रंगरेज़ (भाग 3 ) – अनु माथुर  : Moral Stories in Hindi

अब तक आपने पढ़ा….

मनु फ्लाइट में बैठ जाती है … पुरानी यादें उसे घेर लेती हैं…. अनिरुद्ध पार्टी से लौट कर घर आता है तो उसे भी कुछ पल याद आते है…..

अब आगे……

रामनगर उत्तराखंड का छोटा सा शहर  आबादी भी ज़्यादा नहीं …..लोग मिलनसार एक दूसरे की मदद करने वाले और एक दूसरे को जानने वाले

यहीं पर एक गली जो पटवारियों की गली  से नाम से जानी जाती थी उसी में सात  आठ मकान छोड़ कर एक घर था विषम्भर दास जी का… काफ़ी बड़ा घर था उनका  घर के बीच में आंगन और चारों तरफ कमरे….. तिमंजला घर था उनका दूसरी मंज़िल पर तीन ही कमरे थे बाक़ी जगह खाली थी और उसके ऊपर वाली  मंज़िल पर एक कमरा … पूरी गली में बस एक ये ही घर था जो इतना बड़ा और तिमंजला था..

विषम्भर दास जी का ये पुश्तैनी घर था…. उनके पिताजी जो की किसी ज़माने में वहाँ के राजा के यहाँ काम करते थे…. तब उन्होंने ही ये विषम्भर दास जी के पिताजी को दिया था….. उनके जाने के बाद विषम्भर दास जी कानूनी तौर पर ये घर उन्हीं के नाम करा लिया था….. वैसे भी उनका नाम था…. एक तो उनके पिताजी की वजह से और दूसरे वो खुद भी बहुत अच्छे थे सबकी मदद के लिए तैयार रहते.. लोग बहुत भरोसा करते थे उन पर….उन्होंने एक दुकान खोली थी किराने की जो काफ़ी चलती थी और अब उसे उनके बेटे दीनदयाल जी देखते थे….. दीनदयाल जी का भी एक ही  बेटा था अनिरुद्ध ….

पटवारियों की गली के पीछे विषम्भर दास  जी के घर से लगा हुआ एक घर था जो बहुत दिनों से ख़ाली था…. उसमें जो रहते थे वो अब इस दुनिया में नहीं थे….. उनके सब बच्चे शहर में थे और वो घर बेचना चाहते थे…… उनके घर की चाबी उन्होंने विषम्भर दास जी के यहाँ रखी हुई थी….

जब कोई घर देखने आता तो विषम्भर दास जी खुद ही चाबी लेकर जाते और उनको घर दिखा देते थे….. लेकिन अभी तक कोई बात बानी नहीं थी…

एक दिन विषम्भर दास जी के पास फोन आया कि वो घर देखने कोई आ रहा है….

विषम्भर दास जी उन्हें घर दिखाने गए… वो रामेश्वर ठाकुर थे जिनको घर लेना था उनके साथ उनकी माँ सावित्री भी थी दोनों को घर पसंद आ गया और उन्होंने घर ले लिया…. हफ्ते भर में आने का बोल कर उन्होंने जो भी काम घर में करवाना था विषम्भर दास जी की मदद से  उसके लिए मजदूर लगा कर पूरा करने को बोला दिया

रामेश्वर जी सरकारी नौकरी में थे ….. इस बार उनका ट्रांस्वर् रामनगर हो गया.. ..और उन्होंने वही घर लेने का मन बना लिया

हफ्ते भर बाद रामेश्वर जी अपनी माँ  पत्नी मालती बेटे अतुल और बेटी  मनस्वी को लेकर उस घर में रहने आ गए ….

दीनदयाल और  रामेश्वर दोनों लगभग एक ही उम्र के थे दोनों की फोन से बात होने लगी….

विषम्भर दास जी ने उन्हें सपरिवार  खाने पर बुलाया…… रामेश्वर उनके घर गए…..  विषम्बर दास जी ने अपने परिवार के  सदस्यों से परिचय करवाते हुए कहा….. ” ये हमारी धर्मपत्नी कल्याणी…..  दीनदयाल से तो आप मिले ही हो और ये  हमारी बहू सुमित्रा और ये हमारा छोटा शैतान अनिरुद्ध जिसे हम सब अनी कह कर बुलाते है…. “

जब विषम्भर दास, ने अनी के बारे में बताया तो वो सुमित्रा के पीछे छुप गया

सब ये देख कर हँस दिए….

रामेश्वर जी ने भी अपने परिवार के सदस्यों का परिचय करवाते हुए बताया… “आप मेरी माताजी से तो मिल ही चुके है…. मालती की तरफ उन्होंने इशारा कर के बताया ये हमारी धम्पत्नी है और ये बेटा अतुल और ये मनस्वी जिसे हम प्यार से मनु कहते है “

उस वक़्त अतुल दस साल का अनिरुद्ध तीन साल और मनस्वी एक साल की थी

सब एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश हुए मनु मालती कि गोदी में मे सो गयी थी… उसने उसको वहीं रखे हुए बेड पर सुला दिया….

अनिरुद्ध ने जब मनु को  देखा तो उसके पास आ गया और सोती हुयी मनु को देखने लगा… शायद उसे अपने से छोटे बच्चे को देख कर अच्छा लगा….. वो उसके पास बैठ गया …उसने अपना हाथ बढ़ाया और मनु को छू दिया….  ” अनी बेटा वो सो रही है.. उठेगी तब खेलना उसके साथ.. नहीं तो रोयेगी वो अभी तुम अतुल दादा के साथ खेलो ..”:. सुमित्रा ने कहते हुए अनी को गोदी में उठाया और अतुल के पास बैठा दिया….. अतुल अनिरुद्ध से बातें करना लगा….. अनिरुद्ध अतुल को लेजाकर उसके साथ खेलने लगा……

सवित्रि कल्याणी से बातें करने लगी…… विषम्भर दास जी, दीनदयाल और रामेश्वर जी से बातें करने लगे

मालती ने सुमित्रा के साथ मिल कर सबको खाना खिलाया ….

