पति-पत्नी के मिलन और सहयोग से जिन्दगी रुपी गाड़ी सुचारु रुप से चलती है।पति -पत्नी का रिश्ता प्रेम और विश्वास का होता है।इस रिश्ते की डोर काफी मजबूत होती है,परन्तु कभी-कभी इस रिश्ते की डोर इतनी नाजुक और कमजोर पड़ जाती है कि पत्नी की किस्मत में इंतजार के सिवा कुछ नहीं रह जाता है।
प्रस्तुत कहानी पचास-साठ वर्ष पूर्व में घटित विमला नाम की लड़की की कहानी है।पन्द्रह वर्षीया विमला की शादी अट्ठारह वर्षीय निखिल से हो जाती है। विमला का गौना (लड़की की विदाई) का कार्यक्रम पाँच वर्ष बाद तय हुआ। निखिल पढ़ने में कुशाग्र बुद्धि का था,उसे इंजिनियरिंग काॅलेज में दाखिला मिल गया।पचास वर्ष पूर्व इंजिनियरिंग में पढ़ना परिवार और समाज ही नहीं,अपितु आस-पास के गावों के लिए भी गौरव की बात थी।
किशोरावस्था से जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही विमला का रुप-सौन्दर्य खिल उठा।ऊँचा कद,लम्बी सुतवा नाक ,दूधिया गोरा रंग ,अनार से गुलाबी अधर उसकी सुन्दरता में चार चाँद लगा रहे थे।निखिल भी खूबसूरत नौजवान बन चुका था।उसके प्रशस्त ललाट ,घुँघराले काले केश,गेहुंआ रंग,संयमित स्मित मुस्कान किसी के भी आकर्षण का केन्द्र बन जाता था।दोनों की रिश्तों की डोर मानो ईश्वर ने सोच-विचारकर बाँधी हो!
निखिल की पढ़ाई पूरी होने के बाद विमला लाल सुर्ख जोड़े में जिन्दगी भर की रिश्तों की डोर बाँधने ससुराल आ गई। पिया मिलन की खुशी ने चाँद से उसके चेहरे की आभा को बढ़ा दी।ससुराल में सास-ससुर, ननद-देवर से भरा-पूरा उसका परिवार था।विमला और निखिल दिन में बस एक-दूसरे की झलक ही देख पाते।लाज,शर्म,हया की दीवारें नव-विवाहित जोड़े की भावनाओं को जकड़ी हुईं थीं।
उस समय पति-पत्नी अपनी भावनाओं को खुलकर अभिव्यक्त नहीं कर पाते थे।केवल रात में ही दोनों एक-दूसरे की बाँहों में सिमटकर सुनहले भविष्य का ख्वाब बुना करते।एक-दूसरे को पाकर दोनों निहाल थे।धीरे-धीरे उनके रिश्तों की डोर मजबूत हो रही थी।अभी विमला पति को समझने का प्रयास कर ही रही थी कि गौना के पन्द्रह दिनों बाद निखिल नौकरी पर कलकत्ता चला गया।
विमला के मन में आस थी कि निखिल कुछ दिनों बाद उसे अपने पास ले जाएगा।निखिल की खुबसूरत यादों के सहारे विमला ससुराल में अपना समय व्यतीत कर रही थी।सास-ससुर का प्यार-दुलार,ननद-देवर की हँसी-ठिठोली से उसका मन लगा रहता।
कुछ समय पश्चात् निखिल वापस घर आया।उसे देखकर परिवार में सब काफी खुश हो गए। पति का सानिध्य पाकर विमला के तो पैर जमीं पर नहीं पड़ रहे थे।एक दिन निखिल ने परिवारवालों के सामने खुशखबरी सुनाते हुए कहा -पिताजी! नौकरी के सिलसिले में कंपनी मुझे अमेरिका भेज रही है!”
