Moral stories in hindi : नीतीश जब दिल्ली जाने लगा तब निर्मला ने उसे एकांत में बुलाकर दस हजार रूपये उसके हाथ में रख दिये। ‘‘इसे रख लो। परदेस में काम आयेगे।’तभी नीतीश की नजर निर्मला के गले पर पडी। ‘‘भाभी, आपके गले की सिकडी कहां चली गयी।’’ सुनकर वह क्षणांश भावुक हेा उठी। अपने आंसुओं केा संभालते हुए बोली,’’संदूक में रखी है। बाद में पहन लूंगी।’’
‘‘मैं मान नहीं सकता। आपने जरूर उसे बेचकर मुझे दस हजार दिये है।’’आंचल से आंसुओं को पेांछते हुए निर्मला बोली,‘‘तेरी कैरियर से ज्यादा कीमती मेरे गहने नहीं है।’’नीतीश की भी आंखे भर आयी।
नीतीश आईएएस बन गया तो सबसे पहले निर्मला के लिए मंहगे सोने के हार खरीदकर लाया।
‘‘भाभी, आपके त्याग के आगे यह तुच्छ भेंट है। इनकार मत कीजिएगा।’निर्मला की आंखें छलछला आई। नीतीश के सहयोग से आयुष्मान भी इंजीनियरिंग की पढाई करने चला गया। इस बीच शिवानी का रिश्ता नीतीश के लिए आया तो किसी ने नानुकूर नहीं किया। शिवानी के पिता भी आईएएस अधिकारी थे।
शिवानी ने पीएचडी कर रखा था। शादी धूमधाम से संपन्न हो गयी। मात्र एक हफ्ते रही होगी शिवानी अपने ससुराल में। उसके बाद वह नीतीश के साथ रहने की जिद पकड ली। सुनकर सभी को मन उदास हो गया। नीतीश नहीं चाहता था कि शिवानी इतनी जल्दी उसके साथ चले। मगर उसे वहां बगैर नीतीश एक पल रहना गवांरा न था। निर्मला ने बेमन से उसे नीतीश के साथ जाने की इजाजत दे दी। एकतरह से शिवानी ने यह संदेश दे ही दिया कि वह बडे बाप की बेटी है।
वह अपने हैसियत के अनुसार रहना चाहेगी। बैंगलोर में नीतीश को सरकारी बंगला मिला था। वहां वह अपने मनमुताबिक रहने लगी। एक दिन नीतीश बोला,‘‘बडी भाभी और भईया यहां कुछ दिनेां के लिए आना चाहते है।’’शिवानी ने साफ मना कर दिया। क्येां के जवाब में बोली,‘‘यहां के लेाग जब उनके बारें में पूछेगें तो मैं क्या जवाब दूंगी।’’
‘‘मैं समझा नहीं?’’
‘‘जेठ जी एक मामूली से अध्यापक हें और जेठानी का रहन सहन हमारे हैसियत लायक नहीं। किसी ने पूछ लिया तो क्या बताएगें?’’शिवानी के कथन पर नीतीश का क्रेाध सातवें आसमान पर चला गया।
‘‘आज जिस हैसियत का लुफ्त उठा रही हेा वह निर्मला भाभी की ही देन है। अगर वे अपने गहने बेचकर मुझे रूपयें न दिये होते तो मैं कभी आईएएस नहीं बन पाता।’’
‘‘ठीक है तुम उन्हे यहां बुलाओ। मैं मना नहीं करूंगी। जब तक वे यहां रहेगें मैं अपने मैके चली जाती हूं।’’कहकर शिवानी अपने कमरे में जाने लगी।
‘वे तुमसे मिलने के लिए आ रही है,’’नीतीश ने कहा।
‘‘मुझसे मिलने की कोई जरूरत नहीं है। मैं लेावर स्टेडर्ड के लेागेा से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहूगी।’’ नीतीश को गुस्सा तो बहुत आया मगर चुप रहा। गलती उसी की थी। वह भी अपने हैसियत के हिसाब से शादी करना चाहता था। जैसा चाहा वैसा मिला।
