सरिता के बहू बेटे की शादी की पहली सालगिरह थी उसने पूरे उत्साह और अपनी हैसियत के अनुसार सालगिरह मनाई।कुछ नजदीकी रिश्तेदारों व आस पड़ोस के लोगों को भी बुलाया था।खाना उनके बेटे नीरज ने बाहर से ऑर्डर कर दिया था।सरिता ने बेटे नीरज को पैंट-शर्ट व बहु रिया को साड़ी और शगुन तोहफे में दिए।अच्छी खासी रौनक लग गई थी।जो मेहमान आए वो भी तोहफे देकर गए थे।सरिता के पति नहीं थे।बेटे की नौकरी ठीक ठाक थी,गुजारा हो जाता था।शादी के समय बहू के लिए बेटे ने ऊपर दो कमरे नए बनवाए थे,बहुत प्यार करता था अपनी पत्नी से।उसकी हर छोटी बड़ी जरूरत का ख्याल रखता था।सरिता की बेटी नहीं थी इसलिए वो भी रिया को बेटी जैसा ही प्यार करती थी।पर रिया को किसी के प्यार की कोई परवाह नहीं थी।
पार्टी के बाद सरिता ने सोचा उसने और बेटे ने इतना अच्छा इंतजाम किया था बहू तो बहुत खुश हो गई होगी।पर ये क्या..! मेहमानों के जाने के बाद रिया मुँह फुलाए घूम रही थी।नीरज ने जब उससे कहा,कि चलो आओ देखते हैं किसने क्या दिया तो वो तमतमाते हुए बोली-“मुझे कोई इंटरेस्ट नहीं इन सो कॉल्ड गिफ्ट्स में और जो शगुन के पैसे आए हैं वो तुम रख लो इतना खर्चा जो किया है तुमने।”
“बहू कोई कमी रह गई क्या?”सरिता दुखी होते हुए बोली।
“माँ जी मैंने आपके बेटे से कहा था,कि मुझे फर्स्ट एनिवर्सरी पर सोने के कंगन चाहिए वो उससे नहीं दिलवाए गए।मैं ये कांच की चूड़ियां पहनते पहनते बोर हो चुकी हूं।”
इससे पहले की सरिता कुछ बोलती नीरज बोला-“माँ मैंने इसको समझाया था,कि अभी दिवाली पर मकान की पेंटिंग करवाने में खर्चा हो गया है कुछ समय बाद दिलवा दूँगा।और आपने अभी तो इसे पहले करवचौथ पर सोने के टॉप्स दिए थे ना।”
“हाँ तो कौनसा एहसान कर दिया।सभी देते हैं अपनी बहुओं को।” रिया गुस्से से पैर पटकते हुए अपने रूम में चली गई।
सरिता बहुत दुखी हुई और नीरज का भी दिल टूट गया।बेचारे ने इतने शौक से अपना रूम सजाया था रिया को स्पेशल फील कराने के लिए।सोने के कंगन को छोड़कर, उसके बस में जो था उसने वो सब किया लेकिन रिया ने नीरज की भावनाओं को अपनी चाहत से कुचल दिया।
अच्छा भला खुशी का माहौल उदासी में बदल गया।
रिया के मम्मी पापा की गाड़ी लेट हो गई थी इसलिए वो पार्टी के बाद पहुंचे।सरिता ने रिया के मम्मी पापा का अच्छे से स्वागत किया पर रिया बड़े अनमने मन से अपने मम्मी पापा से मिली और फिर उन्हें सीधा अपने कमरे में ले गई।
“क्या हुआ बेटा ! आज तो खुशी का दिन है फिर तू इतनी उदास क्यों लग रही है?तेरी तबियत तो ठीक है ना?”रिया की मम्मी का बस इतना कहना था कि रिया जोर जोर से चिल्लाने लगी -“आपने मेरी शादी कैसे कंगालों के घर कर दी?मेरी सहेलियों की फर्स्ट मैरिज एनिवर्सरी पर सभी के पतियों ने डायमंड के कंगन दिए और मेरे पति की तो सोने के कंगन दिलवाने की भी औकात नहीं है।मुझे तो अपनी सहेलियों को बताने में भी शर्म आ रही है कि मुझे एनिवर्सरी पे एक मामूली सी साड़ी मिली है।रिया उटपटांग बोले जा रही थी उसके मम्मी पापा उसे चुप करा रहे थे मगर वो नहीं मानी।तभी नीरज और सरिता भी वहां आ गए।
नीरज ने रिया के मम्मी पापा के आगे बड़ी शालीनता से अपनी बात रखी तो वो बोले -“बेटा, तुम्हें कुछ कहने की जरूरत नहीं है।हम जानते हैं तुम बहुत अच्छे पति हो और सरिता जी एक अच्छी माँ ही नहीं अच्छी सास भी हैं जो अपनी बहु को बेटी की तरह प्यार करती हैं।कहीं ना कहीं हमारी ही परवरिश में कमी रह गई जो हमारी बेटी अच्छी बहु नहीं बन सकी।”
“समधन जी आप ऐसा ना कहें।रिया बहुत अच्छी बहु है..बस कई बार वो ऊपरी चमक धमक से इतना प्रभावित हो जाती है कि उसके आगे उसे सच्चा प्यार भी दिखाई नहीं देता।धीरे धीरे समझ जाएगी।” सरिता रिया का पक्ष लेते हुए बोली।
“रिया बेटा,मैं तो तुझे यही कहूंगी कि सोने की चमक के आगे अपने ससुराल वालों के प्यार की चमक को फीका न पड़ने दें।क्योंकि प्यार किस्मत वालों को ही मिलता है।तू तो जानती है ना कि तेरे दादा दादी ने कभी मुझसे प्यार नहीं किया और ना कभी बहु जैसा सम्मान दिया।सोने की कंगन की बात तो छोड़ो उन्होंने कभी हमारी एनिवर्सरी पे विश तक नहीं किया।तुझे जो प्यार व सम्मान मिल रहा उसकी कद्र कर।”कहकर रिया की मम्मी रोने लगीं।
माँ को यूं रोता देखकर रिया का दिल पसीज गया।उसे अपनी गलती का एहसास हो गया।उसने अपनी मम्मी के आंसू पोंछे और फिर सारी कड़वाहट भुलाकर सरिता और नीरज से अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी।उसे समझ आ गया,कि पति और ससुराल वालों का प्यार व साथ हो तो फिर कोई फर्क नहीं पड़ता..हाथों में कांच की चूड़ियां हो या फिर सोने के कंगन।
कमलेश आहूजा