रोहणी बाज़ार से सब्ज़ी लाने के लिए गई हुई थी कि अचानक एक कार वाले ने उसे टक्कर मार दी थी । पैंसठ वर्ष की रोहिणी बीच बाज़ार में गिर कर बेहोश हो गई थी ।
पड़ोस में रहने वाले गिरीश जी ने उन्हें अस्पताल पहुँचाया और घर पर खबर भी कर दिया था । घनश्याम जी ख़बर सुनते ही अस्पताल की तरफ़ भागे ।
उनके बेटे अभय को खबर कर दिया गया था वह भी ऑफिस से छुट्टी लेकर अस्पताल चला गया । माँ आई सी यू में थी और पिताजी बाहर कुर्सी पर बैठकर रो रहे थे ।
अभय को उन्हें इस हालत में देख कर आश्चर्य हो रहा था कि हमेशा माँ को डराकर रखने वाले आज माँ के लिए आँसू बहा रहे हैं । डॉक्टरों ने कहा कि आप घर जा सकते हैं ज़रूरत पड़ने पर हम बुला लेंगे ।
अभय ने पिता से कहा कि चलिए हम घर चलते हैं । घनश्याम ने घर जाने से मना कर दिया था कि वे रोहणी को छोड़कर कहीं नहीं जाएँगे ।
अभय अकेले ही घर पहुँचा और उसने प्रियंका को सारी बातें बताईं । रोहिणी को पंद्रह दिनों के बाद होश आया और
उसने अपने पति को आँखों में आँसू भरकर पास ही बैठे हुए देखा तो कहा कि आपके रहते हुए मुझे कुछ होगा क्या ?
नाहक ही आप मेरे लिए परेशान हो रहे हैं। घनश्याम जी की सेवा प्रार्थना या रोहिणी को अभी इस दुनिया में और दाना पानी है शायद इसलिए रोहिणी ठीक हो गई और अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी ।
अभय और घनश्याम जी उन्हें घर लेकर आ गए थे । घर पर भी घनश्याम जी ही रुक्मिणी की देखभाल कर रहे थे ।
प्रियंका को उन दोनों को इस तरह से प्यार से देखते हुए लग रहा था कि यह कैसा प्यार है । पापा जी तो मम्मी जी की कोई भी बात सुनते ही नहीं है । घर में कोई भी आए उन सबके सामने ही जोर की एक आवाज लगाते थे रोहिणी !!!! वे डरकर सारे काम जहाँ के वहीं छोड़कर उनके कमरे में चली जाती थी
और आधे घंटे के बाद कमरे से बाहर निकल कर आतीं थीं । उन्हें कभी देर हो जाती थी या कभी वह कह देतीं थी कि यह काम पूरा कर दूँ वे कमरे से बाहर आ जाते थे । सब उनके ग़ुस्से से डरते थे । लोगों को यह भी संदेह होता था कि यह कमरे में जाकर क्या करते होंगे । बुआ कहतीं थीं कि पैर दबवाता होगा या क्लास लेता होगा ।
यह एक ऐसा रहस्य था जिसे कोई भी खोज नहीं सका था । यहाँ तक कि घर में क्या बनेगा यह भी
पापा जी सुबह शाम रसोई में जाकर मम्मी जी को बताते थे । मुझे आश्चर्य तब होता था जब मम्मी जी क्या पहनेंगी क्या खाएँगी यह सब कुछ वे ही तय करते थे ।
प्रियंका को कभी-कभी लगता था कि यह भी कोई ज़िंदगी है । एक दिन उसने सास को कह दिया था कि मम्मी जी आप पापा जी के इस निरंकुश व्यवहार को कैसे बर्दाश्त कर लेती हैं ।
रोहिणी ने कहा कि नहीं बहू तुम्हारे ससुर जी बहुत ही अच्छे हैं । वे मुझे बहुत प्यार करते हैं ।
वैसे भी बेटा रिश्तों के बीच विश्वास का एक पतला धागा होता है वही हम दोनों के बीच है । यह तुम लोग नहीं समझ सकते हो ।
वे अपने बेटे और बेटी से भी हमेशा कहतीं थीं कि तुम दोनों को भी तुम्हारे पिताजी के समान प्यार करने वाले जीवन साथी मिले यही मेरी तमन्ना है ।
दोनों बच्चे एक साथ कहते थे ना बाबा ना हमें ऐसा जीवन साथी नहीं चाहिए । आप ही को मुबारक हो । रिश्ते में भी लोग कहते थे कि रोहिणी है इसलिए इतना सह रही है हम होते तो…..
