“अम्मा कल हमलोग शहर जा रहे हैं। नीतू की कक्षाएँ परसों से शुरू होने वाली है।” नवीन की माँ आशा चाय देती हुई कहती है।
“अच्छा, खूब मन लगाकर पढ़ बचिया। पढ़ लिख जाएगी तो जिंदगी बन जाएगी।” सुचित्रा जी चाय के घूंट के साथ कहती हैं।
तुम्हारे ही पढाई पढ़ाई की जिद्द के कारण नीतू की शादी नहीं हो रही है, अम्मा। कितने अच्छे रिश्ते निकल गए, वो भी बराबरी वाले। हमारी हवेली में रौनक आ जाती।” सुरेंद्र आँगन में आते हुए सुचित्रा की बात सुनकर कहते हैं।
“कौन से रिश्ते बताना। नीतू के नहीं, तेरी बराबरी के थे रिश्ते थे सारे और एक बात कान खोल कर सुन लो तुम लोग, जब तक ई लड़की नौकरी में नहीं लग जाती, घर में ही भले बैठी रहे, शादी की नहीं सोचना।” दादी स्पष्ट शब्दों में कहती हैं।
“इतना तो आजकल के आधुनिक लोग भी नहीं सोचते। बेटी की शादी कर निपट लेते हैं, इस कारण से इसकी भी शादी में देरी होगी।” नवीन की ओर इशारा करती आशा कहती है।
“वही तो बहू हम इतने भी आधुनिक नहीं हुए हैं कि घर की बेटी को जहां तहां भेज कर निपट लें। हम आज के नहीं हैं ना बहू, इसीलिए इतना सोच रहे हैं।” दादी कहती हैं।
क्यूँ भाई! इसकी शादी में देरी क्यूँ? ये लग गया काम पर, अब देखेंगे इसके लिए लड़की, बस काम वाली बहू होनी चाहिए, घर बैठने वाली बहू हमें जमेगी नहीं। उससे भी बड़ी बात लड़की देखने से पहले नवीन की इच्छा भी जाननी जरूरी है।” दादी नवीन की ओर देखती हुई कहती है।
इच्छा क्या होता है अम्मा। जहाँ कहेंगे, वही करनी होगी शादी। मजाक है क्या!” सुरेंद्र तुनकते हुए कहता है।
“देख सुरेंद्र पोते पोती की शादी हम अपने पसंद से करने वाले, इसमें कोई कुछ ना बोलेगा। हम तेरे काम में दखल नहीं देते, तू हमारे काम में दखल नहीं दे।” सुचित्रा दो टूक शब्दों में बेटे से अपना मन्तव्य बताती है।
“आज बाहर बैठे सभी लोगों का खाना यही होगा।” सुरेंद्र अपनी माॅं की बात पर कोई प्रतिक्रिया ना देकर पत्नी आशा की ओर देखते हुए कहता है।
“शीला से बता दे, कम्मो के साथ मिलकर सब बना लेगी।” आशा के कुछ कहने से पहले ही दादी कहती हैं।
बहू सारा सामान निकाल कर शीला को दे दे और जाकर तुम लोग भी अपना सामान सहेजो, कल मारामारी ना होगी।” दादी चाय खत्म करते हुए बोलती हैं।
“शीला दीदी बहुत स्वाद का खाना बना था।” उँगलियों को चाटते हुए नवीन कहता है।
दादी अब आपके हाथ की रोटी कब खाऊँगा? आपके हाथ की रोटी कितनी मीठी होती है। कैसे बनाती हैं दादी!” नवीन लाड़ जताते हुए कहता है।
उसकी इस प्रशंसा और प्रेमभरी बातों से दादी को खुद को विशेष महसूस करती हैं। नवीन द्वारा दादी के हाथ की रोटी के स्वाद और मिठास की प्रशंसा सुचित्रा के चेहरे से आनंद और गर्व का सममिश्रित भाव छलका रहा था।
“कुछ ना रे.. मक्खन लगा रहा है पोता मेरा।” दादी हाथ धोती हुई कहती है।
