Moral Stories in Hindi : सचिन-माँ मैंने रागिनी (सचिन की बहन) का कार्ड आपको ह्वाट्सऐप कर दिया है, आप अपने सारे ग्रुप और दोस्तों को भेज देना।
संतोषी (सचिन की माँ)-मेरा कोई ग्रुप नहीं है, घर जाकर कार्ड देकर आयूँगी, और पहला कार्ड तो मामा को देना था, उसके बाद ही दूसरों को कार्ड बाटना शुरू करना था।
सचिन-माँ मैंने डिजिटल कार्ड बनाया था, सबसे पहले मामा को ही ह्वाट्सऐप किया है।
संतोषी जी ये बात सुन अपने अतीत में चली जाती है जब उनका ब्याह होने वाला था। दो महीने पहले ही बाऊजी ने मामा को तार भेजा था कि विवाह की तिथि निकल आयी है, हम अगले महीने कार्ड लेकर आएँगे।
फिर एक महीने बाद माँ, बाऊजी, ददा और भाभी लोग सब मिष्ठान लेकर मामा के घर गए थे, वो कार्ड वितरण भी किसी समारोह से कम नहीं लग रहा था। मामा जी ने निमंत्रण सहर्ष स्वीकार किया।
सचिन-माँ, माँ कहाँ खो गई, अभी बहुत काम है, कोरियोग्राफ़र आता होगा सबको डांस सिखाएगा।
संतोषी-हमारे समय तो हम ढोलक की ताल पर ही इतना अच्छा नाच लेते थे, ये मुआ कोरियोग्राफ़र क्या सिखाएगा।
सचिन-माँ बस रहने दो आप लोगो के जमाने में तो दो चार स्टेप होते थे पूरा गाना उसी में ख़त्म हो जाता था। अब मेशअप होते है हर तरह का डांस एक ही गाने में कर सकते है।
आज संतोषी जी के यहाँ हल्दी की रस्म है सब आस पड़ोसी आ गए है, सबने पीले कपड़े पहने है, क्योंकि हल्दी में पीला और मेहँदी में हरा तो अब कंपलसरी जो हो गया है।
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सविता(सचिन की मौसी)-जीजी जरा हल्दी तो लाओ, अपनी लाडो रानी को जमके लगाऊँगी तभी तो रंग निखरेगा।
रागिनी-नहीं मौसी, हल्दी सिर्फ़ छुवाना, फेस पैक आया है, वही लगाऊँगी।
सविता-जीजी हमारे जमाने में तो हम हल्दी लगाकर ही दमकते थे ये फेस पैक क्या बला है।
हिप हॉप, रैप और आधुनिक संगीत के साथ हल्दी की रस्म भी संपन्न होती है। मेहँदी की रस्म में भी आधुनिकता का रंग दिखता है जिस कारण मेहँदी का रंग लाल की बजाए मेहरून और काला नज़र आ रहा है, क्योंकि अब तो केमिकल का जमाना है।
संतोषी-आज मेरी लाडो का विवाह है मेंरी लाडो नये रिश्तों में बंधने जा रही है। हमेशा ख़ुश रहना और दूसरों को भी खुश रखना।
रागिनी-माँ अब तुम फिर शुरू मत हो, और विदाई टाइम भी ज़्यादा मत रोना, मेरा मेकअप ख़राब हो जायेगा और बाद में तुम ही वीडियो देखकर मेरा मज़ाक़ बनाओगी।
संतोषी-अच्छा ठीक है नहीं रो रही। सचिन से पूछ जरा मामा लोग कितनी देर में आ रहे है। पैरी की साड़ी, नथ और बिछिए तो मामा ही लाएगा ना।
रागिनी-माँ पीली साड़ी तो मैंने ऑनलाइन ले ली है और नथ तो अपनी ज्वेलरी की मैचिंग की पहनूँगी ना।
संतोषी (नाराज़गी जताते हुए)-हर चीज़ में अपनी मनमानी करनी होती है तुम लोगों को। रीति-रिवाज भी तो मान्य होते है।
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रागिनी-माँ तुम उस दौर की बात कर रही हो अब ये सब नहीं चलता। अच्छा ग़ुस्सा मत हो अब मेरा चूड़ा देखो जरा।
शाम को “तेरे द्वारा पे आयी बारात” के गीत के साथ रागिनी के दूल्हे और बारातियों का आगमन होता है। संतोषी जी परेशान है कि रागिनी के मामा अब तक नहीं आए, शादी की रस्मों में उनका होना तो ज़रूरी था।
संतोषी जी फ़ोन मिलाती है और कहती ददा कहाँ हो, बारात आ चुकी है।
शेखर (संतोषी जी के भाई)-दीदी बस आपकी भाभी पार्लर से आ जाये बस निकल रहे हम लोग।
थोड़ी देर बाद शेखर और उनकी पत्नी विवाह में पहुँचते है । उन्हें देखकर संतोषी जी के मुख पर एक मुस्कान आ जाती है।
संतोषी-बड़े ददा नहीं आए, मुझे लगा आप सब साथ आ रहे।
शेखर-ददा के ऑफिस में कुछ काम था, तो उन्होंने हमे ये लिफ़ाफ़ा और गिफ्ट दिया और कहा कि मैं बाद में मिलता हूँ आकर।
ये सुनकर संतोषी जी का मन अंदर से दुखी हो गया पर बेटी की शादी में ऐसे दुखी होना भी तो अच्छा नहीं लगता। संतोषी जी मन से उदास पर चेहरे पर एक झूठी मुस्कान लिए हर बूरस्म निभा रही है और अपने जमाने और दौर को याद करते हुए ये पंक्तियाँ उनके ज़ेहन में आ रही है –
तू कल कुछ और था, तू आज कुछ और है।
वो भी एक दौर था, ये भी एक दौर है।
आदरणीय पाठकों,
ये बात एकदम सत्य है कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है, पर परिवर्तन वहाँ तक अच्छा है जहां तक किसी चीज़ की वास्तविकता, उसका उद्देश्य ना बदले। नवीन तकनीकी, नवाचार अच्छा है पर किसी चीज़ की अधिकता हानिकारक है। नवाचार ने रीति रिवाजों, अपनापन और रिश्तों को दरकिनार कर दिया है। मेरी बात पर गौर फ़रमाइएगा और नवीनता, आधुनिकता और नवाचार की एक सीमा तय करने का प्रयत्न करिएगा, ताकि फिर से वो मेल-मिलाप बना रहे, फिर से ढोलक और मंजीरे की धुन हर घर में गूंजे, फिर से बच्चे अपनों से मिले तोहफ़ों को सहर्ष स्वीकार करें, फिर से घर घर जाकर निमन्त्रण और बधाई का सिलसिला शुरू हो, फिर से बच्चे नानी और दादी से कहानियाँ और लोरियाँ सुनने की जिद्द करें।
उम्मीद है आप सबको मेरी ये रचना पसंद आयी हो। पसंद आने पर लाइक, शेयर और कमेंट करना ना भूलें🙏🏻🙏🏻
#मतलबी रिश्ते
धन्यवाद।
स्वरचित एवं अप्रकाशित।
रश्मि सिंह
नवाबों की नगरी (लखनऊ)