एक अखबार में आर्टिकल के लिए इंटरव्यू देते समय जब कुणाल से पूछा कि आखिर यह काम करने की प्रेरणा उसे कहां से मिली तो मुस्कुरा कर बस यही बोला कि रक्तदान मेरा पहला प्यार है और फिर वह अपनी सांझ के बारे में सोचने लगा।
उसे खुद को भी याद नहीं की कब से..
पर यह पता था कि उसके दिल की धड़कनों में बस एक ही नाम समाया है और वो है “सांझ”
शायद जब एक साथ खेलते थे वह तब से, खेलना क्या बस लड़ते ही थे दोनों। कुणाल हमेशा उसको चिढ़ाता रहता था और वह एकदम से चिढ़ जाती।
“मैं तेरी मम्मी से बोलूंगी कि तू मुझे बहुत परेशान करता है”
ऐसे बोलती जब वह कुणाल को, तो वो उसके बचपने पर हंसने लगता और एक बार फिर उससे प्यार करने लगता था।
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यह बात तब की है जब गली मोहल्ले के सारे बच्चे एक साथ खेला करते थे, उस जमाने में हर किसी के पास मोबाइल नहीं हुआ करते थे तो बच्चों का शाम का समय एक साथ खेल कर ही निकलता था। और इस खेल-खेल में कुणाल को अपने ही घर के पास रहने वाली सांझ से प्यार हो गया। आखिर वह थी भी तो ऐसी ही की कोई भी प्यार कर बैठे उससे।
गोरा रंग, काले घने लंबे बाल, बड़ी-बड़ी आंखें और एक प्यारी सी मुस्कान, ऐसी की सबका मन मोह लेती।
सबसे हंस के बात करना, बड़ों का सम्मान करना और सबसे अपनी बात मनवाना और अगर कोई उसकी बात ना माने तो मुंह फुला लेना। ऐसी ही थी कुणाल की सांझ, जिसको वह दिल और जान से ज्यादा प्यार करता था। पर सांझ को इस बात की खबर नहीं थी, वह तो बस उसे अपना अच्छा दोस्त मानती थी और अपनी हर बात उसके साथ बांटती थी।
कितना समय तो उनका एकसाथ खेलते हुए ही निकलता था चाहे बाहर मोहल्ले में खेलना हो, चाहे पड़ोस के किसी बच्चे के घर या फिर छत पर।
पतंग उड़ाने की शौकीन सांझ को पतंग उड़ानी भी तो कुणाल ने ही सिखाई थी। यूं ही खेलते-कूदते कब बचपन को छोड़ जवानी में कदम रख लिया, दोनों को खुद भी पता ना चला।
जब एक दिन कुणाल ने सांझ से कहा कि मुझे तुझसे दोस्ती करनी है,
तो वह बोली दोस्त ही तो है हम।
पर कुणाल बोला ऐसे दोस्त नहीं, एक खास दोस्त बनना है मुझे तेरा कि तुझ पर बस मेरा हक हो और जीवन भर तू मेरे संग हो।
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उसकी इस बात पर शर्मा गई थी वो और चुपचाप वहां से चली गई क्योंकि दिल ही दिल में तो वह भी उसे पसंद करने लगी थी।
प्यार छुपाए कब छुपता है, उन दोनों के दिल में छुपा एक दूसरे के लिए प्यार, मोहल्ले वालों से कहां छिप पाया था।
और इसी वजह से अपना मंदिर जाने का नियम ही बदल लिया दोनों ने जब एक पड़ोसी ने कहा की, “दोनों साथ-साथ शिव जी के मंदिर में क्या मांगने जाते हो?”
