“रिश्तो के बीच विश्वास का एक पतला धागा होता है” – पूजा शर्मा   : Moral Stories in Hindi

दोनों बच्चे स्कूल जा चुके थे और रंजन भी ऑफिस के लिए निकल चुका था। अपने सास ससुर को भी नाश्ता कराने के बाद देविका अपना नाश्ता लेकर डाइनिंग टेबल पर बैठी ही थी उसके फोन की घंटी बज उठी।

 पड़ोस में रहने वाली उसकी सहेली रूपा का फोन था

 5 साल पहले दोनों ने ही इस कॉलोनी में अपना अपना फ्लैट खरीदा था और एक ही दिन शिफ्ट भी किया था तभी से दोनों में अच्छी बनती है। देविका ने फोन उठाया और उससे बात करने लगी, रूपा बोली तुमने ज्यादा ही आजादी दे रखी है

अपने पति को खुद तो अपने घर गृहस्ती में इतनी व्यस्त रहती हो कि अपने लिए समय निकाल नहीं पाती हो। देखो अभी तो तुम्हारी शादी को 7 साल ही हुए हैं और तुम केवल घर गृहस्ती की ही होकर रह गई हो। सास ससुर और तुम्हारे बच्चे यही तुम्हारी जिंदगी बन गए हैं

अरे अपने पति पर भी ध्यान दिया करो। पति को बांधकर नहीं रखोगी तो रास्ता भटकने में उन्हें देर नहीं लगेगी। तुम खुद पर ध्यान दिया करो। माना घर गृहस्ती के काम भी बहुत जरूरी है लेकिन खुद को मेंटेन रखना भी बहुत जरूरी है। मैं तो इसीलिए बनठन कर रहती हूं जिससे मेरे पति कहीं बाहर ताक झाक ना करे। 

 यह तुम क्या अनाप-शनाप बोले जा रही हो रूपा, साफ-साफ क्यों नहीं बताती क्या बात है अब तो देवी का का मन भी घबराने लगा था। अरे पड़ोस वाले शर्मा जी की बेटे का इतनी सुंदर पत्नी होते हुए भी बाहर अफेयर चल रहा है

आज दोनों के झगड़े की आवाज हमारे घर तक आ रही थी इसीलिए यही बातें दिमाग में चल रही है।। उसके बाद इधर-उधर की बातें करने के बाद रूपा ने फोन रख दिया। लेकिन देविका सोचने लगी कहीं रंजन की भी तो किसी से खास दोस्ती तो नहीं है

आजकल ऑफिस से भी देर रात से घर आते हैं और खाना भी वही खाकर आते हैं। अरे नहीं नहीं मैं क्या अनाप-शनाप सोच रही हूं आज उसका मन घर में बिल्कुल नहीं लग रहा था उसकी सास ने पूछा भी क्या हुआ बेटा कुछ परेशान हो लेकिन उसने मुस्कुरा कर थकान का बहाना बना दिया?

इस बात को एक सप्ताह बीत चुका था उसने रंजन से इस बारे में कोई बात नहीं की लेकिन वो गुमसुम सी रहने लगी थी। एक दिन देविका रूपा के साथ घर के राशन का सामान मॉल में लेने गई तो वहां रंजन को एक खूबसूरत सी औरत के साथ देखकर चौंक गई वो उसके साथ अपनी गाड़ी में कुछ सामान खरीद कर वापस जा रहा था।

देविका का मन बिल्कुल नहीं लग रहा था। उसने जल्दी-जल्दी उल्टा सीधा सामान खरीदा और घर वापस आ गई।उसने रूपा से इस बारे में बात करना उचित नहीं समझा क्योंकि उसने रंजन को नहीं देखा था? अब तो उसके मन में शक का कीड़ा कुलमुलाने लगा था। 2 दिन हो गए थे इस बात को लेकिन रंजन से उसने इस बारे में कोई बात नहीं की।

 वह अंदर ही अंदर घुट रही थी। रंजन ने पूछा भी था क्या हुआ है तुम्हें लेकिन उसने थकान का बहाना बना दिया। एक दिन किचन में काम करते करते चक्कर खाकर गिर पड़ी होश में आने पर उसने खुद को अस्पताल में पाया। रंजन वहीं पास में कुर्सी पर बैठा था।