तभी मनु उठ गयी…. अनिरुद्ध ने उसकी आवाज़ सुनी तो भाग कर उसके पास आया…. वो मनु को  देखे जा रहा था उसने मनु की तरफ अपना हाथ बढ़ाया और उसे छू दिया…. मनु अपने हाथ पैर ऊपर नीचे कर रही थी और हँस रही थी…… मालती ने अपने पर्स में से बॉटल निकली और  मनु को दी….. उसने अनिरुद्ध से कहा अभी खेलेगी तुम्हारे साथ… और उसे अपने पास  बैठा लिया ….. अनिरुद्ध मनु को देखे जा रहा था….. थोड़ी देर में मनु को मालती ने खेलने के लिए अनिरुद्ध के साथ बैठा दिया…..  ये अनिरुद्ध और मनस्वी की पहली मुलाक़ात थी…..

एक रिश्ता सा बन गया दो परिवारों के बीच शायद इसलिए भी की सबको अपनी उम्र के हिसाब से लोग मिल गए थे…… अक्सर दोनों एक दूसरे के घर जाने लगे…. फिर बाज़ार और फिर त्यौहार साथ में मनाने लगे

एक रिश्ता और बन रहा था वो था मनु और अनी के बीच  लेकिन अभी दोनों इस रिश्ते से अंजान थे….दोनों .एक दूसरे के साथ खुश रहते थे……समय बीता मनस्वी स्कूल जाने लगी….. अनिरुद्ध से उसकी खूब जमती थी…. किसी कि बात माने ना माने वो अनिरुद्ध की बात मान जाती थी…… मनु कभी लड़कियों जैसे कपड़े नहीं पहनती वो हमेशा जीन्स टॉप पहनती और कभी दरवाज़े से वो अनी के घर नहीं जाती हमेशा छत से ही जाती…..कितनी बार सबने कहा की लग जायेगी लेकिन वो सुनती ही नहीं थी…

समय के साथ दोनों परिवारों का रिश्ता और गहरा हो गया …. उसके साथ अनिरुद्ध और मनु भी बड़े हो गए….

 मनु ने दसवीं में पूरे स्कूल में टॉप किया था वैसे तो तीनों बच्चे ही पढ़ने में अच्छे थे …  अतुल को भी बैंक में जॉब करते साल होने वाला था……अनिरुद्ध मेडिकल  का एंट्रेंस दिया था बस उसके रिज़ल्ट इंतज़ार था …

मनु और अनी की पसंदीदा जगह थी सबसे ऊपर वाले कमरे की छत….. दोनों घंटों वहाँ बैठे रहते और अपनी ही दुनिया में खोए रहते थे..,कभी तारों को गिनते कभी अपने भविष्य की बातें करते…. मनु कभी अनी से लड़ती तो कभी उसे मनाती….और अनी उसे कभी प्यार से कभी डाँट के समझाता रहता,…..

**************

अनिरुद्ध अजय के साथ अपने रूम में आ गया था वो फ्रेश हुआ और फोन लेकर अपने बेड पर  बैठ गया ….. उसने एक नंबर मिलाया…. दो ही रिंग में किसी ने फोन उठा लिया और बोला

“हैलो…. “

“दादा कैसे है आप ? ” और बाक़ी सब ‘?? अनिरुद्ध ने पूछा

” सब ठीक है और मैं भी ठीक हूँ .. अभी मैं तुम्हें फोन करने ही वाला था… आज काका मिले थे  उन्होंने  बताया तुम जिस रिसर्च पर काम कर रहे थे वो पूरी हो गयी और तुम्हें सम्मानित भी किया है… बधाई हो …. “

“थैंक यू दादा..”..अनिरुद्ध ने कहा

“तुम आ रहे हो क्या अनी?? “

“नही दादा अभी तू नहीं आ रहा … क्या हुआ… कुछ हुआ है क्या “?

“वो…. पापा की तबियत ठीक नहीं है वो होस्पिटल में हैं ” अतुल ने थोड़ा रुकते हुए कहा

” क्या?? किसी ने मुझे बताया क्यों नहीं परसों ही  तो  मेरी बात हुयी है पापा से “

“परसों रात को ही उनकी तबियत खराब हुयी…. मैंने ही मना किया काका को कि ना बताए…. तुम अपने सेमिनार और बाक़ी सब में बीज़ी थे “

“कर दिया ना पराया आपने दादा…. “

“ऐसी कोई बात नहीं है “

” रहने दीजिए मुझे बताइये काका अब कैसे है क्या बताया डॉक्टर ने “????

” डॉक्टर ने बताया साइलेंट अटेक आया पापा को “

“दादा मैं कितना भी बिज़ी था आपको बताना चाहिए था ….आप मेसेज कर देते और मेसज क्यों आप फोन करते मुझे …….. अनिरुद्ध ने थोड़ा गुस्सा होते हुए कहा…..आप रिपोर्ट भेज दीजिए मैं देखता हूँ और मेरी डॉक्टर से कल बात करवाइए …. आप बिलकुल भी परेशान मत होइयेगा “

“ठीक है ” कह कर अतुल ने फोन रख दिया.. !!

अगला भाग कल

[ कहानी के पात्र, स्थान, या किसी भी और बात से वास्तविकता का कोई संबन्ध नहीं है…. ये पूरी तरह से काल्पनिक है ]

 

धन्यवाद

स्वरचित

काल्पनिक कहानी

अनु माथुर

©®

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