कुणाल को कहां यह बात बर्दाश्त थी कि उसकी सांझ पर कोई बात आए और उसी दिन से उसने दूसरे मंदिर का नियम पकड़ लिया पर उसकी प्रार्थनाओं में तो आज भी बस सांझ ही थी, उसकी खुशी ही मांगी उसने हमेशा।
दीवानों की तरह प्यार करता था वह अपनी सांझ से, उसे कुछ हो जाए यह कहां मंजूर था उसे।
एक दिन स्कूल से वापस आते वक्त रास्ते में एक गाय आगे आने की वजह से सांझ के हाथ पर चोट लग गई और थोड़ा खून निकल आया बस फिर क्या था पता चलते ही कुणाल ने अपना हाथ दिवार पर इतनी बार मारा कि खून से लथपथ हो गया था उसका हाथ। सांझ बहुत नाराज हुई थी उससे इस बात पर कितने दिन तक बात भी नहीं करी उसने कुणाल से।
उन दोनों का प्यार दिन पर दिन बढ़ता रहा पर उनको अपनी सीमाएं भी पता थी। बस आंखों ही आंखों में बातें कर लेते थे दोनों।
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एक दिन पता नहीं कैसे सांझ के मम्मी पापा को उन दोनों के बारे में पता चला। दोनों की खूब डांट लगी थी घर पर। सांझ कितने दिन तक घर से बाहर भी नहीं आई और कुणाल ने भी मौका मिलते ही सांझ के माता पिता से माफी मांगते हुए कहा कि सांझ मेरा पहला प्यार है पर मेरा इरादा कभी आपका दिल दुखाने का ना था मैं तो बस उसको चाहता हूं….
बस तभी सांझ के माता-पिता ने उसका रिश्ता कहीं और कर दिया। कुणाल के लिए अपना प्यार किसी और का होते हुए देखना बहुत मुश्किल था इसलिए अपना घर छोड़कर वह दूसरे शहर में नौकरी करने चला गया। और उधर सांझ भी अपने पिता के घर से विदा हो अपने पति के घर जाकर अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गई।
2 – 3 साल दोनों ने एक दूसरे से बात भी नहीं करी पर पहला प्यार भुलाए नहीं भूलता।
कुछ ऐसा ही कुणाल के साथ भी था दिल्ली में भी उसका मन कहां ही लगता था और अपने घर वालों से भी दूर था तो वह फिर से वापस अपने शहर आ गया।
सांझ भी अब तक दो (जुड़वा) बच्चों की मां बन चुकी थी पर कुणाल का प्यार अभी भी उसके दिल के किसी कोने में छिपा था।
दोनों की आंखों से आंसू छलक आए थे जब 3 साल बाद एक दूसरे को देखा था। आंखों ही आंखों में कुछ बात की दोनों ने और अपने-अपने रास्ते चल दिए।
पता नहीं क्यों पर सांझ उस दिन अपने दिल पर काबू नहीं रख पाई और कुणाल के फोन पर फोन मिला बैठी।
हैलो…
बोलकर 2 मिनट तक बस एक दूसरे की चुप्पी ही सुनते रहे दोनों फिर थोड़ी सी बात करके फोन रख दिया। तब से वो दोनों कभी कभार बात कर लिया करते थे। सांझ ने अपना दोस्त बता कर अपने पति से भी मिलवाया था कुणाल को।
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उसके पति एक समझदार और खुले विचारों वाले इंसान थे, उन्होंने कभी भी उनकी दोस्ती पर कोई शक नहीं किया बल्कि खुद भी अच्छे दोस्त की तरह कुणाल से बात कर लिया करते थे।
सांझ अक्सर कुणाल को शादी करने के लिए कहती तो वह हंस कर कह देता अपने जैसी कोई ढुंढ ला तो कर लूंगा मैं भी शादी और वह उसकी इस बात पर बस चुप होकर रह जाती।
समय अपनी गति से चला जा रहा था कि एक दिन सांझ ने रोते हुए, कुणाल को फोन करके बताया कि उसे ब्लड कैंसर हो गया है।
सांझ सबसे ज्यादा परेशान इस बात से थी कि अभी तो उसके बच्चे भी बस 5 साल के हैं…
