रिटायरमेंट – कंचन श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

गंभीर बीमारी की वजह से श्याम बाबू दो महीने से नौकरी पर नही जा रहे जिसकी वजह से घर खर्च चलाना मुश्किल हो रहा पर कोई कुछ बोल नही रहा जैसे तैसे रेखा अपने अकेले दम पर गाड़ी खींच रही। अब इसे खीचना नही तो और क्या कहेंगे बीमारी की वजह से रखी रकम भी चली गई साथ ही कुछ कर्ज भी हो गया

इसलिए जैसे ही थोड़ी  तबियत सुधरी उसने दबी ज़ुबान से फिर से ज्वाइंन करने को कहा, तो उन्होंने हां कह कर बात को टाल दिया। अब बहुत ज्यादा कह भी नही सकती कि कही कुछ ऊंच नीचे हो जाये तो सारा इल्ज़ाम उसके सर आ जायेगा ।

इसलिए दबे स्वर में  दो तीन बार डरते डरते कहा कि ज्वाइन कब करेंगे अब कहे ना तो क्या करे कहना भी तो उसकी मजबूरी है। गृहस्थी का बोझ ऊपर से बड़े बड़े  बेरोज़गार बच्चे कुछ समझ नही आ रहा कि क्या करे? और सही उत्तर ना पाकर  परेशान हो रही।

उसे अच्छे से याद है कि जब वो ब्याह कर आई थी तो सब ठीक था पर छह महीने बाद जैसे ही पति की नौकरी गई लोगों का रवैया कैसे  बदल गया था फिर आज तक नही सुधरा कारण सिर्फ़ इतना था कि छह आठ महीने ये काम करते और बाकी खाली इस डर से की कही कुछ मांग ना बैठे लोग बात करने से कतराने लगे

अजीब है ना दुनिया वो भी ससुराल की पति धनी हो तो सभी सम्मान देते है और ना हो तो तो वो भी बोलते है जिनकी अपनी खुद की कोई अवकात नही होती तभी तो जब वो आई थी तो लोग उसे पलकों पर बिठा कर रखते थे पर जैसे ही पता चला इनकी नौकरी चली गई है तो वही लोगों का रुख बदल गया बात बात पर ताने देने लगे।दिन दिन भर घर के कामों में व्यस्त रखने लगे और न जाने क्या क्या उसने देखा पर खामोश रही क्योंकि उसकी स्थिति अच्छी नही थी।

इस तरह शादी के पचीस बरस कैसे बीत  गए पता ना चला हां वो बात अलग है कि इन पच्चीस सालों में पूरे एक साल कभी  नौकरी नही किया ।

तभी तो उसने खुद निकल कर कमाने का फैसला किया लेती भी क्यों ना भाई खर्च जो बढ़ रहा था फिर भला कौन देता कुछ जरूरते तो ऐसी  हैं जिसे टाला नही जा सकता।बस यही सोच कर उसने एक नौकरी पकड़ ली कि कम से कम मूल जरूरते तो पूरी होती रहेगी बाकी तो देखा जायेगा।पर जब अतिरिक्त खर्चे आते जैसे त्योहार या बीमारी तो उसे कहीं ना कहीं से मैनेज करना पड़ता।

फिर उसे धीरे धीरे भरती।वो ऐसे कि दोनों मिल कर कमाते और  गृहस्थी भी इस्मूथ चलती पर  जैसे ही श्याम बाबू की नौकरी जाती तंगी शुरू हो जाती।

पर इस बार तो वो खुद ही जाने का नाम नही ले रहे जब कि पूरी तौर से स्वस्थ हो गए है अब उनके मन में क्या चल रहा ये तो वही जाने पर ना जान पाने के कारण वो मन ही मन खींझ भी  रही है मगर  कुछ बोल नही रही ।

फिर भी उसने चाय की प्याली पकड़ाते हुए आज फिर चौथी बार हिम्मत करके पूछा कि आखिर  कब  ज्वाइंन करेंगे।

तो उन्होंने चिड़चिडाते हुए कहा अब  मेरी उम्र रिटायरमेंट की हो गई है।अब तुम लोग देखो।

ये सुन रेखा सन्न रह गई।मानों काटो तो खून नही कि ये क्या कह दिया इन्होंने अभी तो जिम्मेदारियां सारी पड़ी हैं और जेब में एके पैसा है ना बैक बैलेंस फिर ये रिटायरमेंट कैसा?

सोचती हुई रसोई में आकर फफक पड़ी

स्वरचित लघु कथा

कंचन श्रीवास्तव आरज़ू प्रयागराज

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