रत्तीभर हक – संध्या त्रिपाठी  : Moral Stories in Hindi

अरे , ये सब क्या फैला के रखी हो सुमन ….?  जाने की तैयारी करनी थी …. कपड़े वगैरह रखती… तो तुम ये सब फालतू में …..तबीयत ठीक नहीं रहती  , क्यों बना रही हो बेकार में….. आजकल कौन खाता है ये सब…. सूर्य दत्त जी ने पत्नी सुमन से कहा….।

        आप चुप रहिए जी…. इतने दिनों के बाद बेटे बहू के घर जा रहे हैं…. उसे बचपन से मालपुआ कितना पसंद था और मेरे हाथों से बनी बेसन के लड्डू….. लड्डू तो मैंने कल ही बना कर रख लिए थे ….मालपुआ अभी बना रही हूं …..रात में ट्रेन में बैठेंगे सुबह बच्चों के पास होंगे…. ठंड का दिन है , रात भर में थोड़ी ना खराब हो जाएगा मालपुआ….. सुमन ने सूर्य दत्त जी से हामी भरवानी चाही…।

       हां भाई , वैसे तो खराब नहीं होगा और यदि खराब हो भी जाता.. तो भी तुम बनाने से थोड़ी मानती …भले ही वहां जाकर फेंक देती…. आखिर अपने लाडले बहू , बेटे के पास जा रही हो ।

        तुम एक काम क्यों नहीं करती सुमन….वहीं जाकर तुम बना देना… अरे नहीं जी…. दूसरे के रसोई में मुझसे चीज अच्छी नहीं बनती है और फिर वहां ना तो नूपुर (बहू) और ना ही आशु (बेटा) मुझे ये सब बनाने देंगे ।

       बेटे के पसंद-नापसंद का इतना ख्याल है और पता भी है बहू को क्या पसंद है…? सूर्य दत्त जी ने तंज कसा…

   हा – हा – हा व्यंगात्मक हंसी हंसते हुए सुमन ने कहा ..नहीं मैं तो खडूस सास हूँ ना ….बहू के पसंद को क्यों महत्व दूंगी ….बड़े आए…. उधर देखिए , अलमारी की ओर इंगित करती हुई बोली…. चूड़ा मुरमुरा मूंगफली मिलाकर मिक्सर बना दिया है… नूपुर डाइट का विशेष ध्यान देती है ना …वो तेल , मीठा वगैरह कम पसंद करती है… इसलिए..।

    देखो तो बच्चों के पास तुम्हें जाना है तो कैसे एक्टिव हो गई हो वरना रोज बीमार ही रहती हो ….हल्के फुल्के हंसी मजाक के बीच बच्चों से मिलने की उत्सुकता और भी बढ़ रही थी…।

       मम्मी , बैठ गये ट्रेन में ….?

आशु के फोन ने सुमन को और खुश कर दिया…. हां बेटा बैठ गए ….ले पापा से बात कर …..सुमन ने फोन सूर्यदत्त जी की और बढ़ा दिए …चलिए पापा फाइनली आप लोग आ ही रहे हैं ….इतने दिनों से बोलते बोलते अब आपका प्रोग्राम बना है…. आराम से चादर बिछाकर सो जाइयेगा….सुबह मिलते हैं …मैं स्टेशन लेने आऊंगा…।

        कोई परेशानी तो नहीं हुई ..आशू ने सूर्यदत्त जी के पैर छूते हुए पूछा ….नहीं क्या परेशानी होगी…? मस्त नींद आ गई थी रात में… नूपुर दुपट्टे से सर ढकती हुई पैर छुंई …. आज पहली बार सुमन ने नूपुर को सलवार कुर्ते में देखा था …जब से शादी हुई थी सिर्फ साड़ी में ही देखा था ….अच्छी लग रही हो नूपुर …..सुमन के मुख से अनायास ही निकल गए….!

