उफ़्फ़..पीड़ा की एक लहर आई और उसे माँ की याद दिला गई।ऐसे ही माँ भी पीड़ा से गुजरी होंगी। दिलजोत सोच रही थी।पहले कहाँ भान हुआ था, स्त्री के जज्बातों की। वो तो लाडली बेटी थी। माँ, पापा और चाची की।
दिलजोत के पापा दो भाई थे, दोनों में बहुत प्यार था। चाचा मुखविंदर को पापा सुखविंदर ने ही पाला। मुखविंदर बहुत छोटा था। जब उसके माता -पिता की दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।बड़े भाई सुखविंदर ने कभी भी छोटे भाई को माता -पिता की कमी महसूस नहीं होने दी।जबकि दोनों की उम्र में बस दस साल का ही अंतर था।
सुखविंदर और निम्मो की शादी के बहुत दिनों बाद, मन्नत से दिलजोत पैदा हुई। लड़की देख सुखविंदर को निराशा तो हुई,निम्मो को भी कहीं कसक रह गई, डॉ. ने कह दिया था, अब आप माँ नहीं बन सकती। दोनों दिलजोत को ही नसीब मान कर पालन -पोषण करने लगे।
पढ़ाई पूरी करने के बाद, नौकरी पर लगते ही सुखविंदर ने मुखविंदर की शादी भी मल्लिका से कर दी।मल्लिका अपने नाम के अनुरूप बहुत सुन्दर थी। दोनों भाई, अपनी जिंदगी प्रेम के साथ बीता रहे थे। इधर सुखविंदर देख रहे थे, आजकल मुखविंदर देर रात घर आता। सुबह भी अक्सर भेंट नहीं होती। एक दिन किसी परिचित ने बताया, मुखविंदर साधुओं की संगत में पड़ गया। उन्ही के साथ बैठ प्रवचन देता। सुखविंदर ने भाई को बहुत समझाया। “देख तेरी जिंदगी अब सिर्फ तेरी ही नहीं हैं, अब मल्लिका भी उसमें शामिल हैं, उसकी जिम्मेदारी भी तेरी हैं, इन साधु -संतो के पीछे मत लग ये सब कुछ बर्बाद कर देंगे बस अब तू खानदान को एक वारिस दे दें”।
कुछ दिन तो सब ठीक रहा, पर एक दिन मुखविंदर घर से जो निकला तो लौट के नहीं आया। मल्लिका इंतजार करती रही। टूटी -बिलखती मल्लिका को निम्मो ने बहुत में मुश्किल से संभाला।पर मुखविंदर के बिना, मल्लिका को अपनी जिंदगी वीरान लगती। कितने रंग बदलती हैं, ये जिंदगी भी।
उस दिन रह -रह कर बारिश हो रही थी। मल्लिका उदास थी। मुखविंदर को बारिश का मौसम बहुत पसंद था। रह -रह कर बिजली कड़क रही थी। दरवाजे पर हल्की सी थाप पड़ी। मल्लिका को लगा मुखविंदर लौट आया, झट दरवाजा खोल दी। सामने जेठ सुखविंदर जी खड़े थे।ना मल्लिका ने कुछ पूछानहीं, ना सुखविंदर ने कुछ कहा, पर कहानी दूसरा मोड़ लें ली।
कुछ दिन बाद एक सुबह मल्लिका बेहोश हो गिर पड़ी। डॉक्टर बुलाया गया। चेकअप करने के बाद, डॉक्टर बोली -बधाई हो, आपके घर नया मेहमान आने वाला हैं। निम्मो हैरान थी। मुखविंदर को घर छोड़े साल भर हो गया। मल्लिका की लानत -मलानत की, कौन हैं वो, पर मल्लिका खामोश रही। निम्मो पति को सारी बात बता, उनकी राय मांग रही थी, कैसे घर की इज्जत बचाये, कल को मुखविंदर आ गया तो क्या जवाब देगी। सोचते -विचारते नींद निम्मो की आँखों में आ गई,। रात पानी पीने के लिये उठी तो देखा सुखविंदर नहीं थे बगल में। कहाँ गये होंगे, बाथरूम भी चेक कर आई। मल्लिका के कमरे में रोशनी थी, निम्मो उसे लाइट बंद कर सोने के लिये कहने को दरवाजा खोली थी, अंदर का दृश्य देख, बेहोश हो गई। होश आने पर देखा अपने कमरे में थी। सुखविंदर जी सामने बैठे थे। निम्मो ने उन्हें देख मुँह फेर लिया। जिस प्रेम और विश्वास से दाम्पत्य जीवन की गाड़ी शुरू का थी , वो बीच राह में टूट गई।जीने की इच्छा ही मर गई। जिस पति को जी जान से चाहा, उसने वफ़ा का ये सिला दिया। जिस देवरानी को छोटी बहन माना, उसने रिश्तों के चादर की चिन्दी -चिन्दी कर दी।इतना बड़ा धोखा….।
नन्ही दिलजोत को देख, निम्मो ने फिर से जीने का हौसला किया। क्या हुआ जो एक स्त्री की मौत हो गई, पर माँ जिन्दा हैं। बेटी को देख निम्मो ने समझौता कर लिया।ऊपर की मंजिल पर वो दिलजोत को लेकर रहने लगी।सुखविंदर ने एक चुन्नी चढ़ा, मल्लिका को अपनी पत्नी बना लिया। नन्ही दिलजोत बहुत खुश थी। दो माँ हो गई उसकी। नियत समय पर मल्लिका ने एक बेटे को जन्म दिया। अब मल्लिका का पद, निम्मो से बड़ा हो गया, उसने खानदान का वारिस जो दे दिया। एक दिन दिलजोत निम्मो के पास आ कर बोली -माँ, ये वारिस क्या होता हैं “.।
