जयकिशनजी की उम्र लगभग 65 वर्ष की हो गई थी। वह एक प्रसिद्ध कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति पद से सेवानिवृत्त हुए थे | उनका बचपन गरीबी में बीता था, लेकिन पढ़ने में बहुत मेहनती और कुशाग्र बुद्धी के थे | उनको सरकार की तरफ से कृषि पर शोध करने के लिए विदेश में भेजा गया था | उनकी किताबें आज भी कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाती है |
जयकिशनजी की पत्नी को कैंसर था, और उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी |उनको एक ऐसी औरत की तलाश थी जो उनके घर का काम संभाल सके |
उनके चारों बेटियों की शादी हो चुकी थी और, उनमे से दो बेटी तो टोरंटो मे रहती थी | एक बेटा इंजीनियर दूसरा डॉक्टर था, और दोनों बेटे की शादी भी डॉक्टर लड़की से ही हुई थी |और वे भी विदेश मे ही रहते थे| मैंने कभी नहीं देखा था उनको | हाँ एक दिन मैने ये सुना कि कोई मेरे पापा से कह रहा था, कि रात मे जयकिशनजी का छोटा बेटा आया था और सुबह वापस चला गया| हां छोटी बेटी एक बार अपने पति और बच्चों के साथ जरूर आयी थी | हम उनसे मिलने भी उनके घर गए थे | काफी मिलनसार थी | दो-तीन दिन बाद वापस अपने ससुराल चली गई और वह इसे वापस टोरंटो चली गई|
पत्नी की देखभाल करने के लिए कोई नहीं था | तो उनको एक ऐसी औरत की जरुरत थी जो उसकी देखभाल कर सकें |अचानक से एक दिन उनकी किसी रिश्तेदार एक विधवा औरत को लेकर आए और कहा कि, ये सुशीला है इसकी एक बेटी है कविता|इसके ससुराल वालों ने इस को घर से निकाल दिया |यह अपने भाई यहां रहती है |
जयकिशनजी उसको अपने पास रख लेते हैं |वह सुबह अपनी बेटी को लेकर आती और रात को वापस चले जाती |जयकिशनजी की पत्नी की तबीयत ज्यादा खराब रहने लगती है तो उन्होंने उसे अपने घर में ही एक कमरा दे दिया, और अब सुशीला कविता के साथ रात दिन उन्हीं के यहां रहने लगी | हालाँकि किशन जी का तीन मंजिला घर था जिसमें से दो फ्लोर पर खुद ही रहते थे | पत्नी के गुजरने के बाद उनके दोनों बेटा ही आए थे बहु तो नहीं आई हां बेटियां जरूर आयी थी| तेरहवीं के बाद सब चले गए रह गए तो सिर्फ जयकिशनजी और वह औरत सुशीला और उसकी बेटी कविता ।
कविता को जयकिशनजी अपनी पोती की तरह प्यार करते थे । उन्होने कविता का नामांकन एक विद्यालय मे कर दिया ।जयकिशनजी का ध्यान सुशीला बहुत अच्छे से रखती थी ।कभी-कभी जयकिशनजी के गांव से कोई भाई भी आ जाता या उनके बच्चे आ जाते थे उनसे मिलने ,पर उनके अपने बच्चे दिल्ली से आ कर वापस लौट आते थे उनसे बिना मिले, क्योंकि उनको जयकिशनजी जब से मिलने के लिए बिहार जाना पड़ता ।
खैर कोई बात नहीं जयकिशनजी से मिलने कोई ना कोई आते ही रहता था।एक दो उनके पढाये विद्यार्थी इसी शहर मे कोई प्रशासनिक अधिकारी बनकर तो कोई प्रोफेसर बनकर आये थे । वे भी इनसे मिलने आते रहते।
कविता ने जब बारहवीं पास किया तो जयकिशनजी ने उसकी शादी एक लड़के से कर दी ।उसी शहर में जिसका की मोटरसाइकिल का शोरूम था । जयकिशनजी ने सबको बुलाया अपने बच्चों को भी पर बच्चों ने बहाना बना दिया और नही आये ।बड़ी धूमधाम से कविता की शादी जयकिशनजी ने की ।
सुशीला के लिए तो जयकिशनजी भगवान से कम नहीं थे । अब तो जयकिशनजी की चर्चा पूरे शहर में होने लगी थी ।कोई भी उनसे मिलकर किसी भी प्रकार की मदद मांगने आता तो वो इंकार नहीं करते ।
पर उनके अपने बच्चों ने उनकी खबर बिल्कुल ना के बराबर लेते । हां एक दो महीने में जब उनका छोटा बेटा दिल्ली आता तो फोन जरूर कर लेता उनको, पर छोटी बेटी अक्सर फोन कर लेती ।
सुशीला उनकी सेहत का बहुत ख्याल रखती, पर ढलती उम्र में अनेक रोगों ने घेर लिया । जयकिशनजी की तबीयत अब ज्यादा खराब रहने लगती है । तब कविता को सुशीला ने अपने पास ही बुला लिया ।अब दोनो मिलकर उनकी सेवा करती । जयकिशनजी ने अपने घर को सुशीला और कविता के नाम कर दिया ,ताकि उनके बाद सुशीला को भटकना न पड़े ।
एक दिन जयकिशनजी दुनिया छोड़कर चले गए ।उनका बड़ा बेटा आया और मुखाग्नि देकर चला गया ।वह कविता के पति को तेरहवी करने के लिए पैसे देकर दूसरे दिन वापस चला गया । सुशीला और कविता ने सारी विधि विधान से उनकी तेरहवी की ।जयकिशनजी जिन बच्चों को पैदा किए और उन्हें उस लायक बनाया ।वही बच्चे विदेश में जाकर उन्हें बिल्कुल भूल गए।
और कोई रिश्ता नहीं था सुशीला और कविता से उसने जयकिशनजी को कभी अकेला होने का एहसास तक नहीं होने दिया ।पर सच कहते हैं कि ऊपरवाला कहीं ना कहीं किसी से कोई रिश्तो की डोर बांध जाता है । जो कि सुशीला और कविता के लिए जयकिशनजी थे ।
आज सुशीला बूढ़ी हो गयी है,और अपनी बेटी नाती नातिन के साथ उसी घर में रहती है ।
मीनाक्षी राय की कलम से एक सच्ची घटना पर आधारित ।कहानी के पात्रों के नाम काल्पनिक है।