Moral stories in hindi : ढलते सूरज के साथ ही शाम की अगुवाई हो रही थी मोहनदास जी अकेले अपनी गैलरी में कुर्सी पर बैठकर कलराव करते लौट कर अपने घर को जाते पंछियों को देख रहे थे l
उनका एक साथ उड़कर चहचहाना झुंड के रूप में एक साथ उड़ना उनको मानो कुछ याद दिला रहा था l
आज इतने बड़े घर में वह अकेले
हो गए थे, उनका भी अपना कितना बड़ा परिवार था l वह एक बहुत बड़े सरकारी अधिकारि थे नौकर चाकर
सरकारी गाड़ी सब कुछ उनके हाथो में था i
परंतु उस समय उनको परिवार की अहमियत समझ कहा आती थी l
उनको पत्नि राधिका और चार बच्चों से भरापूरा घर मानो खुशियों से महकता था l
परंतु उनका अहंकारी दबंगपना
अपने ऑफिसर होने का रुतबा
ऑफिस के साथ घर में भी चलता था l
जब तक वह घर में रहते थे बच्चें
अपने अपने कमरों में छुपे रहते थे, उनका बात बात पर हर वक्त
टोकना झिड़कना किसी के सामने भी उनको कुछ भी बोल देना यहां तक कि वह घर के नौकरों के सामने भी उनसे रूढ़ व्यवहार करते थे l
उनकी पत्नि राधिका तो अक्सर सुन लेती थी परंतु बच्चों के मन में उनके प्रति सम्मान की भावना खत्म हो गई उनके बड़े होने के साथ साथ,l
परंतु राधिका अपने बच्चों को हर वक्त सुसंस्कार ही देती उनकी पढ़ाई के साथ उनकी हर जरूरतों का ख्याल रखती थी l
पिता के कठोर अनुशासन से चिढ़ कर बच्चें जब उद्दंड होने लगे तो उन्होंने उस माहौल से दूर रखने के लिए जिद्द कर सभी को होस्टल में भर्ती करवा दिया l
हालांकि इसके कारण उन्होंने अपने पति के हाथो मार भी और डांट भी खानी पड़ी पर वह जिद्द पर अडिग रही l
हार कर मोहनदास जी बाद में
कुछ नहीं बोल पाये, पर उनका रवैय्या नहीं बदला चारों बच्चें जब भी छुट्टियों में घर आते उनसे प्यार भरे दो बोल सुनने को तरस जाते, परंतु वह कभी उनको बिठाकर उनकी पढ़ाई या वह कैसे रह रहे हैं उनको कोई तकलीफ तो नहीं है कुछ नहीं पूछते थे l
बच्चें पढ़-लिख कर सभी ऊँची पोस्ट प़र जॉब करने लगे थे l
वक़्त के साथ ही दोनों बेटियों की और दोनों बेटों की शादी भी हो गई थी l
मोहनदास जी का व्यवहार फिर भी नहीं बदला, अब वह रिटायर हो गए थे उनका सरकारी रुतबा नौकर चाकर चापलूस लोग जो उस वक़्त उनके आगे पीछे घूमते रहते थे सब खत्म हो चुका था l
राधिका और वह दोनों अब उनके बनाए आलिशान घर में अकेले रहते थे l
बच्चें अब समय समय पर आते पर कोई उनके पास नहीं
फटकता था बहू बेटे बेटी दामाद सभी की दुनिया बस राधिका जी के आगे पीछे घूमती रहती थी l
राधिका जी खुद बहुत बोलती बच्चों को की कुछ देर वह अपने पिता के पास भी बैठे परंतु बच्चें अब बड़े हो गये थे l
उनको पिता का बचपन में किया व्यवहार उनसे बहुत दूर कर चुका था l
बच्चों की अनदेखी अब उनको सहन नहीं होती थी तो वह अपना सारा गुस्सा राधिका जी पर निकालते थे l
उनको गालियां देते और कहते की बच्चों के मन में उन्होंने नफरत के बीज बोये है उनके लिए l
उन्होंने क्या नहीं किया सब के लिए पर आज सारे बच्चें उनको
इग्नोर करते हैं l
परंतु उनको अपना किया व्यवहार कभी याद नहीं आता था l
एक दिन बात हद् से गुजर गई
