रिश्ता साझेदारी का – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

” समधन जी बारातियों का स्वागत जरा अच्छे से करना ऐसा ना हो हमारी नाक कट जाए पहले ही गैर बिरादरी में और साधारण परिवार में रिश्ता करवा कर हम रिश्तेदारों की आलोचना सुन चुके हैं !” शांति जी अपनी समधन यानी की अपनी बहू की माता जी मीना जी से फोन पर बोली।

” जी बहनजी !” मीना जी के इतना कहते ही उधर से फोन कट गया। क्योंकि फोन स्पीकर पर था तो मीना जी की बेटी रूपल ने सारी बात सुन ली।

” मम्मी आप कैसे करोगे सब वो लोग ऐसे तो डिमांड पर डिमांड करेंगे मैं इसलिए इस शादी के हक में नही थी !” रूपल  मां से बोली।

” ना मेरी बच्ची तुझे इतना अच्छा लड़का मिला है जिसने खुद से तुझसे शादी की जिद करके अपने घर वालो को मनाया है तू चिंता क्यों करती है सब हो जाएगा !” मीना जी ने बेटी को तसल्ली देते हुए कहा।

इससे पहले की मेरी कहानी आगे बढ़े मैं आपको अपनी कहानी के पात्रों के विषय में कुछ बता दूं। मीना जी जिनके पति की मृत्यु उस वक्त हो गई थी जब रूपल चार साल की थी।  तब उन्हे अपने पति की जगह नौकरी मिल गई थी परिवार में सास ससुर थे

जिनके सहारे मीना जी रूपल को छोड़ नौकरी करती थी। अब उनकी भी मृत्यु हो चुकी थी और रूपल भी पढ़ लिख कर बैंक में नौकरी करती थी। वहीं पर प्रखर ( रूपल का होने वाला पति ) मैनेजर है। ना ना एक जगह नौकरी करने से आप ये मत समझना ये प्रेम विवाह है।

दरअसल प्रखर को रूपल भा गई और उसने अपने माता पिता से उससे शादी करने की इच्छा जाहिर की। शुरू में प्रखर की माताजी को ये रिश्ता मंजूर नहीं था क्योंकि रूपल ना तो उनकी तरह धनवान खानदान से थी ना ही उनकी जाति की ।

फिर भी सबके समझाने पर उन्होंने रिश्ते को हामी भर दी। किंतु अब वो शादी अपने तरीके से चाहती थी जबकि रूपल पहले तो ये शादी ही नही करना चाहती थी और अब वो चाहती थी उसकी मां सब अपने हिसाब और हैसियत से करें।

” रूपल तुमसे कुछ बात करनी है शाम को कैफे चलना मेरे साथ !” रूपल के बैंक आते ही प्रखर ने उसे अपने केबिन में बुला कर कहा।

” जी सर !” रूपल ने कहा वो असल में बैंक में प्रखर को सर ही बोलती थी अभी भी।

” रूपल मैने शादी का हॉल देखा है एक और कैटरर से भी बात की है मैं चाहता हूं तुम और मम्मी जी जाकर एक बार देख लो तो मैं बुकिंग अमाउंट जमा कर दूं !” शाम को कैफे में काफी और सैंडविच का ऑर्डर दे प्रखर रूपल से बोला।

” पर प्रखर जी आप क्यों ये तो लड़की वालो का होता है!” रूपल हैरानी से बोली।

” देखो रूपल मैने सुबह अपनी मम्मी की सारी बात सुन ली थी जो उन्होंने मम्मी जी से कही मैं उन्हें मना नही कर सकता पर तुम्हारा साथ तो दे सकता हूं !” प्रखर ने समझाया।

” पर मम्मी इस बात को नही मानेगी जैसा भी करेंगे हम खुद करेंगे इंतजाम !” रूपल बोली।

” रूपल बात को समझो हम एक होने जा रहे है हमारे परिवार एक होने जा रहे है तुम क्या चाहती हो या तो मम्मी जी पर बोझ पड़े या मेरे घर वाले नाराज रहें। जब हम पर हर बात का हल है तो क्यों परेशानी खड़ी कर इस शादी को समझौते की शादी बनानी। क्या हम समझदारी से इसे साझेदारी की शादी नही बना सकते ? थोड़ी तुम्हारी साझेदारी थोड़ी मेरी और दोनो परिवारों में भी मनमुटाव ना रहे।…बोलो !!” प्रखर बोला।

” मेरी मम्मी नही मानेगी इस बात को !” रूपल प्रखर को सम्मान की दृष्टि से देखते हुए बोली।

” अरे ये मुझपर छोड़ दो बेटा हूं आखिर उनका बेटे की बात तो माननी पड़ेगी उन्हे …चलो अभी तुम्हारे घर चलते हैं वही से शादी की जगह भी देखने चलेंगे !” प्रखर कॉफी खत्म कर उठते हुए बोला।

दोनो रूपल के घर पहुंचे मीना जी ने प्रखर की बात मानने से पहले तो इंकार कर दिया पर जब प्रखर ने कहा अगर आपका बेटा बोलता तब भी मना करते आप तब वो निरुत्तर हो गई। जगह देखने की बात पर उन्होंने यही कहा की जब मेरे बेटे ने पसंद की है तो अच्छी होगी। 

शादी वाले दिन इंतजाम वाकई बहुत अच्छा था प्रखर ने सब अपनी मम्मी की पसंद के हिसाब से करवाया था जिससे शांति जी खुश तो नही पर हां संतुष्ट जरूर थी। प्रखर की जरा सी समझदारी और सांझेदारी से एक रिश्ता समझौते का रिश्ता बनने से बच गया साथ ही दो परिवारों मे मनमुटाव भी नही हुआ।

दोस्तों कुछ परिवारों में अभी भी बिरादरी मायने रखती है जिसके लिए वो लड़की वालों पर अतिरिक्त बोझ चढ़ाने से नही चूकते पर अगर लड़का प्रखर जैसा हो तो वो दोनो घरों को एक कर सकता है। आखिर शादी तो नाम साझेदारी का है मनमुटाव का नही। 

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल 

#मनमुटाव

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