जितेंद्र की मां सुकून से ना जाने कितने समय के बाद आज अपने कमरे में बैठी हैं। रेखा जैसी बहू पाकर उनकी जिंदगी की सारी मुश्किलें जैसे हल हो गई। जितेंद्र ना जाने कितने सालों के बाद इतना खुश दिखाई दे रहा है ।अब उन्हें जितेंद्र की कोई चिंता नहीं। रेखा जैसी सुलझी लड़की को पत्नी के रूप में पाकर जितेंद्र का जीवन सुख से बीतेगा।
तभी उनके कमरे में उनकी बड़ी बहन यानी जितेंद्र की मौसी आती है ।
“छोटी क्या कर रही है ?बड़ा मुस्कुरा रही है बैठ के!! मैं देख रही हूं इस लड़की ने जैसे तुम सब पर जादू कर दिया है ।तुम्हें तो सच दिखाई नहीं दे रहा ।”
“जीजी क्या बात कर रही हो!! कितनी प्यारी तो है रेखा । कितनी अच्छी खीर बनाई थी उसने ,सच ऐसा लग रहा था अन्नपूर्णा मां के हाथ का स्वाद है उसके हाथों में।”
” हां हां छोटी तभी तो तुमने उसके हाथों में ₹11000 थमा दिया ।अरे भाई उसकी हैसियत तो देखती ।अरे पांच सौ बहुत थे”
“जीजी वह तो मैं दे ही नहीं सकती ।वह इस घर की बहू है और घर की बहू के हिसाब से ही उसकी हैसियत देखी जाएगी। मेरा तो मन था उसके लिए सुंदर सा हीरे का हार बनवा देती पर क्या करूं इतनी जल्दी बाजी में शादी हुई कुछ अच्छे से तैयारी नहीं कर पाई । पता नहीं सुबह तो रेखा इतनी खुश थी लेकिन मंदिर जाते समय उसका चेहरा जैसे उतर गया था, हो सकता मां-बाप की याद आ रही हो।”
” चेहरा क्यूं उतर गया था छोटी उसका मैं तुम्हें बताती हूं । वह जब चौके में गई थी ना खीर लेने तब मैंने उसे सौ रुपए शगुन के दिए थे। भाई मैं तो लड़की के हिसाब से शगुन दे आई थी ।यह बात अलग है कि स्वाति ने जब पहली बार खीर बनाई थी तब मैंने उसे सोने की चेन दी थी। स्वाति का खानदान देख लो और इसका देख लो। जैसे ही मैंने उसे सौ रुपए दिए उसने मेरे पैर तो छू लिए लेकिन उसका मुंह छोटा सा हो गया ।मैंने तो जानबूझकर उसको इतने कम पैसे दिए थे यह देखने के लिए कि यह पैसे की लालची है या नहीं ?
“जीजी तुम रेखा को नहीं जानती हम उसे बहुत अच्छे से जान चुके हैं तुम्हें पता है उसने एक बार नहीं कई बार जितेंद्र को मौत के मुंह से बाहर निकाला है जितेंद्र की डिप्रेशन की दवाइयां उसी की वजह से कम हुई है और जानू उसकी सेहत तो बनती ही नहीं थी पर जब से देखा उसकी जिंदगी में आई है जानू कैसा गोल मटोल प्यारा सा हो गया है”
“देख छोटी मुझे कोई रेखा से नफरत तो नहीं है लेकिन हां मैं उसकी परीक्षा जरूर लूंगी ।अगर वह परीक्षा में अव्वल आई तो जिंदगी भर उसे पलकों पर बैठा कर रखूंगी लेकिन मैं ऐसे किसी राह चलती लड़की को तुम लोग की जिंदगी बर्बाद करने नहीं दूंगी। अखबार में पढ़ती नहीं हो क्या किस तरह की यह छोटे घर की लड़कियां अमीर लड़कों को अपने प्रेम के जाल में फंसा के उनका सारा रुपया पैसा गहना जेवर लेकर चंपत हो जाती हैं। अभी तो उसका पहला इंतिहान है और इसमें लगभग वह पास हो ही गई है क्योंकि उसने पलट कर मुझे कभी भी जवाब नहीं दिया ।देखते हैं उसमें कितनी सहनशक्ति है ,उसमें कितना संतोष है और साथ ही उसमें आत्मसम्मान है या नहीं !!कहीं वह चुप्पा नाग ना निकले जो बिल्कुल चुप रहता है और समय आने पर डस देता है ।मेरी नजरों में उठने के लिए उसे अग्नि परीक्षा देनी पड़ेगी छोटी”
“क्या जी जी तुम भी छोटी सी बच्ची को क्यों परेशान कर रही हो! उसे अपनी जिंदगी में खुश रहने दो”
“अरे तो कोई मैं उसके पैरों में कांटे थोड़े ही चुभो रही हूं ।मैं तो सिर्फ यह देखना चाहती हूं कि जितेंद्र ने जिसे पसंद किया है वह खरा सोना है या पीतल!!
