सिया रामाकांत जी की इकलौती बेटी थी। उनका एक मध्यम वर्गीय परिवार था। रमाकांत जी एक छोटी सी कपड़े की दुकान चलाते थे। आमदनी ठीक थी। अच्छी तरह से जीवन-यापन हो रहा था।
सिया एक खूबसूरत और संस्कारी लड़की थी। उसका कॉलेज का अंतिम वर्ष था और हर मां-बाप की तरह रमाकांत जी भी अपनी बेटी सिया के लिए ऊंचे ऊंचे सपने देखते थे और बोलते थे “मैं अपनी बेटी के लिए महलों का राजकुमार लाऊंगा।”
और हर बार उनकी मां उनको
समझती की, बेटा तुम्हारा प्यार अपनी जगह सही है लेकिन अपनी उम्र के तजुर्बे के आधार पर भी कहती हूं और हमसे बड़े बूढ़े भी कहते आए हैं कि,”रिश्ते हमेशा बराबर वाले से बनाने चाहिए” तभी रिश्तो में इज्जत मिलती है। रमाकांत जी हमेशा अपनी अम्मा को यही जवाब देते अम्मा समय बदल रहा है और लोगों की सोच भी।
ठीक है बेटा काश तुम ही सही साबित हो और सिया को ऐसा ही दूल्हा मिले। हां हां अम्मा जरूर मिलेगा देखना आप।
सिया की पढ़ाई पूरी होने के बाद रमाकांत जी ने अपने मन अनुसार घर वर देखना शुरू किया।
एक दिन रमाकांत जी सड़क पार कर रहे थे तो वह एक गाड़ी से टकरा गए। रजत गाड़ी से बाहर निकाला और रमाकांत जी को अस्पताल लेकर गया जबकि अगर कोई और होता तो पुलिस केस के डर से उन्हें वहीं सड़क पर छोड़कर भाग जाता। होश में आने पर जब पुलिस वाले उनसे बयान लेने के लिए गए
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तो रजत की अच्छाई को देखते हुए उन्होंने कहा कि उनकी ही गलती थी। इसी बीच रजत और सिया का भी आपस में मिलना हुआ। रमाकांत जी को तो रजत स्वभाव का बहुत अच्छा लगा उन्हें लगा कि शायद सिया के लिए अच्छे वर की खोज उनकी रजत पर जाकर समाप्त हो गई है।
उन्होंने रजत के बारे में पता लगाया तो उन्हें पता चला कि रजत एक रईस खानदान का इकलौता बेटा है। एक बार को तो उनके मन को भी डर सा लगा कि इतने बड़े घर में रिश्ते की बात करना सही होगा या नहीं?
उन्होंने अपने मन की बात अपनी पत्नी से बताई तो वह बोली देखो जी, अपवाद सब जगह होते हैं ना तो हर अमीर बुरा ही होता है ना हर गरीब अच्छा। हर मां-बाप अपनी बच्ची के लिए अच्छा ही सोचते हैं, बाकी किस्मत के सुख-दुख को भी आज तक कोई नहीं बदल पाया। तुम सही कहती हो मैं बात चलाकर देखता हूं।
रजत के परिवार वालों को सिया की सौम्यता भा गई और रिश्ता पक्का हो गया। आज वह शुभ घड़ी भी आई जब विदा होकर सिया अपने ससुराल जाने लगी। रमाकांत जी ने उसे समझाया बेटा मेरे संस्कारों को कभी मत भूलना, तुम जब उसे घर को अपना और उस घर में रहने वालों को अपने समझ लोगी तभी सुखी रह पाओगी बेटी।
सिया के व्यवहार और प्यार से रजत का परिवार बहुत खुश था। वे भी सिया और उसके परिवार को पूरा सम्मान देते थे। सिया बहुत खुश थी। सिया को अपनी ससुराल में खुश देखकर एक दिन बैठे-बैठे उनकी अम्मा रमाकांत जी से बोली “बेटा मानना पड़ेगा पैसा रिश्तो की अहमियत तय नहीं करता बल्कि वह तो एक दूसरे के साथ व्यवहार तय करता है”। आज मैं गलत साबित हो गई कि” रिश्ते हमेशा बराबर वाले से बनाने चाहिए।”
जी बिल्कुल मेरी प्यारी अम्मा चलो तो इस बात पर एक बढ़िया सी चाय हो जाए और खिलखिला कर हंस पड़े।
नीलम शर्मा