कुणाल ने उसको ढांढस बंधाया और उसको समझाया कि विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि अब हर बीमारी का इलाज संभव है।
कुणाल ने उसे तो समझा दिया पर खुद अपने महादेव के आगे बहुत रोया था कि क्यों उन्होंने उसकी सांझ को ही चुना इतने बड़े दुख के लिए वैसे ही क्या कम दुख थे उसके शादीशुदा जीवन में जो अब यह एक और…
सांझ का इलाज शुरू हुआ और दवाइयों से ही उसकी स्थिति में आराम आना शुरू हुआ।
वह अपना दुख कभी भी अपने माता-पिता या अपने पति से नहीं कहती थी। बस खुद ही अपने भगवान के पास बैठकर रो लेती या फिर जब कभी बहुत परेशान होती तो कुणाल से बात करके अपना मन हल्का कर लेती थी। कुणाल भी उसके हर सुख दुख में एक सच्चे दोस्त की तरह उसका साथ निभाता।
इंजेक्शन से बहुत डर लगता था उसे पर अब तो हर महीने जांच और डॉक्टर के पास दिखाने जाना उसके जीवन का एक हिस्सा बन गया था…
सबके सामने हंसती हुई सांझ को भी तो कभी दुख होता ही था और खुद की हालत पर रोना भी आता था, उस समय वह बस कुणाल को ही फोन करती थी और उसके सामने रो लेती।
रोती हुई अपनी सांझ को कैसे हंसाना है यह बस वही जानता था और वह भी उसकी बातों पर हंस देती और अपना हर दुख भूल कर अपने बच्चों में व्यस्त हो जाती।
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ऐसे ही समय चलता रहा और कुछ साल बाद सांझ हमेशा के लिए अपने परिवार और अपने कुणाल को छोड़कर इस दुनिया से चली गई।
बहुत अकेला हो गया था कुणाल, उसने तो अपनी मोहब्बत और एक अच्छी दोस्त दोनों एक साथ खो दी थी।
कुणाल के दिल में सांझ की बीमारी का ऐसा असर हुआ कि उसने एक सामाजिक सेवा का कार्य शुरू किया, वह हर 3 महीने में खुद तो रक्तदान करता ही था और उसने अपने आसपास के लोगों को, अपने दोस्तों को और भी सबको रक्तदान करने की सलाह देनी शुरू कर दी और अपने शहर में एक BLOOD VOLUNTEER की तरह दिन रात काम करने लगा। अपने इस कार्य से उसने न जाने कितने लोगों की जान बचाई।
जब भी कोई उसे शादी करने को कहता तो वह बोलता शादी तो नहीं करूंगा पर जिंदगी भर अपनी मोहब्बत के साथ रहूंगा। रक्तदान ही मेरी मोहब्बत है और अब जीवन भर बस यही करना है, जिससे किसी को भी उसके प्यार से दूर न होने दूंगा मैं।
कुछ लोग अपने प्यार से जुदा होने पर शराब पीना – नशे करना आदि शुरू कर देते हैं पर कुणाल ने यह संकल्प लिया कि वह कभी भी किसी के प्यार को खून न मिलने की वजह से उससे दूर नहीं होने देगा।
आज शहर में कुणाल का बहुत नाम है और इस नेक कार्य के लिए उसको कितनी ही जगह सम्मानित भी किया जाता है।
जब भी कोई उससे उसकी प्रेरणा पूछता है तो वह बस ये ही बोलता है कि रक्तदान ही मेरा पहला प्यार है और मेरा पहला प्यार ही मेरी प्रेरणा है।
आशा करती हूं आप लोगों को पसंद आया हो और जो संदेश में इस कहानी से आप लोगों को देना चाहती हूं वह भी शायद आप तक पहुंचा हो
हमें सबको अपने अच्छे स्वास्थ्य और जरूरतमंद लोगों की मदद हेतु रक्तदान आवश्यक करना चाहिए, क्या पता हमारा भी एक छोटा सा प्रयास किसी सांझ को उसके परिवार और प्रिय जनों से दूर होने से बचा सके
आप सभी पहला भाग पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे
स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित
सांची शर्मा