बेगम अजरा ने अचानक इकरा को आते देखा तो.. बुरी रही हैरान -परेशान हो गयी।वह इकरा से पूछे जा रही थी… “तू ऐसे कैसे??? इतनी सुबह कैसे??? तुम अकेली क्यों??? सब ठीक तो है???सूफ़ीनामा( दामाद) जी कहाँ हैं???”
इकरा ने बस इतना जवाब दिया कि—–“ उस्मान ने मुझे तलाक़ दे दिया है।” इतना कह वह अपने कमरे में चली गयी और बेगम अजरा और तारिक साहब को ऐसा लगा मानो… किसी ने सिर पर उनके बम विस्फोट कर दिया हो।थोड़ी देर बाद दोनों कमरे में आये और बोले- “ इकरा तुम परेशान ना हो बेटा! मैं अभी साजिद( इकरा के ससुर) से बात करता हूँ।
इकरा ने अपने अब्बू( तारिक साहब) को रोकते हुवे कहा—-“ इसका कोई फ़ायदा नहीं उस्मान को अमेरिका में कोई विदेशी लड़की से मोहब्बत हो गयी हैं,उसने अब्बू जान की भी बात मानने से इंकार कर दिया हैं,उन्होंने उसे बहुत समझाया और जायदाद से बेदख़ल करने की धमकी भी दी पर उस पर कुछ भी असर ना हुआ।
उसकी इस हरकत से नाराज़ हो कर उसे अपनी जायदाद से बेदख़ल कर दिया हैं।तारिक साहब और अजरा की ज़िंदगी मानो इकरा के तलाक़ के साथ ही ख़त्म ही गई थी और इकरा एक ज़िंदा लाश जैसे…इकरा उनकी इकलौती संतान… बड़े ही नाज़ों से पाली बढ़ी थी… अभी पिछले बरस ही तो…की थी अपनी बेटी इकरा की शादी , अपने बचपन के दोस्त साजिद के बेटे उस्मान से।
दोनों परिवार में ज़मीन असमान का अंतर था पर तारिक साहब को अपने दोस्त और उनके बेटे उस्मान पर पूरा भरोसा था … थोड़े कम पैसे वाले ही सही पर साजिद भाई उनके बचपन के दोस्त है और उस्मान और इकरा दोनों साथ-साथ पले-बढ़े हैं, उस्मान बारहवीं के बाद आगे पढ़ने बड़े शहर चला गया पर तारिक साहब ने इकरा को यही इलाहाबाद में ही ग्रेजुएशन करने के लिए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में दाख़िला दिलवा दिया।
उस्मान बी-टेक कर दिल्ली में ही नौकरी पा गया तो तारिक साहब ने बीए पूरा करते ही अपने दोस्त साजिद भाई और उनके बेटे की रज़ामंदी से दोनों का निकाह करवा दिया।अपने दामाद उस्मान को आगे पढ़ने के लिए अभी तीन महीने पहले ही अमेरिका भेजा था ताकि वहाँ से लौट कर उनका बिज़नेस सम्भाल ले।
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अजरा बेगम ने दबी ज़ुबान से ख़िलाफ़त भी की थी… पर तारिक साहब नहीं माने अजरा इस निकाह के भी ख़िलाफ़ थी… उसका मानना था कि….”#रिश्ते हमेशा बराबरी वालों से बनाना चाहिये।”पर हमारे इस पुरूष-प्रधान समाज में हम स्त्रियों की बातें कम ही सुनी जाती हैं।
रोज़ की तरह आज भी अजरा जब इकरा के कमरे में आयी तो वह कमरे की बत्तियाँ बंद कर दुःखभरे गाने सुन रही थी।पिछले छः महीने से इकरा का यही मामूल बन चुका था।कल तक जस लड़की को घूमना-फिरना, फ़िल्में देखना, हर समय मस्ती भरे फ़िल्मी गाने सुनना पसंद था वही लड़की आज अंधेरे में ऐसे गाने सुनती रहती है।अज़रा बहुत दुखी रहती पर कुछ कह नहीं पाती।
तारिक साहब को भी अब अपने किए आया पछतावा था पर वो… बेज़ुबान हो गये हो जैसे। उन्हें मलाल था अपने इस निकाह के फ़ैसले पर… क़िस्मत के लिखे का क्या????
अभी इकरा नाश्ता कर अपने कमरे में आयी ही थी कि… उसका मोबाइल फ़ोन बजा…नामालूम नंबर देख उसने फ़ोन काट दिया… तभी दुबारा कॉल आयी तो उसने फ़ोन उठाया और हैलो बोलने पर…जानी-पहचानी आवाज़ से रूबरू हुई…उस्मान था दूसरी तरफ़…
अपने किए हुवे गुनाहो की मुआफ़ी माँग रहा था वह… “मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है इकरा.. जिस विदेशी लड़की की वजह से मैंने तुमको छोड़ा… वह किसी दूसरे के ख़ातिर हमें छोड़ गयी… अब्बा जान और अम्मी जान ने भी हमसे रिश्ता ख़त्म कर दिया हैं… मैं अब तुम्हारे पास आना चाहता हूँ… मुझे तुम्हारी ज़रूरत है इकरा।”इकरा ने ज़ोरदार कहकहा लगाया और बोली-“ उस्मान हुसैन साहब —- मैं आपकी ज़रूरत बन कर रह गई हूँ,
पर मुझे किसी की ज़रूरत नहीं बनना….वह विदेशी लड़कीटो आपकी मोहब्बत थी ना तो फिर क्यों आपको छोड़ गयी। अब मैं सिर्फ़ बीए पास एक लड़की नहीं… एक बहुत बड़ी बिज़नेस वीमेन हूँ… और एक बात… जनाब उस्मान हुसैन साहब#रिश्ता हमेशा बराबरी वालों से बनाना चाहिए, कह कर फ़ोन कट कर दिया। दरवाज़े की दहलीज़ पर खड़े होकर… ताक़िर और अज़रा बेगम से इकरा की आँखें चार हुयी और तीनों की आँखें नाम होते हुवे वो सब मुस्कुरा रहे।
संध्या सिन्हा