उपमा के ललाट पर पसीना छलक आया! सांसें फूलने लगी पकड़े जाने के भय से वे नीली पड़ गई…
“चोरी… हां चोरी ही तो है… दो मिठाईयों की चोरी… वह भी अपनों के घर में। “
मोतियाबिन्द से ऐसे ही आंखों की रौशनी धुंधली हो गई है… चारो ओर धुआँ सा दीखता है। आई थी फ्रिज से हरी सब्जियां निकालने… मिठाई के डब्बे पर नजर पडते ही बड़ी मुश्किल से वश में की हुई जिह्वा ने धोखा दे दिया। मिठाईयां उनकी कमजोरी है।
समय भी कैसा-कैसा दिन दिखाता है कभी चित्त कभी पट…
नित्य नये पकवान बनाकर खाने-खिलाने में उन्हें आत्मसंतोष होता था। पति के दो नंबर की कमाई का बड़ा हिस्सा… खाने खिलाने में ही खर्च होता था। उनके पति आधुनिक युग के उन चंद भाग्यशाली लोगों में से थे जिन्हें नियमित उपरी कमाई होती थी। कड़कडाते नोट, खनखनाते सिक्के… उसपर मिठाई के डिब्बे।
जब बिना किसी विशेष परिश्रम के चंद हेराफेरी से ही घर में सारी सुख-सुविधाएं मिल जाये तब चिंता किस बात की… पैसा पानी की तरह आने लगा। कीमती कपड़े, शानदार दावतें… पीने-पिलाने का सिलसिला… चांदी के सिक्कों के समक्ष अवैध कमाई सिर चढकर बोलने लगा।
“ऊपरी कमाई का कोई भरोसा नहीं… कहीं एक दिन फांसी का फंदा न बन जाये “वृद्धा सास की सलाह पर दोनों पति-पत्नी बौखला गये थे, “बैठे-बैठे तर माल मिल रहा है तो हमें श्राप दे रही हो… वाह रे जमाना… “!
फिर जो वृद्धा चुप हुई… स्वर्ग ही सिधार गई। जो थोड़ा बहुत रोक था वह भी साफ हो गया।
लेकिन सर्वविदित है कि जब बाढ का पानी घर में घुसता है तब अपने साथ सांप बिच्छू …बाहर की गंदगी भी लाता है।
उपमा का ज्यादा समय बनाने खिलाने में ही बीत जाता था। मेवा मिष्टान्न ,रोहू मछली, मुर्ग कबाब… तरह-तरह के बिरयानी …पूये पकवान… दोनों हाथ घी तेल मसाले में डूबे रहते। दोनों बेटा रवि अवि और बेटी शीलू अपने पिता के उपरी कमाई के अहंकार में आकंठ अकडे़ रहते।
पढाई लिखाई …अच्छी बातों से कोई सरोकार नहीं। फैशनेबल बेटी हीरोइन बनने का ख्वाब पाले अपनी ही तरह बेढंगी उसके हां में हां मिलाने वाली लड़कियों से घिरी रहती।
“आज उस होटल चलते हैं… वहाँ बहुत लजीज व्यंजन मिलता है “कोई उसकाती।
“हां हां चलो… “शीलू अपना रौब जमाती ।
“इस दूकान में शापिंग करते हैं… फलाने जगह सैर करने चलते हैं। “
अपनी बेढंगी सहेलियों को अपने पिता के घूस के पेसो से खरीददारी कराना, घुमाना फिराना शीलू को सेलिब्रेटी वाला फीलिंग कराता।
पिता के घूस की कमाई की क्षणिक तीव्र आलोक को शाश्वत सत्य मान बैठे दोनों बेटे अपने लोफर अवारा दोस्तों के साथ पीने-पिलाने का शौक पाल बैठे। पढाई-लिखाई में सिफर।
शराब है तब पिलाने वाली साकी…उपमा के बेटों ने नित्य नई लड़कियों को फंसाना शुरू किया… ऐय्याशी दादागिरी करने लगे।
बेटी शीलू अपने भाइयों से दो कदम आगे ही थी। ऊटपटाँग कपड़े पहनती… कभी दायें तो कभी बायें जुल्फें कटवाती… मुंह टेंढाकर अंग्रेजी मिश्रित हिंदी बोलती…सैर सपाटा पिकनिक नित्य नई फालतू सहेली और बाॅय फ्रेंड में नवीनता ढूंढती… लोग चटखारे लेते।
इस सबसे बेखबर उपमा अपने बेशकीमती गहनों कपड़ों संपन्नता के प्रदर्शन में अपनी दुनिया समझती।
पति को भी कोई फिक्र नहीं, “बहती गंगा में हाथ धोओ भाग्यवान…!”