उसके सास ससुर भी वही खड़े थे। चक्कर खाकर गिरने से उसके सर में चोट लग गई थी जिसकी वजह से वह बेहोश हो गई थी करीब 3 घंटे बाद उसे होश आया था। दोनों भगवान का हाथ उठाकर उनका धन्यवाद दे रहे थे रंजन की आंखें तो आंसुओं से भरी थी,

उसके माथे पर हाथ फिराता हुआ वह कहने लगा तुमने तो मेरी जान ही निकाल दी थी देविका। देविका भी भाव विभोर हो गई थी सबको अपने पास देखकर।थोड़ी देर बाद अस्पताल में उसी खूबसूरत औरत को देखकर वो चौंक गई। रंजन ने उससे देविका का परिचय कराते हुए कहा तुम्हें पता है ना अक्सर मै वंदना से बात करता रहता हूं।

उसे याद आया उसकी शादी के बाद उन्होंने उसे भी शादी की बधाई देने के लिए फोन किया था। रंजन के ताऊजी की बेटी थी वंदना। हम उम्र होने के कारण दोनों में खूब पटती थी। उसकी शादी से 2 महीने पहले ही उसकी शादी हुई थी और अमेरिका में ही वह सेटल थी और अब अपने पति के साथ वापस अपने देश में आ गई थी

और दिल्ली में ही दोनों ने एक कंपनी ज्वाइन की थी। यहां आने के बाद अगले दिन ही यह मुझसे मिलने मेरे ऑफिस पहुंच गई थी। मैंने घर आने के लिए भी कहा लेकिन उसने संडे को पति और अपने बेटे के साथ आने का वादा किया था। उस दिन उसे थोड़ा बहुत सामान भी खरीदना था इसलिए मैं माल लेकर चला गया।

देविका के कुछ कहने से पहले ही वंदना बीच में ही बोल पड़ी लेकिन देखो ना हमारी भाभी तो हमारे आने से पहले ही अस्पताल में एडमिट हो गई नंद से घबरा कर। देविका को अपनी सोच पर ग्लानी महसूस हो रही थी। क्या-क्या नहीं सोच लिया था उसने अपने पति के बारे में ।

उनके जाने के बाद देविका ने अपने पति को सारी बात बताई रंजन उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोला। तभी मैं कहूं तुम मुझसे आजकल बार-बार क्यों पूछ रही हो मैं मोटी हो गई हूं क्या मैं मोटी हो गई हूं क्या? आईने में खुद को इतनी देर तक क्यों देखती रहती हो?

अरे भाई तुम जैसी हो मुझे तुम वैसे ही पसंद हो। तुम इतने दिन तक क्यों घुटती रही उसी दिन इस बारे में मुझसे बात क्यों नहीं कि तुमने? देखो अपने शरीर का कितना नुकसान कर लिया तुमने। पति-पत्नी का रिश्ता जितना मजबूत होता है उतना ही नाजुक भी होता है देविका।

 रिश्तो के बीच में विश्वास का एक पतला सा धागा होता है जिसे टूटने मे देर नहीं लगती। वक्त रहते 

 हमें अपने रिश्ते खुद ही सहेजने पडते हैं। गलतफहमी होने पर तुरंत आपस में बात करके उसे दूर करने से ही रिश्ते सुधर सकते हैं। पति-पत्नी एक दूसरे के पूरक है अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो मेरा क्या हाल होता? कहते-कहते रंजन की आंखों में आंसू आ गए।

 लेकिन थोड़ी देर बाद मुस्कुरा कर कहने लगा वैसे मोटी तो तुम बहुत हो गई हो। देख लो खुद को मेंटेन कर लो नहीं तो ऑफिस में एक से एक सुंदर लड़कियां हैंहैं

 अगर मैं भटक गया तो फिर मुझे मत कहना। हां हां जैसे दुनिया में तुम ही एक स्मार्ट नौजवान हो ना जो सब लड़कियां तुम पर ही फ़िदा होगी। बाल तो उड़ने शुरू हो गए तुम्हारे। दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा उठे।

 सही भी है रिश्ता खून का हो या इंसानियत का विश्वास पर ही सारे रिश्ते टिके होते हैं। अगर कोई हम पर भरोसा करता है तो उसका भरोसा बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है।

 पूजा शर्मा 

स्वरचित।

#रिश्तो के बीच विश्वास का एक पतला धागा होता है

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