रिक्शा – अनुपमा

नीमा और कुबेर रिक्शे के साझेदार थे , दोनो एक ही रास्ते से ऑफिस आते जाते थे , एक बार बारिश मैं मजबूरी मैं रिक्शा साझा किया था नीमा ने , और फिर एक दो बार सयोंग से हो गया , पर अब दोस्ती मैं साझेदारी करते थे दोनो ।

इतनी बार सयोंग से कोई मिल जाए तो मन भी सोचने पर मजबूर हो ही जाता है की आखिर ऐसा क्यों होता है । 

खैर बारिश और कुछ मुलाकातों के सयोंग ने कुबेर और नीमा के बीच दोस्ती करा दी थी , अब नीमा और कुबेर का रोज का सफर ऑफिस आते जाते समय साथ ही बीतता था। 

नीमा काम बोलने वाली लड़की , लंबे गूथे हुए बाल और सलीके से सूती साड़ी पहन कर रहने वाली छवि थी उसकी ।

और कुबेर एक घुंघराले बाल जो अक्सर हवा चलते ही उसके माथे पर आकर झूलने लगते और न चाहते हुए भी नीमा की नजरें उन पर चली जाती , कुबेर उसकी तरफ वापिस देखता तो नीमा झट से नजरें चुरा लेती ।

नीमा का पति रितेश जो किसी भी नौकरी मैं दो महीने से ज्यादा रुकता ही नही था ऊपर से पीने की लत्त अलग , नीमा के दो बेटे , उनका खर्च और घर का खर्च चलाने को उसका नौकरी करना मजबूरी था , तिस पर बाहर जाने और दूसरे लोगो से मिलने पर रितेश उसे पी कर भद्दी भद्दी गालियां देता और कभी कभी तो हाथ भी उठा देता ।

उधर कुबेर का भी परिवार था , बेटी को उसने दूसरी कक्षा से ही बोर्डिंग मैं डाल दिया था , नौकरी के अलावा पार्ट टाइम ट्यूशन या कुछ और भी काम करता था क्योंकि वो कितना भी कमा ले उसकी बीबी को कम ही पड़ता था , घर को संभालने से ज्यादा उसे अपने मायके मैं , दिखावा करने मैं , किट्टी पार्टियों मैं जाना और शॉपिंग करने मैं ज्यादा दिलचस्पी रहती थी ।

पढ़ी लिखी होने के बावजूद वो कुबेर का हाथ नही बटाती थी , बेटी को भी अपने शौक के कारण न ढंग से खाना देना न उसकी पढ़ाई पर ध्यान देना जिसकी वजह से कुबेर ने उसे मजबूरी मैं बोर्डिंग स्कूल भेज दिया था , निशा को वो कितना भी समझा ले उसको कोई फर्क नही पड़ता था , अब तो उसने कहना भी छोड़ दिया था और शादी के बारह साल हो गए थे ,दूसरा बच्चा भी नही किया था ।



दोनो ही अपनी जिंदगी मैं जूझ रहे थे , आधा घंटा जो वो रिक्शे मैं साथ बिताते थे उसमे ही हस बोल लेते थे जाने अंजाने कुछ देर के लिए ही सही पर दोनो ही खुश रहते और धीरे धीरे ये दोस्ती का चाहत मैं बदल गई  दोनो को ही पता नही चला । नीमा जब रात मैं अकेली होती तो कुबेर के साथ बिताए पलों के बारे मैं ही सोचती ,और खुद से सवाल करती की उसे खुश रहने का अधिकार नहीं है क्या , क्या वो कभी कुबेर के साथ रह पाएगी अपना जीवन उसके साथ बिता पाएगी ? 

उधर कुबेर भी इसी परिस्थिति से घिरा रहता , घर ऑफिस और ट्यूशन से खटपट के बाद जो पल वो नीमा के साथ बीतता उन्हे ही अपना जीवन मानता । कुबेर के बदले हुए व्यवहार को महसूस कर निशा ने तो उसे सुना भी दिया था , बाहर गुलछर्रे उड़ा कर घर आते हो । तुम क्या सोचते हो मुझसे तलाक ले लोगे , ऐसा सोचने की भूल भी मत करना क्योंकि मैं तुम्हे तलाक देकर तुम्हे सुकून से जीने दू और खुद इधर उधर ठोकरें खाउ,ऐसा कभी होने नही दूंगी मैं ।

इधर नीमा के पति जो उसे मारता था और उसपर जो इल्जाम लगाता था , उसके दोनो बेटे भी कहीं न कहीं उसे सच ही समझते थे और अपनी मां को ही दोषी मानते थे , रितेश दिनभर घर मैं रहकर बच्चों को जाने क्या पट्टी पढ़ाता था ।

नीमा और कुबेर ने आगे के बारे मैं कभी सोचा भी नही था , अब जो हुआ था उन दोनो के बीच वो भी तो सोच कर नही हुआ था , बस जिंदगी दो दुखी लोगो को अनजाने मैं ही करीब ले आई थी , वो महसूस कर रही थी की कुबेर कुछ दिनों से उससे कुछ कहना चाहता था पर शायद वो खुद भी जानता था की बहुत मुश्किल होगा उसके लिए भी कुछ भी करना ।

एक दिन मौका देखकर नीमा ने ही कुबेर से कहा की उसे नही पता की उसकी नौकरी कब तक है और नही , वो उससे कोई भी उम्मीद न रखे क्योंकि उसमे इतनी हिम्मत नही है की वो घर का , समाज का और अपने बच्चो का सामना कर सके , और अगर तलाक के बारे मैं भी सोचे तो हम उतने समृद्ध नही की इन सबका खर्च उठा सके , वो उसके साथ ही है पर सिर्फ मानसिक तौर पर और दोस्त के रूप मैं हमेशा , अगर जिंदगी ने कभी हमारे रास्ते अलग कर दिए तो हम उसे अपनी तकदीर मान कर अपना लेंगे ।

कुबेर अब बहुत गुमसुम सा रहने लगा था , उसका किसी भी काम मैं मन नहीं लगता था , जब कोई चाह मिल जाती है जीने की तो उम्मीद बढ़ने के साथ साथ आपको कमजोर भी कर जाती है जब आप जानते हो की वो आपकी कभी हो नही सकती । इसी उधेड़बुन मैं कुबेर एक रात फांसी पर झूल जाता है ।

नीमा रोज उसकी राह देखती है ,कई दिनों से उससे मुलाकात ही नही हुई , कोई खबर भी नहीं मिली उसे उसकी , आज पांच दिन हो गए ,नीमा आज रिक्शे वाले से उसके ऑफिस तक जाने को कहती है , नीमा जब उसके ऑफिस मैं पूछती है तो उसे कुबेर की मौत की खबर पता चलती है । 

नीमा टूट जाती है , एक आस थी अब वो भी नही रही , उसे भी जिंदगी बेमानी सी लगने लगती है ,अंदर ही अंदर वो घुट रही होती है और इसी कशमकश मैं वो भी कुबेर का ही रास्ता अपनाने की कोशिश करती है , पर बार बार उसके सामने उसके बच्चों का चेहरा घूमने लगता है और वो असफल रहती है और फूट फूट कर रोने लगती है । जिंदगी सबको खुश रहने का मौका नहीं देती है ।

 

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