बच्चों के स्कूल चले जाने के पश्चात मेधा अकेली रह गई घर में। वह उदास बैठी सोच रही थी आज उसकी उन्नीसवीं मेरिज एनिवर्सरी है। शायद मेहुल को तो यह दिन याद ही नहीं होगा कि आज के दिन ही वह अपना घर परिवार छोड पूर्ण विश्वास के साथ मेहुल का हाथ थाम आपना नया सपनों का संसार बसाने आई थी।
चलचित्र की भाँति बीते दिन उसकी आंखों के सामने से गुजरने लगे। नई दुल्हन का खूब जोरदार स्वागत हुआ था। पूरा मकान झिलमिल लडियों से जगमगा रहा था। उसकी सास गायत्री जी ने आरती उतार चावल के कलश को ठोकर मार प्रवेश कराया था। कैसे कुम कुम के पानी से भरे थाल में पैर रख डगमगाने लगी तो मेहुल ने उसे सहारा दे सम्हाल लिया था।
पदचिन्हों के निशान छोड़ती आगे बढ़ी। पूरा दिन रस्मों रिवाजों को पूरा करते कब निकल गया पता ही नहीं चला।रिश्ते के ननद, देवर हँसी ठिठोली कर उसका मन बहलाने की कोशिश कर रहे थे। फिर मेहुल के प्यार में तो वह खो गई। अपना तनमन सब समर्पित कर वह पूर्ण रूप से मेहुल की हो गई ।सास ससुर भी उसे बहुत प्यार से रखते, रखते भी क्यों न एक तो वह उनकी इकलौती बहू थी
दूसरे वह इतनी सौम्य, सुलझी, और विनम्र थी कि उससे किसी को कोई शिकायत नहीं थी। पूरे घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले सास को पूरा आराम करने को छोड दिया था ,पर वे भरसक प्रयत्न करतीं कि मेधा की जितनी हो सके मदद करें। दोनों के बीच बड़ा ही अच्छा सामंजस्य था। फिर दो साल बाद उसने बेटे विनय को जन्म दिया।
फिर दो साल बाद वह प्यारी सी बेटी आन्या की माँ बनी सब कुछ उसकी जिंदगी में सही चल रहा था। मेहुल भी बच्चों को बहुत ही प्यार करते स्पेशली आन्या तो उन्हें बहुत ही प्यारी थी किशोर वय होते बच्चे अपनी मम्मी-पापा एवं दादा-दादी के संरक्षण में पल बढ रहे थे। अचानक सुनामी की तरह उसके जीवन में तीन साल पहले भूचाल आ गया।
मेहुल अपने साथ काम करने वाली किसी लड़की के चक्कर में ऐसा फंसा कि उसने घर बच्चे सबको भूला दिया।
उसकी तो जैसे दुनियां ही उजड़ गई। धीरे-धीरे उसने घर आना भी बंद कर दिया। किशोर वय बच्चे कुछ समझते कुछ नहीं समझते पूछते मम्मी पापा घर क्यों नही आते हैं। वह क्या जबाब दे। बच्चों को कैसे बताये कि उनके पापा तो दो टूक कहकर कि मेधा तुम इस घर में बच्चों के साथ जैसी रहती आई हो बैसे ही रहो में तुम्हेंऔर बच्चों को पैसे से कोई कमी नहीं रहने दूंगा
सिर्फ अब में तुम्हारे साथ नहीं रह सकता मैंने दूसरा घर बसा लिए है चले गए, मेधा के जवाब का भी इंतजार नहीं किया। मेधा तो जैसे जडवत बैठी की बैठी रह गई। पैसों की कमी नहीं होने देगा मेहुल ने सोच लिया पर इंसान की जो कमी होगी उसकी पूर्ति पैसा नहीं कर सकता ये बात मेहुल ने क्यों नहींं सोची। वो तो अच्छा था कि यह दिन देखने के लिए मम्मी-पापा जीवित नहीं थे।
नहीं तो इकलोते बेटे की यह हरकत कैसे सहन
कर पाते।
उस दिन का दिन है और आज का दिन तीन साल से वह अकेली ही जूझ रही है। बच्चों की सवालिया नजरों का सामना करती उनकी परवरिश में लगी है ताकि वे अपने जीवन में पिछड़ न जाएं ।
