रमा ने शुरू से अपनी ही चलाई। मायके में भी सबसे बड़ी रही तो वहां पर भी सब पर रौव जमाती थी। धीरे-धीरे अंहकार भी मन में बड़ा होने लगा।
शादी करके ससुराल आई तो यहां भी बड़ी बहू का ओहदा मिला। मायके में तो खाता-पीता घर था लेकिन ससुराल में तो उसकी लॉटरी ही निकल गई मानो।
ससुराल के लोग भी सब बहुत अच्छे थे। सास तो मानो सीधी गाय जैसी। आते ही सारा राज पाठ सौंप दिया उसे।
फिर क्या रमा तो अपनी मनमानी चलाने लगी हर जगह। धीरे-धीरे जवान भी तीखी होने लगी। त्रिया चरित्र भी दिखाती।
जरा कोई सामान इधर से उधर होता तो तुरंत दूसरे पर नाम लगा देती। उसकी इस बदतमीजी का सबसे पहला शिकार तो घर के नौकर चाकर ही बनते।
धीरे-धीरे बदतमीजी इतनी बढ़ गई है कि घर के लोगों पर भी नाम लगा देती।
छोटा देवर जो उसकी बहुत इज्जत करता था उसको ज्यादा रास नहीं आता था क्योंकि उसको लगता देवरानी के आते ही उसका हक आधा हो जाएगा।
एक पुश्तैनी जमीन जो अब सरकारी भूमि अधिग्रहण में आ रही थी, उसका मुआवजा भी बहुत मोटा आया।
बैंक में से पैसे निकाल कर देवर और उसके पति ला रहे थे। रास्ते में बदमाश पीछे लग गए। दोनों भाइयों ने बहुत कोशिश की लेकिन बदमाश बैग छीन कर ले गए। छीना झपटी में बड़े भाई को ज्यादा चोट आई छोटे को कम।
परिवार को पता चला सभी के हाथ पैर फूल गए। अस्पताल ले जाया गया दोनों भाइयों को।
बड़े भाई की पत्नी रमा ने अस्पताल में ही हंगामा काटना शुरु कर दिया कि देवर कैसे बच गया? सारी चोट उसके पति को ही क्यों लगी?
घर के लोगों की आंखें आंसुओं से भरी थी और रमा ने बेशर्मी साध रखी थी।
तब उसके देवर अनिल ने कहा भाभी आपको जो समझना है समझो। सांच को आंच नहीं। आप अपनी विषैली बातों का जहर कम से कम हमारे घर में तो मत घोलो।
आप तो अभी कुछ ही सालों से आई हो हम भाई-भाई तो बचपन से ही साथ-साथ रहे हैं। सब जानते हैं कि हममें कितना प्रेम है?
हम भाइयों की जोड़ी को राम लखन की उपमा दी जाती है। तो भाभी तुम माता सीता जैसी क्यों नहीं बन सकती?
क्या आवश्यक यही है कि घर में लड़ाई झगड़ा हो?
घर को प्रेम का एक मंदिर भी तो बनाया जा सकता है।
मात्र रूपए पैसे और जमीन जायदाद के विवाद में अगर सबसे ज्यादा रिश्ता कोई पिसता है तो वह भाई भाइयों का ही रिश्ता है। बहनें भी कभी अपना रिश्ता इतना खराब नहीं करती हैं जितना भाई भाइयों के रिश्ते में विष घुल जाता है।
जो रिश्ता विपत्ति बांटने के लिए बनाया जाता है वह खुद संपत्ति बांटने के चक्कर में बंट जाता है।
रमा को भी अपनी गलती का एहसास होता है उसकी आंखों से पानी टपकने लगता है।
फिर अंदर से डॉक्टर साहब आकर बड़े भाई मृदुल की सलामती का समाचार सुनाते हैं जिसे सुनकर सबको राहत की सांस मिलती है।
8 दिन अस्पताल की भाग दौड़ में ही निकल गए। रमा जब अस्पताल से घर आई तब देखा उसके दोनों बच्चे समय से स्कूल जा रहे थे क्योंकि उसे तो कुछ पता ही नहीं था घर का। उसकी सास और ननद ने घर की सारी जिम्मेदारी संभाल रखी थी।
उसके पति को सही होने में काफी समय लग गया। देवर और ससुर ने सारा व्यापार अच्छी तरीके से संभाल कर रखा उसे और उसके बच्चों को कहीं से कमी न होने दी।
आप उसे एहसास हुआ कि उसने तो सदैव रुपए पैसों पर #हक जमाया। रिश्तो की तो उसने कभी कद्र ही नहीं की।
जबकि उसके सबसे खराब समय में उसका परिवार उसके साथ हर वक्त खड़ा रहा।
रमा सबसे माफी मांगती है। उसका परिवार सब बातों को भूलकर उसे गले लगा लेता है।
रिश्ते बड़े नाजुक होते हैं। छोटी-छोटी बातों से आहत हो जाते हैं। इसलिए सभी थोड़ा सा झुक जाए तो शायद रिश्ते बच जाए। शायद इसलिए ही फूलों वाली डालियाँ भी झुकी हुई होती है।
#प्राची_अग्रवाल
खुर्जा बुलंदशहर