अरुणा की बहू पाँच महीने से गर्भवती थी।दो वर्ष पूर्व ही उसने अपने बेटे का बड़े ही धूमधाम से विवाह किया था।मुँह-दिखाई के समय महिलाओं ने उसकी बहू को जी भर के ‘दूधो नहाओ, पूतों फलों’ का आशीर्वाद दिया था।अपने आसपास के घरों और रिश्तेदारों के यहाँ किलकारियों की आवाज़ सुनती तो उसका भी मन करता कि कोई उसे भी ‘दादी’ कहकर बुलाए।एक बरस बीत जाने पर जब बेटे-बहू ने कोई खुशखबरी नहीं दी तो उसका मन आशंकित हो उठा था।लेकिन माँ भगवती की कृपा से अब उसकी इच्छा पूरी होने जा रही थी।
वह आने वाले नये मेहमान का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी।जैसे- जैसे समय नज़दीक आ रहा था,बहू की तरफ़ उसका प्यार भी बढ़ता जा रहा था।बहू की इच्छा न होने पर भी वह दूध,फल और मेवे यह कहकर खिलाती थी कि तुम्हें नहीं, अपने पोते को खिला रही हूँ।बहू का काम करना तो पहले ही बंद कर दिया था,अब चलना-फिरना भी, कि उसके पोते को कोई कष्ट न हो।
अरुणा का इंतज़ार खत्म हुआ और उसकी बहू ने एक प्यारी-सी परी को जन्म दिया।घर में सभी बहुत प्रसन्न थें लेकिन वह नहीं।उसे तो अपना वंश बढ़ाने के पोता चाहिए था लेकिन पोती ने आकर उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया था।वह बोलती तो कुछ नहीं थी परन्तु उस नन्हीं-सी बच्ची के प्रति उसका उदासीन रवैया बहू से छिपा न रह सका।उसने पति और ससुर से इस बात का ज़िक्र किया।उन दोनों ने उसे समझाने की बहुतेरी कोशिश की लेकिन फिर भी वह अपनी पोती को अपना न सकी।
कुछ दिनों बाद अरूणा की बेटी सौम्या अपनी भाभी और भतीजी से मिलने अपने मायके आई।भतीजी को गोद में लेकर मुस्कुराते हुए वह भाभी से बोली, “थैंक यू भाभी!आपने मेरी सृष्टि को खेलने के लिए एक प्यारी-सी गुड़िया दे दी है।” उसकी बात सुनकर भाभी चुप रही।भाभी का उदास चेहरा देखकर वह समझ गई कि कोई बात तो अवश्य है।
अगले दिन जब सौम्या ने अपनी माँ से कहा कि माँ, आप परी की मालिश कर दें तो अरुणा टाल गई और अपनी तीन वर्षीय नातिन के साथ खेलने लगी।माँ का व्यवहार उसे अच्छा नहीं लगा,वह बोली, ” माँ,जब मैं पैदा हुई थी तब भी क्या आप मुझसे भी ऐसा ही बर्ताव करती थीं जैसा कि परी के साथ कर रहीं हैं?मैं जानती हूँ कि माँ कि आप बेटा चाहती थी और मैं तो…।” कहते हुए उसका गला भर्रा गया।
“नहीं-नहीं बिटिया,तू तो मेरी लक्ष्मी है,मेरी रानी बिटिया है।” अरुणा ने बेटी की बात को काटते हुए उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा। ” तो फिर माँ,आप परी के साथ ऐसा क्यों करती हैं? ज़रा सोचिये,परी के साथ आपकी दूरी को देखकर भाभी को कितना दुख होता होगा।और माँ, आपको याद तो होगा,जब सृष्टि का जन्म हुआ था तब मेरी सासूमाँ ने मुझे कितना सुनाया था।जब उन्होंने मुझे वंशहीन कहा था तब आपने ही उन्हें कहा था कि घर में कन्या का जन्म साक्षात् लक्ष्मी का प्रवेश होता है।फिर आज आपको क्या हो गया है?नातिन से प्यार और पोती से नफ़रत, आखिर रिश्तों में इतना फ़र्क क्यों माँ?” कहते हुए सौम्या का स्वर भीग गया।”
“हाँ बिटिया, तुम सही कह रही हो।मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई है।मेरी आँखों पर जो पुराने रिवाज़ों और अंधविश्वासों का परदा पड़ा हुआ था,उसकी वजह से मैं अंधेरे में थी और सच को नहीं देख पा रही थी।तुमने मेरी आँखों पर पड़ी धूल को साफ़ कर दिया है।मैं अभी जाकर अपनी परी की मालिश करती हूँ।” कहते हुए अरुणा ने सृष्टि को बेटी की गोद में रखा और बहू के कमरे में चली गई।
बहू के पास परी को सोते देखा जो नींद में भी मुस्कुरा रही थी जैसे वह कोई मीठा स्वप्न देख रही हो, तो अरुणा की दबी ममता जाग उठी।उसने परी को अपनी गोद में उठाया और पूरे घर में घूमते हुए गुनगुनाने लगी,” मेरे घर आई एक नन्हीं परी….।”
— विभा गुप्ता
मैंगलोर, कर्नाटक