अभय कहता था माँ पिताजी जैसे आपको पुकारते हैं ना उस तरह से अगर मैं अपनी पत्नी को बुलाऊँगा ना तो वह दूसरे दिन ही मुझे छोड़कर चली जाएगी ।
रोहिणी हँसकर कहती थी कि तुम दोनों उनके प्यार को समझ नहीं पा रहे हो ।
एक दिन अभय ने घनश्याम जी को अच्छे मूड में देखा तो पूछ ही लिया था कि आपका माँ के ऊपर का जो प्यार हमने अस्पताल में और घर आने के बाद देख रहे हैं वह हमें हजम नहीं हो रहा है क्योंकि हमने बचपन से आपका दूसरा स्वरूप से देखा है ।
हमेशा ग़ुस्से में रोहिणी कहकर पुकारा करते थे माँ हमेशा आपसे डरतीं थीं । आपके भाई और चाचियों को भी आपकी आवाज़ सुनते ही कँपकँपी छूटती होगी है ना ।
वे जोर से हँसने लगे और उन्होंने कहा कुछ नहीं पर मन ही मन में पुरानी बातों का पिटारा खोल दिया था ।
हमारा संयुक्त परिवार है । मैं घर का बड़ा बेटा हूँ मेरे पीछे मेरे तीन भाई और दो बहनें हैं । मेरे पिता ने एक ही बहन की शादी करा दी थी । वह मुझसे दो साल बड़ी है ।
हमारा घर पूरा भरा रहता था । रोहिणी बड़ी बहू होने के नाते दिन भर रसोई में खटती रहती थी । खाने पीने में सबकी फ़रमाइशें होतीं थीं तो सबको खुश करने की कोशिश में वह अपने खान पान और पहनावे पर बिना ध्यान दिए फ़रमाइशें पुरा करने में लगी रहती थी ।
मेरे तीनों भाइयों की शादियाँ हुई थी तो सोचा था कि रोहिणी को थोड़ी सी फ़ुरसत मिलेगी पर नहीं उसका तो काम और बढ़ गया था । दूसरी बहुएँ छोटा मोटा काम करके चली जाती थी और और रोहिणी मेरी माँ के डर से सब काम अकेले ही निपटाती थी ।
एक दिन मैं ऑफिस से आ रहा था कि रास्ते में मुझे पिताजी मिल गए थे । मैंने घर की परिस्थितियों के बारे में उनसे बात छेड़ी तो उन्होंने कहा कि देख बेटा अपनी पत्नी के बारे में तुम्हें ही सोचना है ।
ऐसा उपाय खोज लो जिससे उसके ऊपर से काम का बोझ कम हो और घर की शांति भी भंग ना हो । याने कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे ।
मुझे उन्होंने हिंट देकर छोड़ दिया था । दो दिन बाद मैंने देखा कि सारे लोग बैठक में बैठे हुए थे। मैंने जोर की आवाज़ लगाई रोहिणी वह रसोई में अकेले खाना बना रही थी । मेरी आवाज़ सुनते ही भागकर आई । मेरे ग़ुस्से को देखते ही दूसरी बहुएँ फट से वहाँ से खड़ी हो गई और रसोई की तरफ़ चली गई थी ।
उन्होंने पहले कभी मेरा यह रूप नहीं देखा था परंतु भाइयों को मालूम था कि मैं ग़ुस्से वाला हूँ ।
रोहिणी कमरे में चलो कहा तो वह डरते हुए अंदर आई उधर बचे हुए काम को दूसरी बहुओं ने पूरा कर दिया ।
रोहिणी के अंदर आते ही मैंने पंखा चलाकर उसे बैठने को कहा । पहले तो वह कहती थी कि लोग क्या सोचेंगे हम सब एक साथ रहते हैं फिर ऐसा क्यों । मैंने उसकी एक बात नहीं सुनी । मैं जब तक घर में रहता था उसे बुलाकर आधा घंटा रेस्ट देकर भेजता था ।
अब मैंने लोगों की फ़रमाइशों को बंद करवाया और मैं ही सुबह शाम की मेनू बताने लगा जिससे उसे दिन भर रसोई में रहने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी ।
अपने लिए वह कुछ ख़रीदारी नहीं करती थी इसलिए मैं ही उसे सब दिलवाया करता था ।
लोगों को लगता था कि मैं रोहिणी पर अपनी पसंद थोपता हूँ उसे स्वतंत्रता नहीं देता हूँ लेकिन ऐसा नहीं है उसे पूरी स्वतंत्रता है यह बात हम दोनों के सिवा और कोई नहीं जानता था ।
माता-पिता के गुजरने के बाद भाई भी अपनी अपनी सहूलियत के हिसाब से घर लेकर परिवार के साथ अलग रहने लगे थे । आज रोहिणी का एक्सीडेंट हुआ सुनकर मेरी तो जान ही निकल गई थी । मैं बेटे को यह सब नहीं बता सकता हूँ इसलिए आज भी मैं रिश्तेदारों और बच्चों के सामने एक ग़ुस्सैल पति हूँ
और रोहिणी मेरी बातों को सुनते हुए एक आदर्श पत्नी बन गई थी । मुझे इस बात पर कोई अफ़सोस नहीं है । हम दोनों एक दूसरे को जानते और समझते हैं यही बहुत बड़ी बात है ।
घनश्याम हँसते हुए बेटे की तरफ़ देखते रहे परंतु उन्होंने मुँह से कुछ नहीं कहा । उनका यह राज उन तक ही रह गया था ।
के कामेश्वरी
#रिश्तों के बीच विश्वास का एक पतला धागा होता है