“आजकल रवि, अवि और शीलू के पांव घर में नहीं टिकते”उपमा पति को दिल की बात बताती।
“तुम चिंता मत करो उपमा, इतना कमाकर रख दूंगा कि मेरे बेटे सात पुश्तों तक राज करेंगे… बेटी को दहेज से लाद दूंगा… पैसे में बहुत ताकत है “जोरदार ठहाका लगाते घूसखोर पति।।
आखिर कबतक… गृहस्वामी के काले कारनामें खुलने लगे थे। उनका विभाग चौकन्ना हो गया था। एक दिन रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े गये। जेल गये। कोर्ट कचहरी का चक्कर शुरू हुआ।
संपत्ति सीज हो गई …खर्च में कटौती होते ही बेटी बेटा बौखला उठे, “हमने कहा था घूस लेने के लिये “।
वही यार दोस्त जो उनके पैसों पर ऐश करते थे… किनारे हो गये।
उपमा जैसे सोते से जागी… जिस अवैध कमाई को वह सोने का खान समझती थी वह तो कलंक, जगहंसाई की काली कोठरी निकली। “हे ईश्वर, अब मैं कहाँ जाऊं…क्या करूं! “
“अब तुमलोग कुछ उपाय करो “बेटों पर समझाने का कोई असर नहीं… वे चीखने-चिल्लाने लगे, “हमें पैसे चाहिए कहीं से भी “!
खर्चे पर रोक लगते ही बेटी बेटा मां को ही भला-बुरा कहने लगे। उनके हृदय में संवेदना नाम की चीज ही नहीं थी… वे तो मौजमस्ती, हंसी-मजाक को ही जिंदगी समझ बैठे थे। जिन हाथों में रुपये के बंडल रहते थे अब वह हाथ खाली था। खाने को लाले पड़ गये… दोस्तों ने किनारा कर लिया।
बेटी के आवारा मित्रों ने उसे दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका, “अपना थोबड़ा देखी है, चली है हीरोइन बनने”इस अप्रत्याशित अवहेलना तिरस्कार से मगरुर बेटी ने खाट पकड़ लिया। दिमाग की चूलें हिल गई है… समझ में नहीं आ रहा है, “कि क्या करुं! “
रिश्वत के आरोप में पिता जेल क्या गये… समाज ने उन्हें बहिष्कृत ही कर दिया ।
जो पास-पडोसी उपमा के कीमती गहने-कपड़े को ललचाई दृष्टि से देखते थे… उनकी उच्चवर्गीय ठाट पर आहें भरा करते थे… वही अब उन्हें हिकारत की नजर से देखते हैं।
” वाह री दुनिया “!
दोनों निकम्मे बेटे पिता के साथ कोर्ट कचहरी करने के बजाय घर छोड़कर कहीं चले गए।
बेटी चल बसी। सबकुछ बिक गया …लेकिन पति को छुडाया नहीं जा सका। आज सात वर्ष हो गये …पति को उम्र कैद हो गई… शायद कभी दोनों बेटे लौट आयें… यही आस लिये उपमा किसी दूर के रिश्तेदार के यहां शरण ली है।
बदले में दोनों शाम खाना बनाती है… आंखें बरसती रहती है… अपनी नादानी बेवकूफी पर… वह अगर पति को गलत रास्ते पर जाने से रोकती तो यह दुर्दिन नहीं देखना पड़ता। बेटी की याद दिल से नहीं जाती, “हे ईश्वर मेरे बेटों को सद्बुद्धि देना.. .पति को सच्चाई का सामना करने का साहस देना. ..कोई इंसान गलत काम न करे उसका दुष्परिणाम बहुत भयावह होता है। “
शायद सच्चे मन की प्रार्थना ईश्वर ने सुन ली.. .दोनों बेटे परिवर्तित रुप में आ खडे़ हुये, “मत रो मां. ..हमने बहुत खाक छानी.. फिर .सच्चाई, इमानदारी, परिश्रम का मार्ग अपनाया, सड़क किनारे अपना छोटा सा ढाबा है.. .ग्राहकों की सेवा करते हैं और अपनी गुनाहों के लिए क्षमाप्रार्थना… हमारे साथ चलो… पिताजी की कानूनी लड़ाई भी हम लडेंगे …!”
आज का दिन एक नई जिंदगी लेकर आया। जिसने भी सुना उसी ने स्वीकारा, “इंसान से गलती होती है लेकिन सुधार ले वही चतुर सुजान! “
जैसे उपमा के दिन फिरे वैसे ही पढने सुनने वालों की मनोकामना पूर्ण हो।
सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा ©®