इस खबर को सुनकर उसके परिवारवाले खुशी से उछल पड़े।पचास वर्ष पूर्व किसी का अमेरिका जाना बहुत बड़ी बात थी।उस समय अमेरिका लोगों के लिए अबूझ पहेली बना हुआ था।विमला पति के परदेस जाने की बात सुनकर मायूस होकर उठी।रात में विमला ने पति के सीने पर सिर रखकर रोते हुए कहा-” मैं आपके बिना नहीं रह सकती हूँ,या तो आप मुझे भी साथ ले चलो,या तो परदेस मत जाओ।”
निखिल ने उसे समझाते हुए कहा -“विमला! तुम्हें तो गर्व होना चाहिए कि तुम्हारा पति अमेरिका जा रहा है,और तुम खुश होने के बदले रो रही हो?”
निखिल की आँखों में अमेरिका के सुनहरे सपने और सुखद भविष्य झिलमिला रहे थे,जिसे वह पत्नी के अश्रुकणों के समक्ष कमजोर नहीं पड़ने देना चाहता था।परन्तु विमला इतना बड़ा दिल कहाँ से लाएँ कि पति वियोग को सह सके!उसने रोते हुए पति से कहा -” आपने सोचा है कि आपके वगैर मैं कैसे रहूँगी।अभी तो हमारे दाम्पत्य-जीवन के पुष्प खिले भी नहीं।रिश्तों की डोर अभी नाजुक ही है और आप रिश्तों के मुरझाने की बात कर रहे हो?”
निखिल-” देखो विमला!अभी न तो मैं तुम्हें अमेरिका ले जा सकता हूँ और न ही जाने से रूक सकता हूँ।भावनाओं में बहने से जिन्दगी नहींसँवरती है। तुम्हारी देखभाल के लिए घर में बहुत सारे लोग हैं।तुम अकेली कहाँ हो?”
विमला पति से -” आप अकेले रह सकते हो,परन्तु मैं सुहागन होकर विधवा के समान कैसे रहूँगी?”
विमला की बातों से निखिल गुस्साते हुए कहता है-“विमला!जब तुम्हें मेरे भविष्य की चिन्ता नहीं है,तो मेरे लौट आने तक खुद को विधवा ही समझना। जिन्दगी में आएँ इस अवसर को मैं छोड़ नहीं सकता हूँ।”
नारी -जीवन की मजबूरियाँ आज भी हैं,परन्तु वर्षों पूर्व तो नारी -जीवन और भी कष्टप्रद था।लक्ष्मण ने भी तो उर्मिला की भावनाओं की परवाह न करते हुए उसे चौदह वर्षों के लिए विरहाग्नि में झुलसने को छोड़ दिया था,तो एक साधारण नारी विमला की क्या हैसियत थी?”
नारी की किस्मत में तो सदैव से अग्नि परीक्षा लिखी हुई है।
परिवार तथा आस-पास के गाँव के लोगों ने निखिल के अमेरिका जाने का जश्न धूम-धाम से मनाया।विमला के हृदय के सूनेपन की किसे परवाह थी?निखिल भी अमेरिका जाने के सुखद ख्वाब में डूबा हुआ था।उस समय ग्रामीण इलाकों में न तो कुछ खास शिक्षा थी और न ही यातायात और दूरसंचार के कोई खास साधन थे,इस कारण गाँव के लोगों को बस इतना ही ज्ञान था कि गाँव का बेटा हमारे इलाके का नाम रोशन करने अमेरिका जा रहा है!
