रिश्तों में बढ़ती दूरियां – वीणा सिंह : Moral Stories in Hindi

आज मेरा मेरे पति समीर और मम्मी जीके बीच का रिश्ता त्रिकोण के तीसरे कोण की तरह हो गया है… एक छत के नीचे रहकर भी अजनबी से हो गए हैं एक दूसरे के लिए… दोनो बच्चे कौस्तुभ और काव्या अपनी जिंदगी और कैरियर में  लगभग दोनो में सेट हो गए हैं… थोड़ा वक्त और…समीर कोशिश कर रहे थे कि हमारा रिश्ता सुधर जाए पर मेरी ठंडा प्रतिक्रिया देखकर..

             Veena 

                              अठारह साल की उम्र में मैं समीर की जीवन संगिनी बन ससुराल आ गई.. बैंक में पीओ समीर का रिश्ता पापा के एक कलीग ने तय करवाया था. रिश्ते में समीर के मामा लगते थे.. समीर उनकी मम्मी और पापा एक बड़ी बहन जिसकी शादी हो चुकी थी.., छोटा परिवार और नौकरी वाला लड़का देख पापा ने चट मंगनी पट ब्याह कर दिया…

ग्रेजुएशन भी पूरा नहीं हुआ था… ससुराल में कितने सपने संजो कर आई थी पर.. मम्मी जी बहु नही कठपुतली उतारा था जिसे अपने हिसाब से नचा सके.. समीर आदर्श बेटा थे पर पति नही बन पाए…

                मम्मी जी हर रोज किसी न किसी बात पर धमकी देती इसके बाप को बुलाओ इसको ले जाए.. ऐसी बेलूरी लड़की हमारे मत्थे पड़ गई है… कितने भी अच्छे से खाना बनाती मगर सब्जी में तेल बहुत है कभी नमक जहर है तो दाल इतनी पतली क्यों है… सुबह सुबह मूड खराब कर दिया इतनी घटिया चाय पिलाकर..

                    समीर भी अपनी मां के हां में हां मिलाते.. मम्मी भेजो इसे इसके बाप के घर… कई बार समीर अटैची मेरे सामने पटक देते निकलो यहां से… मैं तुमको छोड़ सकता हूं पर अपनी मां को कभी नहीं.., मैं उनका इकलौता बेटा हूं… पत्नी तो मुझे कई मिल जायेगी पर मां नही..

            खुशमिजाज जिंदादिल लड़की के कोमल मन और दिल पर धीरे धीरे ये घाव गहरे होते गए…

 पापाजी को खाना देने जाती तो दोनो हाथ से थाली पकड़े रहती तो कभी कभी सर से आंचल गिर जाता.…पापाजी चिल्लाकर मम्मी जी को बताते.. मम्मी जी मुझे बुरा भला कहती और फिर समीर को बैंक से आने पर नमक मिर्च लगाकर बताती ससुर के सामने आंचल गिरा कर अपना खुबसूरती दिखाती है.. समीर कहते अगली बार गिरा आंचल तो माथे पर कील ठोक दूंगा… कौस्तुभ पेट में था सातवां महीना पूरा हो गया था, पैर में सूजन हो गई थी और भी परेशानी थी पर मम्मी जी सारे काम पहले की तरह हीं करवाती थी… दोपहर में जब समीर बैंक में रहते और पापाजी अपने दोस्त के

इस कहानी को भी पढ़ें: 

सिंदूर – रंजीता पाण्डेय : Moral Stories in Hindi

घर ताश खेलने चले जाते तो पूरे शरीर का मालिश मुझसे करवाती… झुकने में दिक्कत होती थी पर… सबसे कहती ज्यादा से ज्यादा काम मैं कोशिश करती हूं खुद कर लूं और सीमा आराम करे.. सारा दिन आराम करती है… उन दिनों भी समीर कभी प्यार से नही कहते सीमा तुम थक गई हो मैं बिस्तर और नेट लगा देता हूं… सोफा पर बैठे बैठे आवाज लगाते मां का बिछावन और मच्छरदानी जल्दी लगाओ और मुझे भी नींद आ रही है तुम्हारे जैसा घर में आराम नही करना है बैंक जाना है…