निम्मो ने समझाया -जो आगे की पीढ़ी हैं,। पर माँ, छोटी माँ तो पापा को कह रही थी -आपको वारिस मैंने ही दिया, सूरज को जन्म देके।
ये बताओ माँ, क्या मै वारिस नहीं हूँ। पगली लड़कियाँ वारिस थोड़ी ना होती, वारिस तो लड़के होते, मल्लिका ने दिलजोत की बात का जवाब दिया। मेरी वारिस तो तू हैं दिलजोत.. निम्मो ने लाड़ से कहा,तू भी इस घर की वारिस हैं।
बात आई -गई हो गई। समय बीता, दिलजोत और सूरज बड़े हो गये। अच्छा लड़का देख दिलजोत की शादी कर दी गई। लड़का कनाडा में जॉब करता था। शादी के बाद वीजा बनने में देर थी तो दिलजोत का पति संग्राम वापस चला गया। बहुत दिनों बाद वीजा हुआ तो संग्राम टिकट भेजनें में आनाकानी करने लगा। निम्मो को कुछ शक हुआ, उसने दिलजोत को प्लेन में बैठा दामाद संग्राम को, दिलजोत के पहुंचने की सूचना दी। एयरपोर्ट पर संग्राम लेने तो आया पर चेहरा लटका हुआ था। रास्ते में बताया -देख दिली, मैंने तुझसे शादी माँ -पिता के कहने पर की। मै यहाँ ही शादी कर चुका था । माँ -पिता को बहुत समझाया पर वे मानने को तैयार नहीं थे। तू मुझसे यहाँ कोई उम्मीद मत रखना। तुझे मै एक दोस्त के खाली घर में छोड़ दे रहा हूँ। दो -चार दिन रह तू वापस चली जा। मै तुझे खर्चा -पानी देता रहूंगा।
दिलजोत के सारे सपने टूट गये। क्या एक पत्नी के लिये खर्चा -पानी ही मुख्य होता हैं, उसे पति का साथ नहीं चाहिये होता। कहना चाह कर भी दिलजोत कह नहीं पाई।एक दिन संग्राम दिलजोत के पास आया। मीठी बातें कर उसे पटाने की कोशिश करने लगा। ना चाहते हुये भी दिलजोत उसके झांसे में आ गई। संग्राम दिन भर उसके पास रहता पर शाम होते ही चला जाता।दिलजोत को ये भी मंजूर था।एक दिन संग्राम आया और दिलजोत को वापसी की टिकट पकड़ा गया। सहेज गया, कल सामान बांध कर तैयार रहना। एयरपोर्ट पर ड्राप कर देगा।दिलजोत ठगी सी टिकट पकडे खड़ी रह गई।
एयरपोर्ट पर बैठी दिलजोत आज माँ की पीर समझ पाई। कितना मुश्किल होता हैं दूसरी को सहन करना। पहले दिलजोत, माँ के अलग -थालग रहने पर गुस्सा करती, आप बाबा के साथ क्यों नहीं रहती, क्यों ऊपर की मंजिल पर अकेली रहती। छोटी माँ को देखो, बाबा और सूरज के साथ कितना एन्जॉय करती हैं। मै नहीं कर पाती हूँ तुम्हारी वजह से।
माँ की सूनी आँखों का दर्द वो कहाँ देख पाई। जिसके भरोसे सब कुछ छोड़ नई दुनिया बसाई। वही धोखा दे गया तो किस पर विश्वास करें। माना निम्मो की उम्र बढ़ रही पर निम्मो से पांच साल बड़े सुखविंदर की भी तो उम्र बढ़ रही, फिर भी अपने से पंद्रह साल छोटी, भाई की पत्नी को अपनी बनाने में लगे थे। निम्मो कैसे बताती, एक दिन मुखविंदर लौट आया था। भाई संग पत्नी को देख अगले दिन फिर चला गया। सुखविंदर ने पत्नी ही नहीं भाई का भी विश्वास तोड़ दिया।विश्वासघात और शर्मिंन्दगी ने नहीं निम्मो को कर्कश बना दिया। हंसती -खेलती जिंदगी कब अस्तित्व विहीन हो जाती,इंसान समझ ही नहीं पाता।
फ्लाइट में बैठी दिलजोत ने निर्णय लें लिया। अब वो माँ को लें अलग रहेगी। माँ की पीड़ा तब समझ में आई, जब वो भी उसी दौर से गुजरी। बस अब वो माँ के संग नई जिंदगी जीयेगी। माँ को हर सुख देने के कोशिश करेंगी। फ्लाइट लैंड होते ही दिलजोत ने माँ को फोन कर दिया..। एक नई शुरुआत के लिये, जहाँ धोखा नहीं प्यार होगा । सुखविंदर ने निम्मो को रोकने की बहुत कोशिश की, पर बढे पैर फिर वापस नहीं मुड़े।, स्त्री ही क्यों दर्द सहे। बाहर निकल बरसों बाद एक गहरी और राहत की सांस निम्मो ने ली, माँ -बेटी ने एक दूसरे का हाथ थामा और बढ़ गई अपनी जिंदगी जीने…।जिंदगी के रंग हर पल बदलते हैं।
#धोखा
—संगीता त्रिपाठी