी है उनसे। तुम्हें तो कुछ पता नहीं है अपनी संस्कृति व त्योहारों के बारे में । लेकिन सच तेरी सासूमां तो बहुत होशियार है,उनको तो हर तरह की बहुत जानकारी है। यह सुनकर पूजा जल भुन कर रह जाती

तभी सुमन की सहेली सुधा उधर से गुजरी वो किसी काम से मार्केट जाने को निकली थी,सुमन को पार्क में बैठे देखा तो कहने लगी कि अरे सुमन तू इस समय पार्क में क्या कर रही है अभी तक घर क्यों नही गई?

सुमन ने सुधा से अपने मन की बात बताई और रोने लगी।मेरी तो किस्मत ही खराव है

पहले पति ने जी भर के सताया,अब बहू अपना शासन कर रही है।परसो फलों की टोकरी में दो दिन के पड़े अमरूद पडेंथे कोई खा नहीं रहा था सो मैंने काम वाली बाई को दे दिए,पूजा ने देख लिया।बाई के जाने के बाद मुझे इतनी खरी खोटी सुनाई किमेरारोना ही निकल गया।

पूजा कहने लगी आपने किससे पूछ कर अमरूद बाई को दिए,मेरे पति की कमाई है,ऐसेबांटने के लिए नही है।जो जब दिल चाहा उठा कर किसी को कुछ भी दे देंगी आप।

अपने पति को तो अपने वश में रख नही पाई आप,जो उन्होंने चोरी-छुपे दूसरी औरतों से रिश्ते रखते रहेअब कम से कम मेरे घर पर तोअपनी मनहूस छाया मत डालो।

दरअसल सुमन पांच भाई बहिन थे ,पिता साधारण मास्टरी करते थे,बस किसी तरह गुजर बसर हो जाता थी।सुमन ने ग्रेजुएट करते ही एक स्कूल में टीचिंग की नौकरी करली,ताकि घर की आर्थिक स्थिति में कुछ सुधार

हो सके।सुमन सब भाई बहनों में सबसे बड़ी थी।नौकरी करते उसे दो साल हो चले थे। उसके बाबूजी ने उसकी शादी के लिए लड़का देखने शुरू कर दिया। अधिक दान दहेज देने की तो हिम्मत नही थी मास्टर जी की क्योंकि सुमन के बाद और छोटी दो बेटियां की भी शादी करनी थी।साथ ही बेटो को भी पढ़ा लिखा कर सुयोग्य बनाना था।

मास्टर जी के दोस्त के दोस्त ने एक सुयोग्य लड़का सुमन के लिए बताया छोटा परिवार है बस दो भाई हैं लड़का सरकारी नोकरी में है, अच्छी बात ये है कि दान दहेज का कोई चक्कर नहीं है।आपसी बातचीत के बाद सुमन का रिश्ता विनय के साथ तय हो गया।

सुमन को बाबूजी की इच्छा को मानना ही पड़ा। एक महीने बाद सुमन की शादी विनय के साथ सम्पन्न हो गई। ससुराल में जिठानी मंजू ने उसका खुले दिल से स्वागत किया। सुमन के जेठ जी मर्चेंट नेवी में थे,शादी के तीन दिन बाद वे अपनी सर्विस पर वापस चलें गए।

उनके वापस जाते ही सुमन की जिठानी व विनय के तेवर एकदम से बदलने लगे।विनय का ऑफिस से वापस आने के बाद अधिकांश समय जिठानी जी के कमरे में ही बीतता,विनय उन पर जान छिड़कते थे ।

सुमन ने जव झिझकते हुए विनय से उनके व्यवहार के बारे में कहा तो,विनय ने नाराजगी भरे शब्दों में कहा,रहना है तो रहो , वर्ना अपने घर वापस चली जाओ।सुमन को विनय से इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं थी।

विनय का झुकाव उसकी जिठानी की तरफ ज्यादा है,धीरे धीरे उसकी समझ में आने लगा था।एक दिन जब आधीरात को उसकी आंख खुली और विनय को अपने बेड पर नही पाया तोउठ कर देखा कि इतनी रात को विनय कहांजासकते हैं,चल कर जिठानी जी के कमरे तक पहुंची,दरबाजा पूरा बन्द नहीं था,सुमन ने जो नजारा देखा,तो उसके पांव के नीचे से मानो जमीन ही खींच ली हो किसी ने।अब सुमन को विनय के व्यवहार में उसके प्रति रूखाई का कारण समझ में आ गया।

विनय से जब एक दिन सुमन ने इस बात की चर्चा की तो विनय का जबाव था,रोटी कपड़ा व मकान तीनों चीजें तेो तुमको मिल रही हैं ,फिर में क्या करता हूं और क्यों करता हूं इससे तुम्हें कोई मतलब नही होना चाहिए।