अमेरिका जाने दिन विमला पति के सीने से लिपटकर बिलखकर रो उठी।निखिल ने उसे सांत्वना देते हुए कहा -” विमला!हमारे रिश्तों की डोर बहुत मजबूत है।धैर्य रखना,मैं जल्द वापस आऊँगा।”
परिवार और गाँववालों ने धूम-धाम के साथ निखिल को अमेरिका के लिए विदा किया।विमला ने भी अश्रुपूरित नयनों से निखिल को विदा किया।
मन में सतरंगे ख्वाब सजाएँ निखिल सात समंदर पार अमेरिका पहुँच गया।विमला दीये की बाती की तरह तिल-तिलकर निखिल की विरहाग्नि में जलती रहती।उस समय तो गाँवों में फोन की भी सुविधा नहीं थी।दो-चार महीनों पर निखिल का खत और पैसा आ जाता।विमला निखिल के खत को रात भर तब तक सीने से लगाएँ रखती,जब तक दूसरा खत नहीं आ जाता।
विमला बेकरार होकर हर लम्हा,हर पल निखिल का इंतजार करती।पिया के बिना उसकी दुनियाँ उदास थी।सपनों में,नीन्द में,जागते हुए हर पल उसे पति की याद सताती।सूरज उदय होने के साथ उसका इंतजार शुरु होता,परन्तु उसका अंत अंतहीन था ।पति के बिना उसका शरीर रक्त की नदी बन गया था।उसे अब दाम्पत्य-जीवन की डोर कमजोर पड़ती दिखाई देने लगी थी।
निखिल के विरह में विमला का तन-मन जलता रहता,परन्तु एक अच्छी बात हुई कि बारिश की पहली खुशनुमा फुहारों के समान निखिल का अंश उसके गर्भ में दस्तक देने लगा।अब विमला निखिल के इंतजार के साथ-साथ अपने होनेवाले बच्चे का बेसब्री से इंतजार करने लगी।नौ महीने बाद विमला ने एक खुबसूरत-सी बच्ची को जन्म दिया।बेटी के जन्म के साथ परिवारवालों ने उससे मुख फेर लिया।अब विमला का जीवन और अधिक कष्टप्रद हो उठा,परन्तु विमला ने हार नहीं मानी।पति के इंतजार के साथ-साथ वह.अपनी बच्ची के पालन-पोषण में मशगूल हो गई।
अमेरिका पहुँचकर पर निखिल ख्वाबों की दुनियाँ में पहुँच चुका था।अब उसे अमेरिका में ही उज्ज्वल भविष्य दिखाई देने लगा था।कुछ समय बाद ही उसने पुरानी नौकरी छोड़कर दूसरी नौकरी अन्य शहर में पकड़ ली।वहीं उसका परिचय एक भारतीय परिवार से हुआ,जो उससे पहले अमेरिका आ चुके थे।उस परिवार की लड़की श्वेता से उसकी जान-पहचान गहरी हो गई।
श्वेता की माडर्न वेश-भूषा,खुबसूरत नैन-नख्श और बोलने -चलने का अंदाज ने निखिल को दीवाना बना दिया।उसे अब अपनी पत्नी अनपढ़ और गँवार लगने लगी।श्वेता के मोहपाश में बँधकर वह खुद का शादी-शुदा होना भी भूल बैठा।निखिल के भारतीय मन में विदेशी आकर्षण इस कदर समा गया कि उसे न तो अपने माता-पिता का ख्याल रहा ,न ही अपनी विरहिणी पत्नी का।
उसने श्वेता से शादी कर वहाँ अपनी अलग ही दुनियाँ बसा ली।हाँ!अपना फर्ज पूरा करने के लिए कभी-कभार चिट्ठी और पैसे जरुर भेज देता था,परन्तु कुछ दिनों बाद यह सिलसिला भी बन्द हो गया।
निखिल के माता-पिता और पत्नी के पास निखिल का पता लगाने का कोई साधन नहीं था।विमला को दाम्पत्य-जीवन की डोर कमजोर पड़ती हुई मालूम होने लगी थी,फिर भी विमला निखिल की यादों और बेटी के सहारे अभावग्रस्त जिन्दगी काट रही थी।निर्मोही निखिल उसे लगभग भूल ही चुका था।
काफी समय तक निखिल की खबर नहीं आने से गाँववालों में काना-फूसी आरंभ हो गई थी कि अमेरिका में निखिल का देहांत हो चुका है,परन्तु विमला का दिल इस बात की गवाही नहीं दे रहा था।उसका अन्तर्मन उम्मीदों की डोरी को छोड़ना नहीं चाहता था।विमला ने अपनी माँग से निखिल के नाम का सिन्दूर और भाल से बिन्दी को नहीं हटाया।उसकी निखिल के लिए अंतहीन प्रतीक्षा जारी थी।
