बात है 1989 की तब मेरी उम्र 9 वर्ष की थी उन दिनों गांव में हमारी दादी जी की तबीयत अचानक खराब हो गई थी गांव के कई हकीम वेद्यों को दिखलाया कोई आराम नहीं आया मोहल्ले के एक हकीम ने हमारे दादा जी को बताया तुम एक गाय पाल लो उसका दूध प्रतिदिन सवेरे निकाल कर महीने दो महीने पिलाओ वरना तुम्हारी बुढ़िया बचेगी नहीं,
दादाजी सोच में पड़ गए ,,,
आखिर गाय कैसे खरीदूं घर में तो एक भी फूटी कोड़ी नहीं है दादाजी ने समय न गंवाते हुए घर का कीमती सामान बेचकर बाजार से एक गाय खरीद लाए वह नीचे से सफेद ऊपर से पूरी काली थी वह हमेशा आंगन में खूंटे से बंधी रहती थी आते-जाते लोगों को घूर-घूर कर कहती थी मैं कैद हूं इसलिए आंसू बहा रही हूं रस्सी खोलो मेरी मैं आजाद होना चाहती हूं लेकिन उसकी रस्सी कोई नहीं खोलता था
वह भाग जाएगी घर सारा बोलता था
एक दिन सूरज उगने से पहले मेरी आंख खुल गई खिड़की से बाहर झांका तो पेड़ पर बैठी बहुत सी चिड़िया चीं चीं कर शोर मचा रही थी मैं कमरे से बाहर निकल आया,,,
आंगन में देखा तो खूंटे से बंधी गाय रस्सी खोलने का प्रयास कर रही थी मुझे दया आ गई मैंने एक ही झटके में रस्सी का फंदा खोल दिया गाय आजाद होते ही खुशी से झूम उठी कुछ देर तो वह इधर-उधर देखती रही फिर सड़क पर पड़ी टहनियों को चबाने लगी मैं गाय के पास पहुंचा उसकी गर्दन पर हाथ फेरा और बोला
चलो अब मैं तुम्हें खूंटे से फिर बांध दूं ,, खूंटे का नाम सुनते ही गाय ने मुझे सींग मार कर सड़क पर पटक दिया गांव से कुछ दूरी पर ऊंची एक पहाड़ी थी उसी और वह भागी जा रही थी मैं गाय के पीछे-पीछे भागा जा रहा था कुछ सेकेंड बाद एकाएक गाय ओझल हो गई,,,,
इतनी ऊंची पहाड़ी पर न जाने कहां वह खो गई
मैं अपने आप पर बहुत क्रोधित हुआ मुझे गाय को खूंटें से नहीं खोलना चाहिए था अब खाली हाथ घर लौटूंगा तो दादाजी मुझसे पूछेंगे बता कहां है गाय पिताजी को पता चला तो मेरी दोनों टांगे तोड़ देंगे अम्मा तो मुझे हफ्तों तक खाना ही नहीं देगी मैं उदास मन लिए वापस घर की ओर लौटने लगा,,,
अगर दादी जी को गाय का दूध नहीं मिला तो कहीं दादी जी मर गई तो मुझे बड़ा पाप चढ़ेगा एक बार फिर कोशिश करता हूं शायद दादा जी की गाय मिल जाए मैं उस गाय को ढूंढने में फिर जुट गया इस बार मेरी कोशिश बेकार नहीं गई एक चट्टान के पास गाय गिरी पड़ी थी उसकी चारों टांगों में एक विशाल अजगर लिपटा हुआ था
यह दृश्य देख मेरे माथे पर पसीना आ गया दम निकलेगा गाय का आज ऐसे अजगर चिपटा था तीन मीटर के लंबा जितना था
बहुत ही अजगर मोटा
कुछ ना समझ में आए मुझको मैं बालक था छोटा
चट्टान के पास मुझे बहुत से नुकीले पत्थर बिखरे हुए दिखे तभी मुझे एक युक्ति सूझी मैंने जल्दी नुकीले पत्थरों को उठाया और एक के बाद एक नुकीला पत्थर निशाना साध कर अजगर के ऊपर मारने लगा नुकीले पत्थरों की लगातार बारिश से अजगर ने अपनी पकड़ ढीली कर दी
वह अजगर समझ चुका था यहां से भागने में ही मेरी भलाई है वरना इन नुकीले पत्थरों से घायल होकर निश्चित ही मेरी मौत हो जाएगी अजगर के इरादे विफल हुए भागा वह दुम दबा के मैं तुरंत गाय की तरफ लपका और गाय को उठाते हुए बोला,,,
क्यों पहाड़ी पर आई थी
अजगर ने तो तुझे मारने की पूरी कसम खाई थी
गाय को साथ लिए में जल्दी-जल्दी पहाड़ी से नीचे की ओर उतरने लगा
डर था ,,,कहीं दादाजी जाग ना गए हो गाय और मुझे घर में ना देखकर कहीं घर में हड़कंप ना मच गया हो हांफते भागते दौड़ते जल्दी-जल्दी मैं गाय को लेकर घर वापस लौटा सूरज निकल चुका था पंछी गीत गा रहे थे आसमान में ,,,,,,
गाय तुरंत खूंटे के पास जाकर खड़ी हो गई मैंने खूंटे से फिर गाय को बांध दिया इतने में दादाजी के आने की आहट आई में एक दीवार की ओट में छुप गया दादाजी ने बाल्टी में दूध निकाल लिया और दादी जी के कमरे की और चल पड़े मैं एक बार फिर गाय के पास आया और बोला ,,,, तू किसी को मत बताना ,,,,
कि मैंने तुझे खूंटे से खोला था गाय ने अपनी सींग हिलाकर मुझे धन्यवाद दिया
उस घटना के बाद गाय ने कभी नहीं कहा मुझे आजाद करो
मेरी रस्सी खोलो,,,,,,
,,,,,, रस्सी खोलो,,,,,
नेकराम सिक्योरिटी गार्ड दिल्ली से स्वरचित रचना