तभी डोर वेल बजी, उसकी तन्द्रा भंग हुई और एक ठंडी सांस ले दरवाजा खोलने चल दी। मेड आई थी काम करने। उसने
चाय बनाई एक कप मेड को दे स्वयं पीने बैठ गई। सोचती किसी के चले से जिन्दगी कहाँ रुकती है उसे जीना है अपने बच्चों के लिए वह इन्हें किसके भरोसे छोड दे।
बच्चे स्कूल से आए माँ को उदास देख बोले मम्मी आज आपकी मेरिज एनिवर्सरी है आप दुखी मत होओ। पापा नहीं है तो क्या हम मनायेंगे। बच्चों की बात सुन वह जबरन मुस्करायी और बोली हां हां क्यों नहीं। तभी तो मैंने आज तुम लोंगों का मन पसंद खाना बनाया है। बच्चे खुश हो गये। सब खाने बैठ गये ।
वाह मम्मी मजा आ गया बहुत अच्छा खाना बनाया है।
बच्चों ने आनलाइन केक आर्डर कर दिया। हाथ से दोनों ने मिलकर सुन्दर सा कार्ड बनाया, चुपके-चुपके अपने कमरे को थोडा सा सजाया और शाम को एनिवर्सरी मनाने की पूरी तैयारी कर ली ।
उधर मेधा लेटे-लेटे फिर विचारों में खो गई। मेहुल तुम कितनी आसानी से कह गये मैं अब नहीं आऊंगा। क्या इसी दिन के लिए मुझे रिश्ते की डोरी में बाँधा था। तुम कितनी आसानी से इस रिश्ते की डोरी को तोड गये किन्तु मेरे लिए ये रिश्ते की डोरी तोडना आसान नहीं है, मैं तन मन से इस रिश्ते में सर्मपित थी
कैसे तोड सकती हूं। याद है पहले दिन तुमने कहा था ये अटूट सम्बन्ध है अब अपने रिश्ते की डोर कभी टूटे ना ।किन्तु तुम तो कितनी आसानी से तोड गये। बताओ मेरा क्या कसूर था, मेरी क्या ग़लती थी, बच्चों ने क्या अपराध किया था कि तुम पति और पिता दोनों रिश्तों को तोड आसानी से दूसरे रिश्ते में बँध गये सिर्फ वासना पूर्ति हेतु ।
तुमने अपनी उम्र का भी ध्यान नहीं रखा ।वह लड़की तुमसे आधी उम्र की है ।सोचो यदि तुम्हारी बेटी संग कोई अधेड रिश्ता बनाये तो क्या तुम सहन कर पाओगे। वह भी किसी की बैटी थी । तुम बड़े थे वह भटक रही थी तो तुम उसे सही राह दिखा सकते थे किन्तु तुम तो अवसर वादी बन स्वयं फिसल गये ।सोचते सोचते उसकी आंखें भीग गईं।
वह कुछ भी नही करना चाहती थी, कैसी मैरिज एनवर्सरी जब पति ही साथ नहीं । किन्तु बच्चों की खुशी के खातिर दिल पर पत्थर रख ऊपर से मुस्कराते सब कर रही थी। बच्चे भी खुश थे कि चलो इसी
बहाने मम्मी कुछ तो खुश होगीं।
रात के आठ बजे सब केक काटने की तैयारी कर रहे थे कि तभी डोर बेल बजी विनय ने जैसे ही दरवाजा खोला सामने पापा को देखकर खडा देखता ही रह गया। पापा आप, आज आपको हमारी याद कैसे आ गई क्या करने आये हैं आप मम्मी को फिर कुछ सुनाकर रूलाने आये हैं।
नहीं बेटा अपनी भूल सुधारने आया हूँ अन्दर नहीं आने दोगे ।विनय दरवाजे से एक ओर हट गया।
तभी मेधा एवं आन्या भी बहर आ गये। देखा मेहुल हाथ में केक का डिब्बा और एक गिफ्ट पैक लिए खडा है। मेधा उसे अपलक देखती रही फिर बोली मेहुल ये सब क्या है। क्यों आये हो ठहरे जल में कंकरी मार हलचल पैदा करने ।हम लोगों ने जैसे-तैसे अपने को सम्हाला हुआ है तुम क्यों फिर से भूचाल लाना चाहते हो।चले जाओ वापस हमें तुम्हारे बिना जीने की आदत हो गई हैं।