     घर पहुंचते ही नूपुर ने कहा …मम्मी पापा आप लोग फ्रेश हो जाइए…. तब तक मैं नाश्ता का इंतजाम करती हूं ….।

      अरे नहीं बहू , नाश्ता नहीं.. आज सब मालपुआ खाएंगे ….थैली में से डिब्बा निकलते हुए सुमन ने कहा ….हम लोगों ने भी चखा तक नहीं है कि कैसा बना है ….सोचा आशु के साथ सब मिलकर खाएंगे , उसे बहुत पसंद है ना…. जी म..म्मी …जी थोड़ी असहज सी होती हुई नूपुर ने कहा…।

    तैयार होकर सब डाइनिंग टेबल पर नाश्ता के लिए बैठे ….मम्मी इतना मेहनत क्यों की…. मालपुआ उठाते हुए आशु ने कहा… सुमन ने भी तपाक से जवाब दिया …ताकि मेरा बेटा खा सके….!

       वाह क्या स्वाद है …माँ तू कहां बुढी हुई है… तेरे हाथों में तो अभी भी वही पहले वाला जादू है ….आशु ने दूसरा मालपुआ उठाते हुए कहा ….अरे बस भी करिए थोड़ा स्वास्थ्य का भी ध्यान रखिए , इस बार नूपुर ने बीच में ही टोक दिया अरे खाने दे बेटा एक दिन खाने से कुछ नहीं होगा… ले बेटा एक और ले ले …सुमन ने आशु के प्लेट में तीसरा मालपुआ डाल दिया…।

    आशु तैयार हो दफ्तर जाने के लिए निकल गया सूर्यदत्त जी और सुमन नाश्ता कर आराम करने लगे… पर सुमन को तो जैसे आराम की जरूरत ही नहीं थी ….क्या बना रही है बहू..? आज सादा दाल चावल बना लेना… ठीक है मम्मी जी ….और बीच-बीच में सुमन सहायता करने की कोशिश भी करती… पर नूपुर हो जाएगा मम्मी जी , कहकर उन्हें काम करने से मना कर देती…।

        सुमन सोचती , हम लोगों के आने से बहू का काम बढ़ गया होगा… इसीलिए थोड़ी मदद कर दूं…. ये दोनों तो आपस में कुछ भी खाते होंगे कैसे भी रहते होंगे ….पर नूपुर को लगता इतने दिनों के बाद मम्मी जी आई हैं वहां तो रोज खाना बनाती  ही थी , यहां थोड़ा आराम कर लें… खैर….

  बहु आशू कितने बजे आता है लंच के लिए …? बस आते होंगे मम्मी जी… कहकर नूपुर डाइनिंग टेबल पर पानी वगैरह रखने लगी , खाने की तैयारी करने लगी ….लो मैं भी आ गया …कहते हुए आशु अंदर आया.. सब खाने के लिए डाइनिंग टेबल पर बैठे ही थे कि नूपुर ने इशारों में आशु से कुछ पूछा ….आशु ने हां में सिर हिलाया फिर नूपुर फ्रिज से एक बाॅल निकालकर माइक्रोवेव में डाला और थोड़ी देर में लाकर डाइनिंग टेबल पर रख दी…।

   इसमें क्या है बहू…?  सुमन ने पूछा पुलाव है मम्मीजी…. कल बच गया था मैं और आशु खा लेंगे…. क्या…?? आशु बासी पुलाव खाएगा..? मैं तो कहती हूं तू भी मत खा…. और आशु को तो बिल्कुल मत देना…आशु कुर्सी पर बैठे-बैठे समझ नहीं पा रहा था क्या बोले , अरे मम्मी …वो मैंने ही रखवाया था बहुत टेस्टी बना था , मैंने ही तो बनाया था ….तू….?  तू कबसे खाना बनाने लगा भला…?