उधर रेखा जितेंद्र के साथ मंदिर से लौट के पग फेरे के लिए मम्मी पापा के घर जाती है ।जितेंद्र रास्ते से ना जाने क्या क्या खरीद लेता है। वह उन्हें बिल्कुल अपने परिवार की तरह ही मान देता था ।सामान से लदी हुई रेखा घर पहुंचती है लेकिन उसके मम्मी पापा को जितेंद्र का यूं सामान लेकर आना अच्छा नहीं लगता ।वह कहते हैं कि वे पुराने ख्यालात के हैं वह अपनी बेटी के ससुराल के पैसे के समान नहीं रख सकते ।जितेंद्र की नियत पर उन्हें शक नहीं लेकिन उनकी खुद की आत्मा उसकी गवाही नहीं देती। रेखा के पिता जानते हैं कि समाज में हर तरह के लोग होते हैं वे नहीं चाहते कि रेखा का एक मध्यम वर्ग से होना उसके लिए कलंक बन जाए । कहीं उसके ऊपर कभी यह बात ना आए कि वह अपने मायके पर ससुराल का सारा पैसा उड़ा रही है।
रेखा गुमसुम सी बैठी है ।जितेंद्र उसके पास आता है ।वह रेखा से पूछता है कि क्या वह उसे अपना नहीं समझती??और अगर समझती है तो क्या जितेंद्र के पैसों पर उसका हक नहीं । इस पर रेखा कुछ नहीं कहती। जितेंद्र रेखा से कहता है
“रेखा तुम्हारे अंदर जो हुनर है उस हुनर को कभी खत्म मत होने दो ।तुमने एमबीए में एडमिशन लिया था ।मैं चाहता हूं तुम अपनी पढ़ाई पूरी करो और अपने पैरों पर खड़ी हो । फिर तुम अपनी मेहनत की कमाई के पैसे से अपने मम्मी पापा को कुछ भी दोगी तो उन्हें बुरा नहीं लगेगा ।मैं चाहता हूं तुम जिंदगी पर अपने बलबूते आगे बढ़ो ,खुद अपनी पहचान बनाओ ।तुम्हारे चेहरे की खुशी मैं पल भर के लिए भी फीकी नहीं होने दूंगा। हम दोनों मिलकर जानू को पालेंगे वह सिर्फ तुम्हारी अकेले की जिम्मेदारी नहीं है।”
रेखा अचरज भरी निगाहों से जितेंद्र को देखने लगती है। उसने जिंदगी में कभी इस ओर सोचा ही नहीं था। आज उसकी आत्मा प्रफुल्लित हो जाती है। उसे ऐसा लगता है कि वह खुले आकाश में पंछियों की तरह उड़ रही है। क्या ऐसा भी हो सकता था ? क्या विवाह होने के बाद भी वह अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है ? जब वह अपने खुद के मेहनत के पैसे कमाए गी तो कोई भी उसे पैसे का लालची या मध्यवर्गीय होने का ताना नहीं देखा । मौसी जी का दिया हुआ सौ का नोट अभी तक उसकी मुट्ठी में है ।वह उस नोट को बहुत ध्यान से देखती है और मन ही मन सोचती है कि वह खुद अपनी एक पहचान बनाएगी ।अगर जीतेंद्र उसके साथ है तो फिर उसे किस बात का डर…
क्या रेखा अपने जीवन में प्रसिद्धि और प्यार दोनो पा लेगी या फिर उसे एक की चाह में दूसरे को छोड़ना पड़ेगा!!
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गरिमा जैन