सौम्या के माता-पिता के गुजरते ही उनका घर रिश्तेदारों से भर गया था क्योंकि सौम्या के माता-पिता बहुत पैसे वाले थे और सौम्या उनकी इकलौती बेटी थी । सौम्या के मामा ने आखिर बाजी जीत ली और सौम्या को अपने घर ले जाने में कामयाब हो गए थे । वे ख़ुशी से अपने घर सौम्या को लेकर चले गए थे ।
सौम्या को डिग्री तक पढ़ाया लिखाया और उसके लिए रिश्ते देखने लगे ।
सौम्या की क़िस्मत अच्छी थी कि उसके लिए मामा जी के पहचान वालों की तरफ़ से ही रिश्ता आया था ।
लड़का प्रकाश प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था । उनके घर में एक बिनब्याही बेटी रत्ना और सास ससुर थे ।
मामा जी से उन्होंने दहेज की माँगा भी नहीं की थी । मामा जी ने उन लोगों के सीधे पन का फ़ायदा उठाकर सौम्या की शादी सीधे सादे तरीक़े से मंदिर में कर दिया था ।
सौम्या शादी करके अपने ससुराल चली गई । मामा जी ने अपने हाथ धो लिए और फिर कभी सौम्या की तरफ़ मुड़कर नहीं देखा ।
सौम्या के ससुराल पहुँचते ही घर में सबको एक ख़ुशख़बरी मिली थी कि प्रकाश को बैंक में नौकरी मिल गई है । उसने बहुत पहले बैंक की परीक्षा लिखी थी वह तो भूल भी गया था । आज अचानक ऑफर लेटर देखा तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा ।
ससुराल में सब कहने लगे थे कि इस घर के लिए बहू के कदम शुभ है । कुछ ही दिनों में सौम्या के शुभकदमों की चर्चा पूरे घर में फिर से होने लगी थी क्योंकि उसकी ननंद रत्ना की शादी एक अच्छे घर में तय हो गई थी ।
रत्ना शादी करके चली गई थी । सौम्या की उसके साथ खूब पटती थी दोनों भाभी ननंद कम सहेलियाँ ज़्यादा थी । सौम्या को खाली घर काटने लगा था ।
इस बीच सौम्या को पता चला कि वह माँ बनने वाली है । इस ख़बर को सुनकर घर में सब बहुत खुश हो गए थे और उसकी सब खूब देखभाल कर रहे थे ।
सौम्या ने एक खूबसूरत से बेटे को जन्म दिया था । उसका नाम सबने मिलकर सोहन रखा । सब के बीच सोहन पलने लगा । इस बीच सौम्या के ससुर जी को दिल का दौरा पड़ा और वे स्वर्ग सिधार गए । उनकी याद में सास ने भी एक महीने में ही सबको छोड़कर पति के पास चली गई थी । अब सौम्या इस घर की मालकिन बन गई थी । इसी बीच उसने एक बेटी परी को भी जन्म दे दिया था ।
रत्ना हर साल गर्मियों के मौसम में अपने बच्चों और पति के साथ भाई के घर आकर बिताती थी । बच्चे बड़े सब इन दिनों को बहुत ही मस्ती से गुज़ारते थे।
इस बार भी बच्चे सौम्या और प्रकाश बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे कि कब गर्मी की छुट्टियाँ आएँगी रत्ना अपने बच्चों और पति के साथ आएगी ।
सौम्या कपड़े सुखाने के लिए छत पर गई और उसी समय पड़ोस में रहने वाली विमला भी आ गई और हाल-चाल पूछते हुए कहा कि तुम्हारी ननंद कब आ रही है ।
सौम्या ने ख़ुशी से चहकते हुए बताया था कि बस पंद्रह दिन में वह आने वाली है। विमला ने कहा कि अच्छा बहुत खुश हो तुम ।
सौम्या ने कहा हाँ मैं क्या हमारे घर में सब खुश हैं । मुझे तुम्हारे बारे में सोचकर बुरा लगता है सौम्या अचानक विमला की बातें सुनकर सौम्या ने कहा कि यह क्या कह रहीं हैं आप?