उस बार दीपावली का त्यौहार था साथ में ही उनकी पत्नी राधिका का जन्मदिन भी उसी दिन पड़ गया था इस कारण उनके चारों बच्चें सपरिवार आये हुऐ थे क्योंकि वह सभी इस बार दीपावली के साथ ही उनका जन्मदिन भी धूमधाम से मनाना चाहते थे l
क्यों कि उन्होंने बचपन से ही अपनी मम्मी को इतने बड़े अधिकारी की पत्नि होते हुए भी अपनी हर इच्छा को मारते देखा था l
वह कभी अपनी खुशी के लिए जी ही नहीं पाई थी l
बच्चें उनको वही खुशी देना चहाते थे l
उस दिन सभी ने बहुत ही दिल से घर को सजाया लक्ष्मी पूजन किया राधिका जी को उनकी बहुओं और दोनों बेटियों ने बहुत सजाकर उनको जब सजे हुए हाल में लेकर आये और केक कटवाया और उनके पसन्द के ही गिफ्ट उनको दिए जिन्हें पाकर वह फूट फूट कर रो पड़ी आज उनकी हर ख्वाहिश जो पूरी हुई थी परंतु उस उम्र में आकर जब की उनकी सारी इच्छायें मन में दफन हो चुकी
थी l
आज बच्चों ने खुद ही उनके पिता को भी बुलाया था माँ की खुशी में शामिल होने के लिए,
परंतु उनका अहंकारी मन पत्नि
के लिए बच्चों का प्यार स्वीकार नहीं कर पाया और उन्होंने उस दिन भी खूब सारी शराब पी और राधिका जी को जन्मदिन की बधाई
देने के बजाय उनके पास जाकर उनको कोसने लगे गालियाँ देने लगे, और कहने लगे वाह खूब जन्मदिन मना रही हो जिन बच्चों को मेरी कमाई के बल बूते पर पाला आज खुद तो कुछ कर नहीं पाई पर उन बच्चों की खुदा बन गई l
और मुझको सब के बीच गया गुज़रा इंसान बना दिया l
अरे अगर आज मेरी कमाई नहीं होती तो यह बच्चे कहीं मजदूरी कर रहे होते समझी और मारने के लिए हाथ उठाने लगे कि उनके बड़े बेटे ने उनका हाथ पकड़ कर झटक दिया l
“खबरदार आपने जो अब एक शब्द भी बोला हमारी माँ के खिलाफ आज उनकी हिम्मत और परवरिश से ही हमको संस्कार और सही मुकाम मिला है l
आपको तो कभी पता तक नहीं होता था कि आपके बच्चे किस स्कुल में पड़ते हैं उनके कितने मार्क्स आये वह किस विषय में कमजोर थे किस विषय में अच्छे उनको अपने केरियर के लिए क्या लेना चाहिए, उन्होंने कब कॉलेज की पढ़ाई खत्म की l
आप बस ऑफिसर बन कर ही बाहर के साथ घर में रहे पिता और पति कभी बने ही नहीं जो आज आप सम्मान के हकदार होते l जिसकी हकदार आज सिर्फ और सिर्फ हमारी माँ है l
उन्होंने हमे औरतों का सम्मान करना सिखाया ताकि हम अपने परिवार का पत्नियों का सम्मान करें उनको पूर्ण अधिकार और स्वतन्त्रता दे जिससे वह भी अपने फैसले ले सके जो कि आज तक उन्होंने झेला है वह उनकी बेटियां बहू को नहीं झेलना पड़े l
उनकी इसी शिक्षा के कारण आज हम लोगों खुशहाल जीवन जी रहे हैं l
आज ही हम अपनी माँ को अपने साथ ले जायेगे जी लिया उन्होंने अपना जीवन आपके साथ अब वह अपनी मर्जी अपनी इच्छा के अनुसार रहेंगी हमारे साथ बिना किसी बंधन के ll
और उन्होंने तुरंत ही बिना राधिका जी से पूछे समान पैक
किया और राधिका जी को लेकर सारे बच्चें चले गए l
आज उनको गए एक साल हो गया था थोड़े दिनों बाद फिर दीपावली थी पर उनके घर में अंधेरा था आज उनको समझ आ गया था कि कितने भी बड़े पद पर रहो मान प्रतिष्ठा रहे पर घर में परिवार में एक सामन्य इंसान बनकर रहना चाहिए l
मंगला श्रीवास्तव इंदौर
स्वरचित मौलिक कहानी
#अधिकार