आनंद, शाम को तैयार रहना, तेरे लिये लड़की देखने जाना है, बिना जवाब सुने पापा बाहर निकल गए। ये आवाज अक्सर कानो मे पड़ती। फिर हम लड़की देखने जाते, मॉ को अगर लड़की पसंद आती तो बाबूजी मना कर देते, अगर दोनों को पसंद आती तो मैं मना कर देता।
ये सिलसिला लगभग साल भर से चल रहा था। एक दिन बाबूजी ने गुस्से में अल्टीमेटम दे दिया कि अब तू अपने लिए खुद लड़की ढूढ़ लेना, एक साल का समय देता हूं, अगर नहीं ढूंढ पाता हैं, तो मेरी पसंद की लड़की से शादी करनी पड़ेगी। मेरे रिटायरमेंट में 20 महीने बचें हैं, ओर उससे पहले में इस जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहता हूँ।
एक साल का समय बीत गया पर सब कुछ जस का तस। फिर एक दिन मुझे मां ने फ़ोटो दिखाई और बोला संडे को लड़की देखने जाना है, बाबूजी के दोस्त की बेटी है, बस। कितना पढ़ी है, क्या करती है, किसकी बेटी है, कहाँ घर है, कुछ पता नहीं। तय समय पर मैं, मॉ ओर पिताजी लड़की देखने गए, अपने ही शहर में, बस 5-6 किलोमीटर दूर दुर्गा कॉलोनी में घर था। घर पहुँच कर, चाय वगैरह पी, फिर मां ने कहा,
अन्दर रूम में जाकर बात करलो। हम दोनों अंदर गऐ ओर हेलो हेलो किया और बैठ गए। जब तक बातें शुरू होती, मॉ की आवाज आई, बाहर आ जाओ, ओर हम बाहर आ गए। बाहर आकर क्या देखा कि पिताजी मिठाई / पैसे दे रहे है और लड़की की मां ने भी मुझे पैसे/ मिठाई दी, मॉ से गले मिली ओर बोली, बधाई हो, रिश्ता पक्का हो गया। पिताजी उठे, औऱ बोले, चलो, बाकी बातें बाद में होंती रहेगी, ओर हम घर आ गए।
मॉ-पिताजी किसी ने नहीं पूछा, की लड़की कैसी है, पसंद है या नहीं। बस रास्ते में इतना बोला, की अभी दोस्तों वगैरह को मत बताना, एक बार लड़की की फाइनल परीक्षा हो जाये, तब सबको बता देंगे, बेचारी परीक्षा में डिस्टर्ब रहेगी। ये सुनकर मेरी जान में जान आ गई, चलो 2 महीने का टाइम मिल गया,
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कुछ तो करुगा। मैं सोचता रहा कि मां पिताजी को तो बोल नहीं सकता, पर बताना तो पडेगा की लड़की पसंद नहीं है। ऐसे ही 2-3 दिन बीत गए। फिर एक शाम मैं घर में बैठा था कि मां की आवाज आई, आनंद, तुझसे कोई मिलने आया है। मैं बाहर आया तो देखा कि एक सुंदर सी लड़की खड़ी थी, बडी बडी आंखे, कातिल मुस्कान, कसा हुआ बदन, मैं पागल सा होकर बस देखता ही रह गया। वो मुस्कुरा के बोली, मैं आपसे मिलने आई
हूं। मैंने बोला जी बोलो, क्या काम है? वो फिर बोली, मैं रचना ही फ्रेंड हूँ। मैने पूछा, कौन रचना? वो जोर से हँसी ओर बोली, वाह जीजाजी, अभी से साली से मजाख? मैंने जैसे तैसे बात को सम्भाला ओर अंदर आने को बोला। मुझे अपने आप पर बहुत गुस्सा आया, क्योंकि मुझे रचना का नाम भी नहीं पता था। बातें करते हुए मैंने पूछा, तुमने मुझे पहचाना कैसे। उसने सारी कहानी सुनाई, की रचना ने सिर्फ मुझे ही बताया
और आपकी फ़ोटो दिखाई। में तो फ़ोटो देखकर ही पागल हो गई। मैंने रचना को बोला, तू बहुत लक्की हैं, एग्जाम से पहले ही डिग्री मिल गई। रचना झळलाकर बोली, तू ही करले उससे शादी, मुझे नही करनी। घर वालो ने न मेरी पसंद पूछी, न कुछ, बस रिस्ता पक्का कर दिया। मैं बोली इतना हैंडसम लड़का अगर मुझे मिलता तो मैं एग्जाम भी छोड़ देती ओर फट से शादी कर लेती। तब पहली बार रचना ने एक राज की बात बताई,
की वो किसी ओर से प्यार करती हैं और उसी से शादी करना चाहती हैं, तब मैंने आपसे मिलने का प्लान बनाया ओर यहां आ गई। ये बात सुनकर मेरे दिल को बड़ा सकून मिला पर मैंने चेहरे के हावभाव सामान्य रखे। मुझे 2 बातें समझ आ गई की रचना इंटरेस्टेड नहीं है और उसकी सहेली इंटरेस्टेड लग रही हैं। मैंने सोचा चलो यहीं ट्राय मारते हैं, लड़की सूंदर है, स्मार्ट है, शायद बात बन जाये। थोड़ी देर तक खमोशी छाई रही,