            बच्चों के जनम के बाद भी कोई समझौता नही… मम्मी जी अपनी सहेलियों के साथ रोज कहीं ना कहीं घूमने निकल जाती… पापा जी की मंडली जुटती नाश्ता चाय के दौर चलते… कभी कभी खाना भी खा कर जायेंगे इनका भी खाना बनाओ, ये फरमान जारी हो जाता.. कौस्तुभ का गला कई बार रो कर फंस जाता.. थोड़ा बड़ा हुआ तो राशन जिस कार्टून में आता था उसमे बैठा कर काम करती क्योंकि एक बार वाकर से उलट जाने से मुंह फूट गया था… तीन साल बाद काव्या का जनम हुआ..

मायके से पापा दो बार बुलाने आए पर उन्हें मम्मी जी और समीर ने वापस भेज दिया… काव्या के जनम के बाद मुझे चार बोतल खून चढ़ाना पड़ा… मैने मम्मी जी से कहा एक महीने के लिए मायके चली जाऊं…मां बेटे ने सम्मिलित स्वर में कहा फिर वापस नही आना… पापा का ख्याल आ गया.…सब कहेंगे बेटी को ससुराल वालों ने निकाल दिया..मजबूरी में बर्तन धोने और झाड़ू पोंछा के लिए एक बाई को रखा गया वो भी तीन महीने के लिए…

                बच्चे मां की स्थिति को समझने लगे थे… अकसर दादी और पापा से उनकी बहस हो जाती… ठिकड़ा मेरे सर पर फूटता.. बच्चों के कान भर रही है…

         वक्त गुजरता रहा… कौस्तूभ एमडी कर रहा है और काव्या का अगले साल सीए की पढ़ाई पूरी हो जाएगी… बेटा मेरे से स्पष्ट कह दिया है मैं ज्वॉइन करते हीं आपको ले जाऊंगा आप का कोई तर्क मुझे मान्य नहीं होगा… मैने कहा दादी को इस उम्र में किसके भरोसे छोड़ दूं…. कौस्तुभ बोला मुझे कुछ नहीं पता मम्मी मैं नौकरी हीं नहीं करूंगा

और किसी आश्रम में चला जाऊंगा… मैने अपने आप से वादा किया है… पापा और दादी अब कुछ नहीं कर सकते… आप मेरे साथ चलेंगी… ये एलान कौस्तुभ सबके सामने कर दिया है.. काव्या भी उसके फैसले में उसके साथ है.. समीर और मम्मी जी कभी गुस्सा दिखा कर  कभी मिन्नतें कर के मुझे कौस्तुभ के फैसले को नही मानने के लिए कोशिश कर रहे हैं…. गिरगिट से भी तेजी से रंग बदल रहे हैं समीर.. पति पत्नी का सात जन्मों का साथ होता है.. सोच लो मरोगी तो आग भी नही दूंगा… घर से कदम निकालने के पहले अपने सिंदूर और मंगलसूत्र निकाल के रख देना…

                 कौस्तुभ चंडीगढ़ पीजीआई ज्वाइन कर लिया है..

              आज आ रहा है मुझे लेने… हमारा कल का फ्लाईट है…

इस कहानी को भी पढ़ें: 

मृग मरीचिका – मधुसूदन शर्मा

 

                    समीर बेटे से कह रहे हैं हम भी साथ जायेंगे… मैं तुम्हारा बाप हूं… बेटा बोला कदापि नहीं.. तो तुम्हारी मां अपना सिंदूर पोंछ कर और मंगलसूत्र यहीं उतार कर जाएगी, और मैं मरने के बाद इसे आग भी नही दूंगा.. #रिश्तों में इतनी दूरियां आ गई थी की सिंदूर और मंगलसूत्र बेमानी हो गए थे..

 

और सुनो नालायक सपोले तुम्हे अपनी जायदाद से बेदखल कर दूंगा.. बेटा बोला आप अपनी सोचिए… मुझे यहां फिर कभी लौट के नही आना है.. मेरी दुनिया मेरी मां है.. मैं काव्या और मां बुरा सपना को भूल कर नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करेंगे…मैने भी सिंदूर पोंछ दिया और मंगलसूत्र समीर के हाथ में रखकर दहलीज से कदम बाहर निकाल दिए…

              

Veena singh

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!