तभी आन्या उससे लिपट जाती है पापा आप कहाँ चले गए थे हमें छोडकर। आपको मेरी याद नहीं आई आप तो मुझे अपनी परी कहते थे, फिर परि को कैसे हो छोड़ गए।
बेटा आ गया हूँ न अपनी परी, अपने बच्चों, अपनी मेधा के पास । रिश्तो की डोरी को मैं तोड़ गया था पर वह इतना मजबूत बंधन था कि तोड न सका और बापस खींचा चला आया।
बोलो मेधा मुझे माफ करोगी । जीवन में एक मौका दोगी अपनी भूल सुधारने का। मेहुल एक बात का जबाव दो कि यदि यही सब कर मैं आकर तुमसे माफी माँगती तो क्या तुम मुझे माफ कर मौका देते अपनी भूल सुधारने का।
नहीं मेधा झूठ नहीं बोलूँगा में शायद तुम्हे कभी माफ नहीं करता क्योंकि पुरुष में इतनी सहनशीलता, क्षमा करने की शति नहीं होती या उसका पुरुषोचित अहम उसे ऐसा नहीं करने देता। किन्तु स्त्रियां तो धरती के समान सब सहन कर क्षमाशील होती हैं उनमें ही इतनी शक्ति होती है कि वे ऐसे अपराधी पति को भी माफ कर
अपना सकती है। मेधा बोली और स्त्री की उन्हीं कोमल भावनाओं को पुरुष पूरी तरह भुनाता है।
नहीं मेधा ऐसा नहीं है । मैं अपनी राह भटक गया था होश में आते ही दौडा चला आया आपनी भूल सुधारने । मेधा सही है मैंने जो किया है वह माफी लायक तो नहीं है किन्तु एक बार मुझे मौका दो, दोबारा कभी भूलकर भी ऐसा मौका न दूं गा।
रिश्तों की डोर मेरी तरफ से तो टूटी ही नहीं थी। मुझे तो तुम्हारे लौट आने का ही इन्तजार था। तुम्हारे बच्चों को अपने पापा की छत्र छाया की आवश्यकता है ताकि उनका विकास सही तरीके से हो, उनके खातिर, तुम्हें माफ़ तो नहीं कर सकती क्योंकि डोर टूटने पर फिर जुडती नहीं और यदि जुड़ती है
तो गांठ पड जाती है ये शूल मेरे दिल में हमेशा चुभता रहेगा और शायद तुम्हारे साथ अब में सामान्य न हो सकूं, किन्तु इस घर में साथ रहने की अनुमति देती हूँ।
बच्चे ये सुनकर खुश होगए कि पापा अब उनके साथ रहेंगे। हंसी खुशी दो-दो केक काटकर जश्न मनाया। बच्चों की खुशी देखकर मेधा अपना दुःख भूल गई।
उधर मेहुल सोचा रहा था कि वह कितना बडा वेवकूफ निकला जो अपनी स्वर्ग सी गृहस्थी को छोड, मेधा जैसी समर्पित , सेवाभावी पत्नी और अधखिले बच्चों को छोड़ कर किस भ्रमजाल में फंस गया। प्रमोशन मिलते ही कैसे रिया मुझे धता बता कर अपने वायफ्रेन्ड के साथ चली गई। दोनों ने मिलकर कैसे मेरे दिल और दिमाग को गुमराह कर दिया
और मैं मूर्ख सा उनके जाल में फंसता गया और अपनी घर गृहस्थी उजाड़ दी । माफी मांग कर क्या मैं मेधा को वे दिन बापस लौटा सकता हूं जो उसने मानसिक वेदना में गुजारे हैं। तीन साल तक जो बिछोह उसने और बच्चों ने सहा है उसका जिम्मेदार मैं ही हूं। मैंने ही रिश्तों की डोर
तोड़ने का प्रयास किया, परन्तु वह इतनी मजबूत थी कि में तोड न सका। किन्तु अब इस सबकी भरपाई करने के लिए वह कटिवद्ध है। अब भूलकर भी इस तरह की ग़लती नहीं दोहराऊंगा ।
शिव कुमारी शुक्ला
11-5-24
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
साप्ताहिक विषय
रिश्तों की डोरी टुटे ना