फिर मैंने बात आग बढ़ाईे ओर बोला, साली जी, आधी घर वाली जी, आगे का क्या प्रोग्राम हैं? वो बोली, न आपकी रचना से शादी होने वाली है न मैं आधी घर वाली बनने वाली हूँ, समझे ? मैंने झठ से पूछा, कहो तो पूरी घरवाली बना लूँ ? वो कुछ बोली नहीं पर ऐसे मुस्कुराई जैसे बिन कहे सहमति दे रही हो। कल शाम 5 बजे कॉफ़ी हाउस में मिलते हैं, मैं रचना को लेकर आजाऊगी ओर आगे की प्लानिंग वहीं पर करेगे,
इतना कहकर वो उठ कर चल दी। मैंने उसे रोका ओर पूछा, अपना नाम तो बताती जाओ ? “खुशी”, वो मुस्कराई ओर फ्लाइंग किस देती हुई बाहर निकल गई। बहुत दूर तक उसे जाते हुए मैं देखता रहा और अकेला खड़ा मुस्कुराता रहा। रात भर खुशी का चेहरा, उसकी मुस्कान, उसका फ्लाईंग किस आँखों में घूमती रही और कल शाम को फिर मिलने की चाहत में देर रात तक नीद नहीं आई, फिर न जाने कब आँख लग गई।
सुबह देर तक सोता रहा क्योंकि ऑफिस नहीं जाने का मन बना लिया था। शाम को अच्छे से तैयार होकर ठीक 5 बजे कॉफी हाउस पहुच गया। खुशी को कोने में अकेले बेठा देख दिल झूमने लगा। उसने अपनी खूबसूरत मुस्कान से बैठने का इशारा किया। मैंने पूछा, रचना”? वो मेरा हाथ पकड़ कर बोली, तुम्हारी उससे तो शादी होगी नहीं, तो मैंने सोचा मैं ही ट्राय मरती हूं, तुम्हें बुरा लगा क्या? ओस्कोर्ज़ नॉट, मैंने कहा।
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चाय पीते और बातें करते करते कब 6.30 बज गऐ पता ही नही चला। तभी अचानक रचना एक लड़के में साथ हमारे सामने आकर खड़ी हो गई। लड़के को देख कर खुशी बोली, भाई तुम यहाँ? हाँ दीदी, मैंने आपको जिस लड़की के बारे मे बताया था, वो यही है, रचना, जो मेरी वजह से शादी नही करना चाहती, मैंने आपको बोला था कि समय आने पर मिलवा दूँगा, अब समय आ गया है। खुशी बोली, रचना,
तू तो बहुत चालू निकली, मुझे भी भनक नही लगने दी, वैसे मैंने मॉ पिताजी को तेरा नाम सजस्ट किया था, बधाई हो।
खुशी बोली, हर्ष भईया, ये आनंद हैं, रचना के सो कॉल्ड, होने वाले। चारों ने मिलकर प्लान बनाया और अगले दिन प्लान के मुताबिक हर्ष, आनंद के घर गया और बताया कि मुझे रचना ने भेजा है, आपको बताने के लिये कि वो शादी नही करना चाहती क्योंकि वो किसी ओर से प्यार करती हैं।
आप रचना को फ़ोन करके कन्फर्म करलो, फिर जो सही लगे वो फैसला करना, बोलते हुए रचना का नंबर मिलाकर मोबाइल आगे कर दिया। आनंद की माँ ने जैसे ही बात शुरू की, उधर से रचना ने प्लान के मुताबिक रोना शुरू दिया और आत्महत्या करने की बात कह दी। मोबाईल लेकर हर्ष चल दिया और जाते जाते बोला, ऑन्टी, 4-4 जिंदगियां ओर परिवार का सवाल हैं, बाकी जैसी आपकी मर्जी।
वहाँ से निकल कर हर्ष सीधा रचना के घर गया और ऑन्टी को बोला, मैं आनंद का दोस्त हूँ, मुझे आपको बताने के लिए भेजा है की आनंद किसी ओर लड़की से प्यार करता है और शादी नही करना चाहता, आप उससे बात करलो ओर फ़ोन लगा कर दे दिया। आनंद भी रोटा हुआ बोला, आन्टी, मैं शादी नही करना चाहता, अगर जबरदस्ती की तो आपकी बेटी विधवा हो जायेगी।
अगले दिन दोनो परिवारों ने आपस मे बातचीत करके रिस्ता ख़त्म कर दिया ओर आनंद- खुशी का रिश्ता जुड़ गया।
सबकी सहमती से आनंद और खुशी, हर्ष ओर रचना का विवाह हो गया।
रचना ने आनंद से कहा कि हमारी शादी नही हुई पर हम रिस्तेदार तो बन गए।
ख़ुशी ने रचना से कहा तूने मेरे भाई पे नज़र रखी तो मैने तेरे आनंद पर नज़र लगाली।
आनंद बोला बाबूजी, अभी भी आपके रिटायरमेंट में 3 महीने बाली है।
बाबूजी बोले ये वर्ष कुछ यूं बीता कि तेरी शादी हो गई और मुझे सारी जिम्मेदारीयो से मुक्ति मिल गई, ऐसा लग रहा हैं जैसे मैं आज ही रिटायर हो गया हूँ।
लेखक
एम.पी.सिंह
(Mohindra Singh)
स्वरचित, अप्रकाशित
5 jan.25