रिक्त स्थान (भाग 1) – गरिमा जैन

अपनी गरीबी की रेखा को तोड़ने का रेखा के पास से एक स्वर्णिम अवसर था । आज दोपहर ही तो उसकी प्रिय सहेली रूपा उससे उसके लिए ब्यूटी पेजेंट बनने का फॉर्म लेकर आई थी। बहुत बड़ा आयोजन था और जीतने वाली लड़की को पांच लाख नकद साथ ही नामी-गिरामी कंपनी में ब्रांड एंबेसडर बनने का मौका मिलता। यह आयोजन शहर के नामी गिरामी कंपनी फेयर एंड लविंग की तरफ से प्रायोजित था। शहर भर की एक से एक सुंदर लड़कियां इसमें भाग ले रही थी। रेखा ने कई बार अपनी सहेली को मना किया कि फॉर्म के पैसे ही बर्बाद हो जाएंगे पर उसने फॉर्म भर कर जमा भी कर दिया।

रेखा की रात की नींद उड़ गई ।पापा को मालूम पड़ेगा तो क्या कहेंगे। मना ना कर दें पर उन्हें बताने की जरूरत ही क्या थी। वह सिर्फ मां को बताएगी ।वैसे भी धूप से झुलसी उसकी त्वचा और रूखे बाल उसे विजेता तो नहीं बना पाएंगे। सिर्फ कद काठी और मधुर मुस्कान उसका कहां तक साथ देगी !फिर वह उस विजेता राशि के बारे में सोचने लगी उतने में तो आराम से वह एमबीए कर सकती हैं और घर के हालात भी सुधर जाएंगे । फिर वह दिवास्वप्न से बाहर आ गई ।तभी दरवाजे पर घंटी बजी ।रूपा थी ।ना जाने अपने पर्स में क्या-क्या भर लाई थी। क्रीम कंडीशनर फेस मास्क, लोशन और साथ ही अपनी भाभी का सुंदर सा लहंगा भी लाई थी ।ब्यूटी पेजेंट में एक राउंड ब्राइडल लुक का भी था। रूपा को पूरी उम्मीद थी कि रेखा उसमें सबका दिल जीत लेगी और हाजिर जवाबी में तो उसका कोई जवाब ही नहीं ।




ब्यूटी पेजेंट की प्रतियोगिता का दिन आ गया पर रेखा बिल्कुल भी घबराई नहीं क्योंकि उसे अपनी जीत की कोई उम्मीद ही नहीं थी ।ब्राइडल लुक के राउंड में सच में वह  किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी । उसी राउंड  में प्रश्न उत्तर भी होने थे। रेखा से ज्यूरी ने पूछा की

“मां बनना एक स्त्री के जीवन में क्या बदलाव लाता है”

रेखा उत्तर देने ही जा रही थी कि एक विचित्र घटना हुई। ना जाने कहां से स्टेज के पास एक छोटा सा बच्चा आ गया और अपनी तोतली बोली में “मम्मा “”मम्मा “बोलने लगा फिर वह रेखा की गोद में चढ़ गया ।रेखा ने जैसे इस बच्चे को गोद में लिया वह बच्चा उसके गालों का चुंबन लेने लगा और कस के उससे लिपट गया। रेखा रोमांचित हो गई और वह कुछ बोल ही नहीं पाई। उसकी आंखों से आंसू छलक गए। सब तरफ तालियों की गड़गड़ाहट गूंज गई। कुछ ना कहकर भी उसने अपने भाव व्यक्त कर दिए थे। तभी उस बच्चे की आया आई और उसे बहला कर ले जाने लगी पर वह रेखा से जुदा होना ही नहीं चाहता था। रेखा उसे गोद में उठाए चेंजिंग रूम में चली गई ।बच्चा बहुत खुश था बार-बार रेखा को देखता फिर जोर से लिपट जाता ।थोड़ी देर में बच्चा सो गया और उसकी आया उसे ले गई पर उसकी मीठी यादें देखा को गुदगुदाती रही ।




एक सप्ताह बीत गया ।उस दिन ब्यूटी पेजेंट का नतीजा आना था ।शाम को रेखा घर पहुंची तो घर में उत्सव जैसा माहौल था ।सारी बत्तियां जल रही थी ।हलवा बनने की खुशबू आ रही थी ।पापा भैया भी किचन में पकौड़े बना रहे थे ।ऐसा खुशनुमा माहौल बहुत दिनों बाद था। तभी अचानक उसे रूपा दिखाई थी वह इतनी प्रसन्न नहीं थी ।उसने रेखा का हाथ पकड़ा और उसे कमरे में ले गई।रेखा  घबरा गई। रूपा ने गुस्से में तमतमाते हुए कहा