क्या दादी! भैया सच कह रहे हैं, आपके हाथ की रोटी बहुत मीठी होती है।” नीतू भाई की बात को आगे बढ़ाती हुई कहती है।
“हमारी पोती ने बोल दिया, तब तो सही है। रोटी मीठी इसीलिए होती है कि तुम लोग का प्यार घुल कर मेरे हाथों में समा जाता है और जब ये हाथ रोटी बनाते हैं तो वो मीठा मीठा प्यार रोटी में समाहित हो जाता है।” दादी दोनों के पास आकर दोनों के गाल पर अपनी हथेली लगाती हुई कहती हैं। दादी और पोती के बीच इस प्यार और संबंध का आदान-प्रदान देखकर एक गहरा आत्मीय संबंध की अहमियत का अनुभव हो रहा था। दादी की मीठे अल्फाजों से भरी बातों ने उनके बीच के संबंध को और भी अधिक प्रेम भरा बना रहा था ।
“बहू आ जाओ, हम लोग भी खाना खा लें। फिर शीला और कम्मो अपने घर चली जाएं।” सुचित्रा अपनी बहू आशा को आवाज देती हुई कहती है।
**
“रामलाल सारे खिड़की दरवाजे सब ठीक से बंद कर दिए।” सुचित्रा हवेली की रखवाली में हमेशा प्रस्तुत रहने वाले रामलाल से पूछती है।
“जी.. बहू जी.. सब कर दिया।” रामलाल जवाब देता हुआ बाहर जाकर दरवाजे के पास बैठ गया।
“दादी चलो ना सोने, आपसे बहुत सारी बातें करनी है। कल से तो फिर वही काम और भागदौड़।” नवीन पीछे से सुचित्रा के दोनों कन्धों को पकड़ कर चलता हुआ कहता है।
“बातें करनी है या उसके बारे में बताना चाहता है।” हाथ पीछे कर नवीन के कान खींचती हुई दादी कहती हैं।
“दादी कितनी तेज कान खींचती हैं आप। देखो लाल भभूका हो गया।” नवीन कान सहलाते हुए कहता है।
“अच्छा तेरी आँखें कान के पास भी हैं क्या.. देखूँ”.. दादी नवीन के साथ मजाक करती हुई कमरे की ओर बढ़ती हुई कहती हैं।
“क्या दादी आप भी.. चलिए ना जल्दी.. नींद आ रही है।” जम्हाई लेने का अभिनय करता हुआ नवीन कहता है।
“चल नौटंकी”.. नवीन को चपत लगाती हुई दादी कहती हैं।
***
“अब बता! क्या नाम है उसका? क्या करती है? कब से चल रहा है ये सब?” कमरे में आकर पैर फैलाकर आराम से पीठ के पीछे तकिया लगाती हुई दादी मुस्कुराती हुई पूछती हैं
“अरे बताता हूँ दादी, बताता हूँ। आप तो बेसब्र हो गई हैं।” नवीन सुचित्रा की उत्सुकता के मजे लेता हुआ बोलता है।
तूने तो “किसी को पसंद करता हूँ। अपनी बिरादरी की नहीं है, लेकिन उसी से शादी करवा दीजिए दादी” बोल दिया। उस समय से ही सब पूछना चाह रही हैं हम, चल शुरू हो जा अब।” दादी चेहरे पर जबरदस्ती नाराजगी के भाव लाकर कहती हैं।
“ओओओओ.. मेरी प्यारी दादी…आप तो अपने बेटे के जोन में चली गई। मेरी दादी के चेहरे पर नाराजगी अच्छी नहीं लगती।” नवीन दादी को मनाता हुआ उनके दोनों पैरों के पास बैठकर दबाता हुआ कहता है।
“एक बात बता, तू हमारे बेटे के पीछे क्यूँ पड़ा रहता है?” सुचित्रा हाथ से थप्पड़ दिखाते हुए पूछती है।
“क्यूँकि आपके बेटे साहब अमजद खान हैं, अमजद खान”, नवीन चेहरे पर डर के भाव के साथ कहता है।
“अमजद खान!” चेहरे पर प्रश्नात्मक भाव के साथ दादी पूछती हैं।