समय के साथ विमला की बेटी नयना सयानी हो चुकी थी।बेटियाँ तो बेल की तरह तुरंत बड़ी हो जाती हैं।पूँजी के नाम पर कुछ जमीनें थीं,जिसे बेचकर उसने बेटी की शादी कर दी।दामाद सुजीत भी साधारण नौकरी करता था,उसे अपनी सास विमला जी सूनी-सूनी प्रतीक्षारत आँखें बेचैन कर देतीं।उनकी उदासी उसके हृदय को चीरकर रख देती।
सुजीत अपने ससुर निखिल जी का पता लगाने की जी-जान से कोशिश करता है।निखिल की पुरानी चिट्ठियां लेकर कलकत्ता जाकर पता लगाने की कोशिश करता है,परन्तु इतने दिनों बाद न तो निखिल के दफ्तर का पता चलता है न ही उसके बारे में कोई जानकारियाँ मिलती हैं। अमेरिका में भी निखिल के पता-ठिकाने का कोई पता नहीं चलता है।
उस समय गरीब व्यक्ति के लिए अमेरिका में गुम हुए व्यक्ति के बारे में जानकारी प्राप्त करना आकाश-कुसुम तोड़ने के समान था।लाख कोशिशों के बावजूद सुजीत अपने ससुर निखिल जी के बारे में कुछ पता नहीं लगा सका।
पति की कोई जानकारी नहीं मिलने से विमला उदास -सी रहने लगी।पिया के बिना उसकी जिन्दगी उदास-सी थी,परन्तु उसके मृग से नयनों में अभी भी रिश्तों की डोर बाकी थीं।
अमेरिका में निखिल एक बेटा और एक बेटी का पिता बन चुका था।निखिल का बेटा नील अब बड़ा हो चुका था।नील बार-बार अपने पिता से कहता डैड!एक बार मुझे भारत लेकर चलो।मुझे भारत की संस्कृति और वहाँ के गाँवों के बारे में देखना समझना है।
निखिल बेटे को डाँटते हुए कहता है -” बेटा!तुम्हें भारत जाकर क्या करना है?अब वहाँ हमारा कुछ नहीं है!”
निखिल के मन का चोर उसकी अन्तरात्मा को धिक्कारने लगता है,परन्तु निखिल जिस जिन्दगी को छोड़ आया था,उसे अब याद भी नहीं करना चाहता है।
विमला अब बीमार रहने लगी।उसका जीवन अब रिश्तों की डोर से फिसलने लगा।पिया मिलन की आस में उसका शरीर जर्जर हो चुका था,परन्तु अंखियों में अब भी पिया मिलन की आस बनी हुई थी।
अपने बेटे की जिद्द के कारण निखिल बेटे के साथ भारत पहुँचता है।रास्ते भर उसके मन में ऊथल-पुथल मची रहती है।निखिल सोचता है-” समय के गर्त पर मिट्टी की ढ़ेर -सी सारी पर्तें जम चुकी हैं,उन्हें हटाना नामुमकिन है!”
विमला का सामना कैसे करेगा?उसके सवालों के क्या जबाव देगा?यही सब सोचते हुए निखिल अपने गाँव पहुँचता है।
विमला की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही थी।शरीर जर्जर हो चुका था,बस पति की आस में आँखें इधर-उधर देखतीं।संयोगवश निखिल उसी समय पत्नी के पास पहुँचता है और उसकी दयनीय स्थिति देखकर रो पड़ता है।विमला अपने अपलक बड़े-बड़े नेत्रों से पति को देखती है,उसके होठों पर एक स्मित मुस्कान की रेखा खींच जाती हैं।
निखिल का बेटा नील भी विमला का दूसरा हाथ पकड़कर बगल में खड़ा हो जाता,पिता की ओर हिकारत भरी नजरों से देखता है।एक हाथ में पति का हाथ और दूसरे हाथ में बेटे का हाथ पाकर मानो विमला की अंतहीन प्रतीक्षा पूरी हो गई और उसके रिश्तों की बची-खुची महीन डोर भी समाप्त हो गई। निखिल बेटे के साथ पत्नी के निष्प्राण शरीर को देखकर दोनों हाथ जोड़ लेता है,मानो रिश्तों की डोर तोड़ने के लिए माफी माँग रहा हो।
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा।
#रिश्तो की डोरी टूटे ना