    अरे भाग्यवान तुम्हें जो खाना है आराम से खाओ ना …क्यों बच्चों के बीच में ये मत खाओ , वो मत खाओ बोले जा रही हो ….इस बार सूर्यदत्त जी ने भी सुमन के अति उत्साहित हो दखलअंदाजी पर विराम लगाना चाहा…।

     गपशप के बीच खाने का मजा ही कुछ और था   नूपुर ने भी महसूस किया कि हम दो ही डाइनिंग टेबल पर बैठते हैं तो कभी-कभी बातें करने का कोई विषय ही नहीं होता …पर सास ससुर के आने से दखलअंदाजी तो होता है पर रौनक भी बढी है ….खाने के आधे घंटे बाद आशु को ऑफिस जाना होता था फिर शाम को 6:00 बजे घर लौटता था…।

       आशु के घर लौटते ही चाय के साथ नूपुर ने पूछा …मुरमुरे लांऊ क्या..?  आशु ने सिर हिला कर नहीं में संकेत किया ….इसी बीच सुमन ने बड़े प्यार से नूपुर को समझाया …बहू… पूछते थोड़ी ना है , लाकर रख दे और बार-बार प्लेट बढ़ाएगी न आशु की तरफ तो एक दो बार उठाकर खा ही लेगा ….अब इस बार तो नूपुर को गुस्सा भी आ रहा था

कि सासूमाँ का कुछ ज्यादा नहीं हो रहा है ….पर कुछ ही दिनों की बात है …और फिर बीच-बीच में आशु ही मम्मी को… अरे छोड़िए ना मम्मी ….आप भी ना… कुछ ज्यादा नहीं कर रही है ….जैसी बातें कह कर  चुप करा देते थे…।

और नूपुर ये भी जानती है… आशु अकेला संतान , मम्मी जी का लाडला.. तो विशेष देखरेख में शुरू से रहा है शायद मम्मी जी अभी भी वही कर रही है… फिर कुछ ही दिनों की तो बात है कोई हमेशा थोड़ी ना साथ में रहना है जो स्पष्ट रूप से कुछ ऐसा बोल दूं जो उन्हें बुरा लग जाए…।

     धीरे-धीरे दिन बीतते जा रहे थे …एक दिन सुबह-सुबह सुमन जल्दी उठकर गैस पर कुकर चढ़ा दी… कुकर के सिटी की आवाज सुनकर नूपुर हड़बड़ा कर उठी रसोई में जाकर देखा सासूमाँ लहसुन छिल रही थी …अरे मम्मी जी आप इतनी सुबह रसोई में क्या कर रही हैं…?

      आज नाश्ता में आलू का पराठा बनाऊंगी… आशु को बहुत पसंद है.. फिर जाने का समय भी पास आ गया है  ,मेरे हाथों का आलू का पराठा उसे कहां मिलेगा ….ओह मम्मीजी आप भी ना….. आज नूपुर थोड़े रुखे स्वर में बोली और वैसे भी आशु आज अंकुरित चना मूंग खाने वाले हैं सुबह इतना हैवी नाश्ता ये करते ही नहीं है…!

         अच्छा , तू मुझसे ज्यादा जानती है आशु को…. पहले तीन तीन पराठा खा जाता था …..ओह मम्मी जी ……आप …..और बिना कुछ बोले नूपुर कमरे में चली गई …आज थोड़ा नूपुर का मूड खराब हो रहा था ….मम्मी जी कुछ ज्यादा ही आशु आशु कर रही हैं…।

          उसने चादर ओढ़ एक बार फिर सोने का प्रयास किया ….अरे नुपुर उठना नहीं है क्या ….? आशु ने पुकारा …..नहीं कह कर नूपुर चादर सर तक तान लिया ….आशु को समझते देर ना लगी आज मम्मी ने जरूर कुछ कहा होगा ….खैर दोनों पक्षों को समझा बूझाकर मामला शांत हुआ …..।