“गब्बर सिंह दादी.. गब्बर सिंह.. वो तो हाथ से चाबुक बरसाता था, ये तो भई मुँह से ही चाबुक बरसाते हैं।” नवीन हँसता हुआ कहता है।
“चल हट, बदमाश”.. नवीन के गाल पर धीरे से प्यार भरा थप्पड़ लगाती हुई दादी कहती हैं।
“बहुत नींद आ रही है दादी। सोया जाए अब।” नवीन तकिया लेकर दादी के बग़ल में लेटता हुआ बोलता है।
“शादी तुझे ही करनी है, हमें नहीं। एक बार फिर से सोच ले।” दादी भी जम्हाई लेती हुई और तकिया ठीक करती हुई बोलती हैं।
“बताता हूँ दादी.. अभी के अभी बताता हूँ। भूल ही गया था कि मुझे शादी भी करनी है, वो भी सुपर्णा से।” दादी की तरफ टेढ़ी निगाहों से देखता नवीन हड़बड़ाने का अभिनय करते हुए कहता है।
“दादी उसका नाम सुपर्णा है”, बोलकर अपने शर्ट की जेब से एक तस्वीर निकालता है.. “दादी ये है सुपर्णा की तस्वीर”, नवीन बोलता हुआ दादी के हाथ में तस्वीर देता है।
“अभी से ही दिल से लगाकर तस्वीर भी रखने लगा।” दादी चुहल करते हुए पूछती हैं।
“नहीं नहीं दादी, आपको दिखाने के लिए जेब में लिए घूम रहा था।”नवीन शर्माते हुए कहता है।
“देख तो हमारे साहबजादे का चेहरा शर्म से कैसा लाल हो गया।” दादी सुपर्णा की तस्वीर से बातें करती हुई कहती हैं।
“क्या दादी, आप भी, ऐसा कुछ नहीं है।” नवीन दादी की गोद में चेहरा छुपाते हुए कहता है।
“ये सब छोड़.. अभी रहने दे, शरमाने वाली कई सारी रस्में पड़ी हैं अभी।” दादी नवीन को छेड़ती हुई कहती है।
“अब ये बता, करती क्या है?” सुचित्रा गौर से तस्वीर देखती हुई पूछती है।
“इंजीनियर है दादी। अभी मुंबई में है। दिल्ली में हम दोनों साथ ही इंजीनियरिंग कर रहे थे। हम दोनों के विषय अलग अलग थे, लेकिन शौक एक था.. थिएटर…नाटकों में सहभागिता करना और उसी शौक ने हमें मिलवाया।” नवीन बीती बातें याद करता हुआ ऑंखों के द्वारा उन पलों को जीता हुआ कहता है। बोलते हुए नवीन की आँखों में आ गया चमक बता रहा था की वह उन बीते हुई दिनों की महक को अब भी महसूस करता है, वह पल उसके लिए महत्वपूर्ण ही नहीं है बल्कि वह उन पलों को अपनी स्मृति में हमेशा सजीव रखना चाहता है।
दादी नवीन की आँखों की चमक को देखकर मुस्कुराती हैं और उसकी यादों में रूचि लेती हुई कहती हैं, ऐसे नहीं, हम शुरू से सबकुछ जानना चाहते हैं।
“क्या दादी, नहीं, इस बच्चे को इतना प्रताड़ित मत कीजिए।” नवीन नजरें चुराता हुआ लज्जा से बोलता है।
“ओह हो, प्रेम करते समय और बियाह करा दो दादी, कहते समय तो ये बच्चा जादू से युवक हो गया।” सुचित्रा भी नहले पर दहला देती हुई हॅंस कर कहती है।
“ऊं दादी” नवीन बच्चों की तरह आवाज निकालता है।
“नहीं, कोई तिकड़म नहीं, हमें तो कहानी सुनाओ।” दादी नवीन को उठ कर बैठने का इशारा करती हुई कहती हैं।
अगला भाग
रिश्ते को भी रिचार्ज करना पड़ता है (भाग 3) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi
superb story