“देख रेखा बुरा मत मानना तेरा परिवार मुझे समझ में नहीं आता । देख रही है तेरी बर्बादी पर सब कितने खुश हैं ।रेखा कुछ समझी नहीं फिर रूपा  बोली ब्यूटी पेजेंट का परिणाम आ गया तेरा नाम कहीं नहीं है  ।कहकर  व रोने लगी ।रेखा को हंसी आ गई बस इतनी सी बात ।वह  तो पहले ही जानती थी कि यही होने वाला है। वह रूपा को हंसाने की कोशिश करने लगी पर सब व्यर्थ जाता है ।तू जानती है रेखा तेरे परिवार वाले तेरा रिश्ता एक बूढ़े अमीर विधुर से तय कर रहे हैं। यह सुनते ही रेखा सुन्न हो गई। उसके अपने माता-पिता भाई उसके साथ ऐसा क्यों करेंगे भला। फिर उसे अचानक बाहर हंसी-खुशी का माहौल याद आता है। रेखा तुझे लेने अभी एक अमीर आदमी की गाड़ी आएगी बुड्ढा तुझसे मिलना चाहता है ।पता है वह कौन है?, कौन ?रेखा ने पूछा । वह जैसे चेतना शून्य होती जा रही थी ।वही फेयर एंड लविंग कंपनी का मालिक है ।तुझे उस ब्यूटी पीजेंट में देखा था उसने और ठरकी दीवाना हो गया तेरा।




” मैं क्या करूं रूपा “करेगी क्या तू अकेली जा और दो चपट लगाकर आ। एक मेरी तरफ से भी लगा देना। तभी नाश्ता चाय लिए मां आती हैं ।यह लो बेटा जल्दी से खा लो तुझे रूपा ने सब कुछ बता ही दिया होगा ,जल्दी से तैयार हो जाओ कार आती होगी ।लो यह चॉकलेट भी लेती जानी बेचारा खुश हो जाएगा। मां के कहे शब्द कानों में तीर से चुभने लगे। रेखा जल्दी से वहां से हट गई नहीं तो अनिष्ट हो जाता ।ना जाने वह मां को क्या क्या कह देती फिर उसने हिम्मत बटोरी और कांपती हुई आवाज में कहा मां मैं रूपा को भी अपने साथ ले जाऊं! हां हां बेटा जरूर ले जा मुझे क्या आपत्ति होगी। बड़े भले मानुष है जितेंद्र जी ।जा जल्दी से तैयार हो जा। नहीं मां मैंने जो पहना है वही पहन कर जाऊंगी ।तो हां ठीक है यह कपड़े भी तो अच्छे हैं, ऐसा कर चेहरा तो धो लें ,कैसा फीका पड़ गया है ।रेखा मन ही मन सोचने लगी क्या मां-बाप पैसे के लिए बेटी को बेच भी सकते हैं? तभी रेखा का भाई अंदर आया और रही सही कसर उसने पूरी कर दी। दीदी मैं भी चलूं मैंने कभी बड़ी कोठी अंदर से नहीं देखी ।नहीं अमित इस बार रहने दे। मां बोली। अब तो घर की बात है आना जाना लगा ही रहेगा। रेखा जल्दी से चेहरा धोने के बहाने चली गई। सच यही मेरी मां है कहीं  मुझे उठा कर तो नहीं लाई थी ।तभी बाहर गाड़ी का हॉर्न बजता है। रेखा की मां कहती है कि उसे जल्दी करना चाहिए ।

रेखा तमतमाई हुई रूपा के साथ जाकर गाड़ी में बैठ गई। आखिर अमीर लोग खुद को समझते क्या है और रेखा का परिवार जैसे उसे कितना बेगाना लग रहा था ।मां की कही  बात नुकीली कील सी चुभने लगी थी और उसके मन को छलनी करती जाती थी।थोड़ी देर में वे शहर की भीड़भाड़ से दूर हरियाली से भरी एक जगह आ गए थे । वहां महल की तरह आलीशान कोठी खड़ी थी ।उसी के अंदर वह गाड़ी जाती है और ड्राइवर उतर कर रेखा के लिए दरवाजा खोलता है….

ये पहला भाग था अगर अच्छा लगा हो तो टिप्पणी अवश्य दे और मेरी लिखी कहानी पढ़ने के लिए धन्यवाद।

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रिक्त स्थान (भाग – 2) – गरिमा जैन

गरिमा जैन

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