कार के शोरूम में ले जाकर पी के बर्मा जीने अपनी लाडली बेटी कविता से कहा,बेटा पसंद करके बता किस रंग की गाड़ी तुझे पसंद है वही ऑर्डर कर देंगे तेरी शादी के लिए।
कविता अपने पापा की बात सुनकर एकदम चुपचाप खड़ी रही,काफी देर तक कोई जबाव न मिलने पर बर्मा जी ने कहा,चलो यही पास में एक दूसरा शोरूम है, शायद तुम वहां से कुछ पसंद कर सको।
इस बार कविता ने गुस्से से कहा कि जब लड़का ही मेरी पसंद का नही है तो कार का रंग पसंद करके क्या करना है। केशव से रिश्ता तय करते समय आपने मुझसे एकबार भी पूछने की जरूरत नहीं समझी।
आपने तो अपनी दोस्ती निभाने के लिए मेरी जिंदगी की बलि चढ़ा दी है,अब कार का रंग पसंद करता रहे हैं।
दरअसल जब कविता के लिए रिश्ते देखते-देखते बर्मा जी कुछ हताश से हो गए तो उनके दोस्त तनेजा ने कहा कि यदि तुम को कोई एतराज़ न हो तो,हम कविता को अपने घर की बहू बनाने को तैयार हैं।
बर्मा जीने जब इस बात की चर्चा अपनी पत्नी से की तो उन्होंने तुरंत इस रिश्ते के लिए अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की।
#रिशते हमेशा अपने बराबर बालों सारी करने चाहिए।माना केशव आपके दोस्त का बेटा है, परंतु उनलोगो के घर हर रोज नॉन वेज बनता है और अपनी कविता को तो नॉन-वेज के नाम से ही उल्टी आती है,और दूसरे केशव की ड्रिंक करने की आदत, कविता कैसे गुजारा कर सकेगी उसघरमें।
यह कोई एकदिन की बात नही है,पूरी जिंदगी का सबाल है।
क्यों बात का बतंगड़ बना रही हो।पीने की आदत छूट भी सकती है शादी के बाद। देखा भाला परिवार है,केशव अकेला बेटा है उनका ,फिर तनेजा जी ने आगे बढ़कर कविता का हाथ मांगा है,यह कोईकम बात है।
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लेकिन अपनी बेटी की खुशियों की आपको जरा भी परवाह नहीं है जो अपनी दोस्ती की खातिर आप अपनी ई बेटी कीखुशियों की बलि चढ़ा रहे हैं।
#रिशता हमेशा अपने बराबर बालों से ही करना ठीक रहता है। आर्थिक स्थिति में भले ही हमारी उनकी समानता हो,लेकिन खान-पान के मामले में हमारी व उनकी पसंद एकदम अलग है ।पता नही कैसे गुजारा करे पायेगी हमारी बेटी उस घर में।
किसी की न सुनते हुए बर्मा जी ने कविता की शादी केशव से करबादी।कविता की शादी को पूरे छह साल हो चुके हैं,जव भी उसकी मां उससे अपना परिवार बढ़ाने की बात करती हैं,तो कविता अपनी मां के आंचल में मुंह छिपा कर रोने लगती है।उसका कहना है कि पता नही पापा ने मुझसे किस जन्म का बदला लिया है,उस शराबी से मेरी शादी करना के ।इससे तो में बिना शादी के ही ठीक थी।
मां आप ही बताओ जिस इन्सान के मुंह से शराब का भभका आया उस इंसान के सा कैसे हमबिस्तर हुआ जा सकता है।
उस घर में हर रोज नॉन बैज बनता है,उन लोगों का खाना बनने के बाद मुझे पूरी रसोई साफ करनी पड़ती है फिर मैं अपने लिए रोटी सब्जी बनाती हूं। क्या यही सुख होता है शादी का।मेरी तो पूरी जिंदगी बर्बाद करदीहै पापा ने अपनी जिद पूरी करने के लिए।
कहते तो हमेशा यही थे कि अपनी कविता के लिए राजकुमार ढूंढ कर लाऊंगा और देखो,राजकुमार तो क्या वह इन्सान तो इन्सान कहने लायक भी नही है।पापा की ज्वैलरी शॉप पर भी बैठना पसंद नही है,और अच्छी नौकरी लायक कोई योग्यता नहीं है।बस सारा दिन घर पर बैठना या अपने दोस के साथ तफरी करना यही दो शॉक हैं केशव के।
आपने कितना समझाया था कि अपनी दोस्ती की खातिर हमारी बेटी की जिंदगी दांव पर न लगाओ।
अब चाहे खुद भी पछता रहे हैं। अपने इस निर्णय पर। अब क्या हो सकता है । शादी व्याह कोई गुड्डे-गुड़ियों का खेल थोड़े ही होता है। जो आज इसके संग कल दूसरे के संग।मैं उस घर में कैसे गुजारा कर रही हूं मैं ही समझ सकती हूं।
इतना ही नहीं उस घर में कामवाली रखनी मना है। सासूमां तोबस हरदम अपने घुटनों के दर्द का ही रोना रोती रहती हैं।बस सारा दिन चकरघिन्नी की तरह काम में लगी रहती हूं ,ऊपर से उनकी मीन-मेख निकालने की आदत से परेशान हूं मैं तो।केशव का कहना है कि तुम्हारी वजह से मेरी मां को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।आखिर मैं अपना दुख किससे कहूं समझ नही आता बल्कि किसी तरह दिन काट रही हूं उस जेलखाने में।
कभी कभी बच्चों की राय न लेकर पेरेंट्स अपनी मर्ज़ी से उनकी शादी गलत इनसान लेकर देत हैं,जिसका खामियाजा लड़की को ताउम्र भुगताना पड़ता है।आजकल समय बहुत बदल गया है, उनकी जिंदगी की बावत कोई निर्णय लेते समय उनकी राय अवश्य लेनाी चाहिए।ताकि बाद में पछताना न पड़े।
स्वरचित व मौलिक
माधुरी गुप्ता
नईदिल्ली
सत्य घटना पर आधारि
सारी जानकारी होने के बावजूद कोई पिता अपनी बेटी का विवाह उस घर में कैसे कर सकता है…..ये अक्षम्य है।
लगता है आपका अपना अनुभव अच्छा नहीं ? जिसके पास जो होता है वह वही बांटता है। वैसे इस प्रकार के अनुभवों से पेशेवर बेटियों की विवाह संस्कार में रूचि बहुत कम हो गई है और लोग लिव इन रिलेशनशिप को तवज्जो देने लगे हैं जिसे सभी सनातन शत्रु बढ़ावा देना चाहते हैं।
किसी विद्वान् से सुना था कि भारत में हमारे पास केवल परिवार ही बचे हैं किन्तु लोग इस प्रकार की नकारात्मक बातों को फैला कर परिवार नामक संस्था को ही बर्बाद कर देना चाहते हैं।
हो सकता है कि कहीं आपकी बात सच हो क्योंकि संसार है और संसार में सब कुछ होता है किन्तु अच्छाइयां भी बहुत हैं तो अपने जीवन में आनंद वृद्धि हेतु दृष्टिकोण को अच्छा बनाइये क्योंकि विवेकानंद जी ने बताया था कि सोच ही साकार रूप धारण कर लेती है।
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