प्रिया सुबह से ही कुछ हल्का-हल्का और खुशनुमा महसूस कर रही है क्योंकि कल संडे है दो दिन पहले से ही उंगलियों पर गिन रही थी कि शुक्रवार, शनिवार फिर आ जाएगा इतवार ।
बचपन में या फिर स्कूल कॉलेज के समय में भी उसको रविवार के आने से ज्यादा खुशी नहीं होती थी। उसे हमेशा ही स्कूल जाना, सहेलियों से मिलना बहुत अच्छा लगता था। उसने कभी भी रविवार का इतना इंतजार नहीं किया था।
शादी के बाद पति की कपड़े की छोटी सी दुकान जो कि अब बड़ा क्लॉथ हाउस बन चुकी है वह बाजार के हिसाब से बुधवार को बंद रहती है तो पिछले पच्चीस वर्षों से उसके लिए छुट्टी का दिन यानी कि रविवार तो बुधवार को होता है इसलिए रविवार का इंतजार उसने कम ही किया है। बेटा स्कूल में था तो कभी कभी रविवार का इंतजार रहता था उसको।
अचानक पति का फोन पर मैसेज आ गया तो देखते ही सोच में पड़ गई क्योंकि लिखा था- ‘शाम को खाना खाने बाहर चलेंगे तुम तैयार रहना।’
प्रिया सोच में पड़ गई कि आज ना तो कोई खास दिन है और ना ही कल छुट्टी है तो फिर डिनर पर जाने का प्रोग्राम क्यों बना रहे हैं ,वापस आने में देर हो जाएगी और सुबह फिर इनको काम पर जाना होगा, यही सब सोचते हुए उसने हस्बैंड को फोन लगा दिया उधर से फोन उठाते ही समीर कुछ बोलते उससे पहले ही प्रिया बोल पड़ी, “डिनर का प्रोग्राम क्यों बनाया आपने? कल छुट्टी तो है नहीं।”
समीर बोला, “मेरी छुट्टी नहीं है तो क्या हुआ; तुम्हारे बेटे का तो पहला रविवार है। तुमको क्या लगता है मैं नहीं जानता तुम कितनी बेसब्री से इस रविवार का इंतजार कर रही हो ताकि तुम्हारा बेटा अपनी नई-नई नौकरी के पहले हफ्ते के पहले रविवार पर आराम कर सके तो एक छोटा सा डिनर बाहर रखकर हम दूर रहकर भीअपने बेटे की खुशियों में शामिल न हो सकते है।
“
प्रिया मुस्करा पड़ी और बोली, “हट्ट……..”
प्रिया ने फोन रख दिया और मन ही मन मुस्कुराने लगी समीर कितना ऑब्जर्व करते हैं मुझे। यह तो सच ही है कि मैं पूरे हफ्ते से इंतजार कर रही थी कि रविवार आए तो बेटे को थोड़ा आराम करने का टाइम मिले और वह अच्छे से फोन पर उससे बात कर सके क्योंकि वो उन दोनों से दूर रहता है। यह हफ्ता उसकी नौकरी का पहला हफ्ता था। वह दस घंटे दिन में बिजी रहता है इसलिए उससे ज्यादा बात भी नहीं कर पाई थी। रविवार को अच्छे से बात करेगी, पूछेगी खाना-पीना कैसा मिलता है? ऑफिस का माहौल और लोग कैसे है? लेकिन मन ही मन खुद पर नाज भी कर रही है इतना अच्छा पति मिला है सब कुछ भांप लेता है और जीवन में खुश रहने के और उसे खुश रखने के बहाने तलाश ही कर लेता है; यही जीवन की मुस्कान है शायद।
मौलिक/स्वरचित
शालिनी दीक्षित