नीता की जेठानी सुरभि, हमेशा अपनी देवरानी नीता को गंवार, गांव कहकर पुकारती थी। नीता , तीखे नैन नक्श वाली एक सुंदर, सुशील सी लड़की थी। हर घरेलू काम में दक्ष किंतु पढ़ाई उसने सिर्फ हाईस्कूल तक ही पूरी की थी। वहीं सुरभि साधारण नैन, नक्श वाली लड़की थी किंतु वह विदेश से अपनी पढ़ाई पूरी करके वापस आई थी।
नीता को भी सुरभि द्वारा गंवार शब्द के संबोधन से बहुत बुरा लगता था किंतु फिर भी वह चुपचाप ही रहने की कोशिश करती थी।
जरा सी भी कहीं पर चूक होती नहीं कि सुरभि बोलने लगती अरे वो गंवार ये क्या कर दिया?
नीता अंदर ही अंदर क्रोध से भर जाती लेकिन सुरभि को कोई जबाव ना दे पाती।
बहुत बार सुरुचि के पति रौनक ने भी सुरभि को टोंका कि नीता को बुरा लगता होगा सुरुचि हमेशा गंवार, गंवार कहकर संबोधित मत किया करो उसे, ये अच्छी बात नहीं है।
लेकिन सुरुचि के स्वभाव में कोई फर्क ना पड़ता। जू तक ना रेंगती।
वह हमेशा कुत्ते की दुम ही बनी रहती। अब नीता के पति मयंक को भी बुरा लगता था कि कोई उसकी पत्नी को बात-बात पर अपमानित करे।
एक रोज नीता से फर्श पर जरा सी चाय क्या छलक गई सुरभि ने प्रवचन चालू कर दिए,,, “अरे गंवार ये क्या किया? अभी-अभी रामप्यारी फर्श साफ करके गई थी तुमने सब सर्वनाश करके रख दिया! अब कौन साफ सफाई करेगा?”
नीता ने कहा,,, “मैं साफ कर दूँगी दीदी, आप चिंता मत कीजिए।”
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तभी नीता का पति मयंक आ गया उसने सुरभि की सारी बातें सुन ली थी तो आज वह सुरभि के ऊपर बिफर पड़ा,,, “भाभी कोई चंद शब्द किताबी ज्ञान अर्जित कर लेने से विद्वान नहीं हो जाता।
व्यवहारिक भी होना पड़ता है। ये नहीं कि महज किताबी ज्ञान हो जाने से कोई भी व्यक्ति ज्ञानवान हो गया।
और हाँ सम्मान पाने के लिए सम्मान देना भी सीखिए।
सुरभि मयंक की बात से उस वक्त चुप तो हो गई लेकिन बदली नहीं।
वो जब भी मौका पाती नीता को जलील करने से नहीं चूकती थी।
एक बार सुरभि और नीता बाजार गईं सुरभि ने मॉल जाकर बहुत सा सामान खरीदा उसके बाद घूमी फिरीं फिर आगे बढ़कर आईं तो एक सब्जी के ठेले पर दोनों खड़ी होकर सब्जी का मोल भाव करने लगीं।
सब्जी खरीदते हुए सुरुचि ने बार बार सब्जी वाले को ये ठेलेवाले, ये सब्जी वाले शब्दों से संबोधित किया।
सब्जी वाला भी बिना कोई जबाव तलब किए मोल,भाव और नाप, तौल करता जा रहा था।
कुछ ही देर में सब्जी खरीदने के बाद सुरभि ने सब्जी वाले को पैसे दिए और सब्जी की पॉलिथीन नीता को थमाकर वह चलने लगी।
बहुत सारा सामान होने के कारण सब्जी की एक थैली नीता के हाथों से सरक कर धरती पर गिर गई।
तब सुरभि पुनः चालू हो गई,,, गंवार एक पैकेट तुमसे सम्हाला नहीं जा रहा। किसी काम की नहीं है तू।
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नीता वहीं पर चुपचाप रुआंसी सी खड़ी रही। तब सब्जी वाले से नहीं देखा गया तो वह अपने हिस्से की भड़ास को भी इकट्ठा करके सुनाना चालू कर दी। चालू हो गया सुरभि को सुनाने।
ओए मेम साहब गंवार तो आप हो! जरा सी अंग्रेजी बोलने से कोई सभ्य और संस्कारी नहीं हो जाता।
वो मैडम आपसे अधिक सभ्य और संस्कारी हैं। उन्हें पता है कि रिश्तों का सम्मान कैसे करते हैं। आपको तो यह भी तमीज नहीं है कि किसी का सम्मान कैसे करते हैं।
जब सुरभि सब्जी वाले को ठेलेवाले और सब्जी वाले जैसे नामों से पुकार रही थी तब नीता हर बार उन्हें सब्जी वाले भैया कहकर ही पुकारती रही।
इतने में काफी भीड़ भी जमा हो गई थी। सब तरह तरह के कयास लगा रहे थे कि सब्जी वाला क्यों झगड़ रहा है?
इसके बाद भी नीता ने कहा,,, भैया कृपया आप शांत रहें, वो मेरी जेठानी हैं यदि दो शब्द बोल भी दिए तो क्या फर्क पड़ता है!
आप सब भी अपना, अपना काम कीजिए। भीड़ की देखकर नीता ने कहा।
तब सब्जी वाले ने पुनः कहा,,, कुछ सीख लो मेम साहब, संस्कारी और सुशिक्षित इसे कहते हैं।
आज सब्जी वाले की बात सुरभि को गहरे तक बैठ गई थी। उसकी बातें रह रह कर कचोट रही थी सारी बाते उसको बहुत देर तक सोचने पर मजबूर करती रही.. लेकिन आज के बाद उसने फिर कभी भी गंवार कहकर नहीं बुलाता
स्वरचित
©अनिला द्विवेदी तिवारी
जबलपुर मध्यप्रदेश