क्यों भला? सुमन ने हिम्मत करके पूछा,

क्योंकि तुम्हारे बाबूजी को बिना दान दहेज वाला लड़का चाहिए था और मुझे अपने इस नाजायज रिश्ते पर पर्दा डालने के लिए एक अदद लड़की की जरूरत थी।सो तुमसे शादी की रजामंदी करके दोनों काम पूरे होंगे।अब तुम चुपचाप घर के काम करो और यहां रहती रहो।हां मेरी लाइफ में दखलंदाजी करने की कोशिश भी मत करना,वरना जहां से आई हो वहीं वापस भेज दूंगा।

वस सुमन की जिन्दगी इसी तरह तलबार की धार पर चल रही थी,सब कुछ देखते हुए भी मुंह बंद करके रह रही थी उस घर में जहां अपना कहने को उसका कोई नही था।

मायके में मां थी नहीं जिससे वह अपने मन की व्यथा कह कर मन हल्का कर लेती बाबूजी से यह सब कह कर उनके मन को चोट नहीं पहुंचाना चाहताी थी,क्यों कि दो छोटी बहनें की शादी का सवाल जो था।

बस रात के अंधेरे में# रोते-रोते अपनी किस्मत को कोसती रहती#

जिन्दगी भी एक अजीब पहेली है जिसका हल शायद ऊपर वाले के पास ही रहता हैं।सुमन के जेठजी छुट्टियों में घर आए हुए थे,सेोउन्होंने मनाली घूमने का प्रोग्राम बनाया।दोनो भाई घूमने गए,सुमन खुली हवा में सांस लेकर कुछ खुशी का अनुभव कर रही थी,

क्योंकि उसके जेठजी का व्यवहार उसके प्रति बिल्कुल छोटी बहन की तरह था।सुमन को उसके जेठजी ने उसकी मनपसंद की शॉपिंग भी करवाई।चूंकि होटल में दोनो भाइयों के लिए अलग अलग कमरे बुक थे,सो मजबूरन विनय को उसके साथ रात वितानी पड़ीं।

किन्हीं अंतरंग क्षणों में विनय व सुमन ने पति पत्नी होने के कुछ पल बिताए,मनाली से वापस आने के कुछ दिनों बाद सुमन ने अपनेशरीर में किसी हलचल को महसूस किया।जिठानी जी व विनय को बताया,तो दोनों बहुत खुश हुए क्योंकि अब तक घर में कोई छोटा बच्चा था ही नही।विनय व सुमन की जिठानी ,उसके खानपान का खूब ध्यान रखते।सुमन को यह सब एक छलावा सा लगता कि पता नही बच्चा होने के बाद और किसनए जुल्म का सामना करना पड़ेगा।

समय अपनी गति से बीत रहा था,सुमन ने एक गोल-मटोल बेटे को जन्म दिया।सुमन मां बनकर अपनी पिछली परेशानी को भूल जाना चाहती थी।

हॉस्पिटल से घर आने पर विनय ने स्पष्ट शब्दों में सुमन से कह दिया कि इस बच्चे को तुम अपनी जिठानी कीगोद में डाल दो वे ही इसका पालन पोषण करेंगी ,हां जब जब जरूरत होगी तुम इसको सिर्फ अपना दूध पिलाया करोगी।

हाय री मेरी किस्मत,पता नही कितना रोना लिखा है।बेटे का नाम रखा गया दीपक।दीपक उसी घर में बड़ा हो रहा था,सुमन बस टुकुर-टुकुर उसे दूर से देखती रहती।जब कभी जिठानी जी नही होती तो उसे अपनी गोद में लेने की कोशिश करती तो वह रोने लगता।

दीपक भी बड़ा हो गया था और जेठजी भी नौकरी से रिटायर होकर घर आगये थे।सुमन व विनय अब एक अलग घर में रहने लगे थे,क्योंकि सबके एकसाथ रहने के लिए वह घर छोटा पड़ने लगा था।अलग रहते हुए कुछ साल ही हुए होंगे कि विनय की कैंसर से मौत हो गई।दीपक की उमर भी शादी योग्य हो चली थी।

कहाबत है न कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है‘,सो वही हाल सुमन का था वह ऐसी बहू लाना चाहती थी जो उसके साथ मिल कर रहे,अपनापन रखे।पर मन भाता स्वयं साथ कहां होता है।

लेकिन दीपककी पत्नी पूजा को तो सुमन फूटी आंखों नहीं सुहाती थी।शादी के कुछ दिनों बाद ही उसने अप ने रंग दिखाने शुरू कर दिए थे।सुमन बेचारी तो सबकुछ चुपचाप सहती रहती,और#रोते रोते अपनी किस्मत को कोसती रहती।जब कभी सुधा मिलती तो अपना मन हलका कर लेती अपने मन की व्यथा कह कर।

स्वरचित व मौलिक

माधुरी गुप्ता

नई दिल्ली

2 thoughts on “रोते रोते बस अपनी किस्मत को कोसती जा रही थी – माधुरी गुप्ता : Moral Stories in Hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!