सात साल गुजर गये। शिवानी मां न बन सकी। नीतीश ने काफी इलाज करवाया इसके बावजूद कोई लाभ नहीं हुआ। दोनेां निराश थे। एक रोज शिवानी ने नीतीश से भरे मन से बोली,‘‘आप चाहे तो मुझे तलाक दे कर दूसरी शादी कर सकते है।’’ सुनकर नीतीश को अच्छा न लगा।
‘‘ऐसा क्येा कहती हो। हमने शादी की है निभाने के लिए। अब हमारी किस्मत ने औलाद नहीं लिखा है तो क्या कर सकते है।’’
‘‘फिर भी वजह तो मैं ही हूं। दोष मुझमें है। फिर आप खुद को क्यों सजा दे।’’नीतीश ने शिवानी को डांट लगायी। ‘‘आज के बाद तुम ऐसा नहीं कहोगी। हमें बच्चा नहीं होगा तो गोद ले लेगें। मगर दूसरी शादी हरगिज नहीं करूंगा।‘‘शिवानी को राहत मिली। वैसे भी कोई शादीशुदा महिला नहीं चाहेगी कि उसे तलाक का दंश झेलना पडे। शिवानी को तसल्ली इस बात की थी कि नीतीश के मन भी आज उसके प्रति प्रेम बना हुआ है।
एक दिन मौका देखकर शिवानी ने निर्मला भाभी के छोटे बेटे बबलू को गोद लेने की सलाह नीतीश को दी। नीतीश को सलाह पसंद आ गयी। अंतत दोनेां ने फैसला लिया कि निर्मला भाभी से बात की जाए। अगर वह तैयार हो जाए तो उसके मां बनने की हसरत पूरी हो सकती हैं। सवाल उठा कि शिवानी किस मुंह से निर्मला भाभी से बात करें। उसे तो वह निम्न हैसियत की लगी थी। शिवानी की हरकतेां ने पहले से ही नीतीश को लज्जित कर रखा था। और कोई चारा न दिखने पर आखिरकार नीतीश को ही पहल करनी पडी।
‘‘भाभी, आप चाहेगी तो शिवानी मां बन सकती है।’’
‘‘वह कैसे?’’निर्मला के माथे पर बल पड गये। नीतीश ने सारी बातें विस्तार से बता दी। शिवम् ने जाना तो आपे से बाहर हेा गया।
‘कोई जरूरत नही है ऐसी खुदगर्ज महिला की मदद करने की?’’
‘‘नीतीश आपका का ही खून है। वह खुद नहीं भटका हैं उसे शिवानी की वजह से अपने लोगों से दूर जाना पडा। मेरे दो बेटों में से एक अपने चाचा के पास पलेगा तो कौन सा पहाड टूट पडेगा।’’
‘‘निर्मला,तुम्हारी इसी सदाशयंता का दोनेा ने नाजायज फायदा उठाया है। बाबूजी का भी ख्याल नहीं किया?’’
‘‘नीतीश और शिवानी नादानी करें तो क्या मैं भी करूं? बडी भाभी मां समान होती है। क्या मां अपने बेटों से विमुख हो सकती है?’’निर्मला का मन भींग गया। शिवम् के पास इसका कोई जवाब नहीं था। शिवानी को जैसे ही पता चला कि निर्मला बबलू केा देने के लिए तैयार है तो भागते हुए आयी। निर्मला के पैरो पर गिरते हुए आंश्रुपूर्ण नैत्रों से बोली,‘‘पद, प्रतिष्ठा, दोैलत के नशे में मैं रिश्तें नातेां की अहमियत भूल गयी थी। आज समझ में आया कि अपने अपने होते है।’’सभी के चेहरे पर खुशियों की लहर दौड गयी। निर्मला ने शिवानी को अंक में भर लिया।
श्रीप्रकाश श्रीवास्तव
वाराणसी
हर घर में ऐसी कम से कम एक हस्ती हो तो हर घर स्वर्ग बन जाए।
लेख बहुत अच्छा है पढ़कर ऐसा लगा मानव वास्तविकता ही सामने आ गई है