रिश्तों में ये कैसी स्पर्धा – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

“कहाँ हो अनीता? अरे भाई महेश भैया का फ़ोन आया था| मिलन का आईआईटी में सिलेक्शन हो गया है।” अंश की तरफ देखते व्यंग से बोले “एक हमारे साहबजादे हैं।”

अंश ने दूसरी तरफ मुँह घुमा लिया।

मिलन अंश का ममेरा भाई है…। पढने में बहुत तेज है। तो आई.  आई. टी.  निकाल लिया।  जहीन बुद्धि का है,  और मामा, मामी भी उसे दूसरों का उदहारण  नहीं देते.। यहाँ तो किसी का भी बच्चा आगे बढ़े… भले मौसी का हो, या मामा का, ये चाचा का, बुआ का…. शामत  अंश की आती है..। किसी के घर कुछ अच्छा हो,।  तो भी आशीष और अनीता को दिक्कत हो जाती है। सिर्फ पढाई में नहीं हर चीज में होड़ है।

अंश पढ़ने में औसत है.. पर हर माता -पिता की तरह उसके माता -पिता  के भी सपने ऊंचे है…. उनके घर में हर रिश्ते को तुलनात्मक भाव से देखा जाता है..। मौसी ने अपनी शादी की सालगिरह पर महंगी सिल्क की साड़ी खरीदी तो झट मम्मी अनीता ने  उससे ज्यादा महंगी खरीद लाई…..। जबकि कोई अवसर भी नहीं था। पर ईष्या का क्या कहना।

अंश और उसके भाई वंश की तुलना हमेशा ममेरे भाइयों से होती है…। कई बार मम्मी को समझा चुका है,  कि  हर बच्चा एक सा नहीं होता…. सबकी प्रतिभा अलग -अलग होती है..। पर वे मानने को तैयार नहीं…। कल दोनों मामा के घर जायेगे।  और मामा मामी के सामने खूब  लाड़ प्यार दिखाएंगे मिलन को… और घर आते ही अंश की  शामत…।

 ऐसा वे मामा के बच्चों के साथ ही नहीं करते… वरन बुआ, चाची और मौसी के बच्चों के साथ भी तुलना करते है।

कहने को सब रिश्तेदार है पर एक दूसरे की उन्नति, उनके जलन का कारण बनती है। हमारा घर देख, ताई जी ने भी  उसीतरह का घर बनवाया।…

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 छोटा भाई ज्यादा कमाता है तो बड़े भाई के परिवार में भी,  उन्हे छोटे भाई का उदहारण दिया जाएगा। कहने का तात्पर्य है की रिश्ता कुछ भी हो,,  रिश्तेदार टांग खींचने से बाज नहीं आते है… बस थोड़ा सा मौका मिल जाये।

एक दिन अंश ने तय किया की सब को इकट्ठा करके उनसे पूछा जाये, कि  वे लोग रिश्तेदार है तो आपस में होड़ क्यों?…. फिर उसने सोचा,  पहली  शुरुआत घर से होनी चाहिए…. मम्मी से पूछा तो उन्होने  झिड़क कर बोला .. क्या बेवकूफों वाली बात कर रहा… भला हम क्यों ईष्या करेंगें…। बेटे को डांट कर भगा  दिया, पर दिल में लगा कि अंश सही कहा रहा…। शादी से पहले जो भाई बहन आपस में जान हुआ करते थे,

अब सबका परिवार हो गया और वो भाई बहन का रिश्ता नये रिश्तों में दब गया…। कल को अंश और वंश ऐसा करेंगें … जो देख रहे वहीं करेंगें….। अनीता ने तय किया कि अब वो अपने को बदलेंगी और हर रिश्तों का सम्मान करेंगी।

स्पर्धा के इस  दौड़ ने, रिश्तों की गरिमा  भी ख़त्म कर दी। पहले दूरदराज का भी कोई लड़का पढाई या किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ा तो पूरा खानदान उस पर गर्व करता था। पर अब तो नजदीकी रिश्ते में भी कोई आगे बढ़ा,  तो उस पर कोई गर्व नहीं करेगा, उल्टा मीनमेख निकलेगा…।  अरे रिश्वत दे के एडमिशन करा  दिया होगा… वगैरह…।

ये कैसे रिश्तेदार जो एक दूसरे कि खुशी में, खुश नहीं होते। किसका बच्चा पढ़ने में ज्यादा अच्छा है, किसने पहले गाड़ी खरीदी, कौन पहले यूरोप ट्रिप  पर गया…. कई मसले है जिन पर स्पर्धा है..। अनीता ने तो अपने को बदलने का निर्णय ले लिया…। कोई भी रिश्ता हो, उसको प्यार और सम्मान देने से बच्चों को भी सम्मान देना आयेगा. ..विरासत में प्यार और सम्मान देना है ना कि स्पर्धा की  अंधी  दौड़…।बच्चे वहीं सीखते है… जो देखते है।

संगीता त्रिपाठी

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