हाँ सोचो आजकल की लड़कियाँ इस तरह से रिश्ते नहीं निभातीं हैं । तुम ख़ुद सोचो इन छुट्टियों में तुम्हें कहीं जाने का मौक़ा मिलता है ? नहीं ना सभी स्कूलों में छुट्टियाँ इसी समय एक बार ही होती हैं । उसमें भी वे लोग आ गए तो तुम्हारा क्या होगा सोचो । तुम कहीं जा भी नहीं पाती हो ।
सौम्या ने कुछ कहा तो नहीं परंतु उसके दिमाग़ में उथल-पुथल मचने लगा कि सही तो है हम तो कहीं जाते ही नहीं था ।
दूसरे दिन विमला खुद इनके घर आ गई और फिर से उसके दिमाग़ में गलत बातें भरने लगीं ।
सौम्या पर उन बातों का असर हुआ और उसने अपने पति से कहा कि इस बार हम अपने बच्चों के साथ बाहर घूमने चलते हैं ।
प्रकाश ने कहा कि देखो सौम्या , रत्ना अपने बच्चों के साथ आ रही है उसके टिकट बन गए हैं । इसलिए घूमने जाने का ख़याल अपने दिमाग़ से निकाल दो।
सौम्या रत्ना के आने के एक दिन पहले से ही बीमारी का बहाना बनाकर बिस्तर पर लेट गई । प्रकाश सौम्या का बर्ताव देख रहा था लेकिन उसने कुछ नहीं कहा था वह जान गया था कि सौम्या बहाना बना रही है ।
दूसरे दिन रत्ना अपने बच्चों को लेकर आई । सौम्या को बिस्तर पर पड़ा हुआ देख कर खुद ही सारे काम करने लगी । सौम्या की देखभाल करते हुए बच्चों को सँभालते हुए उसने पूरे दस दिन बिता दिए थे ।
उस दिन सौम्या कमरे में लेटी हुई थी और रत्ना घर के सारे काम ख़त्म करके भाई के साथ बालकनी में बैठी हुई थी और कह रही थी कि भाई भाभी इस बार बिचारी बहुत बीमार हो गई है । मुझे अच्छा लगा कि मैं उनके काम आ सकी हूँ । यह पंद्रह दिन ही मुझे मिलते हैं जो मैं आप लोगों के साथ बिताती हूँ ।
आपको मालूम है भाई इन पंद्रह दिनों में मैं इतनी खुश हो जाती हूँ कि नेक्स्ट एक साल मैं आराम से काम कर लेती हूँ । आपतो जानते ही हैं कि हमारे घर में मेहमानों और दोस्तों का ताँता लगा रहता है ।
मेरे जैसे ही भाभी को भी लगता होगा ना कि मैं थोड़ा सा रिचार्ज हो जाऊँ । आज उन्हें बीमार देखकर मुझे लगा कि मैं उन्हें अपने घर ले जाऊँगी और थोड़े दिन रख कर उन्हें वापस भेजूँगी । मेरी सास कुछ नहीं कहेंगी ।
उनकी बातों को सुनकर सौम्या को अपने आप पर शर्म आ रही थी कि मेरी इतनी अच्छी सहेली से मैंने दस दिन काम कराया है । वह भी दूसरों की बातों को सुनकर । दूसरे दिन सबेरे वह जल्द ही उठ गई और बच्चों के लिए उनकी मनपसंद खाना बनाया । रत्ना ने कहा भी था कि सौम्या आपकी तबियत ठीक नहीं है मैं कर दूँगी परंतु सौम्या ने कहा कि मैं अब ठीक हूँ मैं कर दूँगी । घर का सारा काम उसने खुद किया था । प्रकाश भी खुश हो गया था कि चलो सौम्या ने रिश्ते की डोरी को टूटने से बचा लिया है ।
रत्ना भी छुट्टियों के चार दिन खुश हो कर गई थी । उसे तो मालूम भी नहीं था कि सौम्या ने झूठ कहा है ।
ख़ैर बिना किसी मलाल के सौम्या ने अपना रिश्ता बचा लिया यही बहुत बड़ी बात है ।
दोस्तों दूसरों की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए । दूसरों की बातों को सुनने लगे तो हमारे रिश्तों में दरार आने की संभावना होती है ।
के कामेश्वरी
#रिश्तो की डोरी टूटे ना