    आलू के दो पराठे खाने के बाद आशु ने कहा …बहुत अच्छे बने थे मम्मी…. सुमन एकदम खुश होती हुई बोली , देखा बहू मैंने कहा था ना …आशु को मेरे हाथ का बना पराठा भी बहुत पसंद है ….झूठी मुस्कान के साथ नूपुर सोच रही थी अब तो आपके जाने के बाद ही पूरी डाइटिंग का रूटीन सेट हो पाएगा मम्मी जी…।

     वो घड़ी भी पास आ ही गई …जब सुमन और सूर्यदत्त जी को वापस जाना था…. रात की ट्रेन थी , नूपुर जल्दी-जल्दी खाना बना रही थी… एक ओर वो रोटी बेेलती दूसरी ओर आशु गैस पर रोटी सेंकता ….वाह आशु अब तुम भी खाना मस्त बना लेते हो …….नूपुर ने जैसे ही आशु के पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा , अचानक पीछे से सुमन आ गईं…

उसे आशु का खाना बनाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था….. शायद उनके जमाने में लड़के सिर्फ बाहर का ही काम करते , रसोई औरतें ही संभालती थी …..पर इस बार उन्होंने खुद को चुप ही रखा था शायद जाना था इसीलिए ….वरना दो बात बिना बोले कहां चुप रहने वाली थी सुमन…।

    आज जाने से पहले सबके सामने सुमन ने बहू से कहा …..बहू यहां रहकर हो सकता है मैंने कई बार तुम्हारा दिल दुखाया हो ….पर मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था ….बेटा वो क्या है ना ……मै माँ हूं  ना तो इतने दिनों के बाद बच्चों के लिए कुछ करने का मौका मिलता है तो लगता है उसकी पसंद का क्या-क्या कर दूं …फिर सामने फायदा नुकसान नहीं दिखता …..

लगता है  एक बार खा लेगा तो इतना नुकसान थोड़े ना हो जाएगा…. बस और कोई बात नहीं थी और मैं जानती हूं तू उसका बहुत ख्याल रखती है बहू…।

    बस एक काम करना बेटा…. मुझे कभी भी आशु की चिंता करने , फिक्र करने , ध्यान रखने से मत रोकना… एक माँ के मातृत्व का …    ” रत्ती भर हक ” …जरूर देना ….पीढ़ी बदल जाती है बेटा ….माँ शरीर से बुढी जरूर हो जाती है …पर ममता कभी बुढी नहीं होती ….तो ये हक मै मरते दम तक चाहूंगी …..कहते कहते सुमन के आंखों में आंसू थे…।

     अरे मम्मी जी… आप ऐसा क्यों बोल रही हैं ….?

निसंदेह मुझे कभी-कभी कुछ बातों से खीज हो जाती थी… पर इसका मतलब ये थोड़ी ना है कि …… कहते-कहते नूपुर भी भावुक हो गई…. आपकी आंखों में आशु के लिए प्यार देखा है मैंने मम्मी जी …..आप हमारी माँ है ……

 फिर एक  माँ को माँ का हक देने वाली मैं कौन होती हूं …? बस पापा जी के रिटायरमेंट का इंतजार है फिर आइए यही रहिए और मातृत्व के हक को बखूबी निभाईये ….!

साथियों …ये सच है समय , परिस्थिति के अनुसार चीजें बदल जाती हैं ..कुछ सामंजस्य अभिभावकों की ओर से भी होनी चाहिए और कुछ बच्चों की तरफ से भी…  आज के बच्चे बहुत समझदार हैं और अपनी गृहस्थी सुचारू रूप से चलाते हैं ..अत: हमें भी उतनी ही दखलअंदाजी करनी चाहिए जितना उनके जिंदगी को प्रभावित ना कर सके…।

( स्वरचित ,सर्वाधिकार सुरक्षित, अप्रकाशित रचना )

साप्ताहिक विषय : # हक

संध्या त्रिपाठी

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