रक्षाबंधन ऐसा भी – सुनीता माथुर : Moral Stories in Hindi

 रिम्मी और सिम्मी दोनों बहनों ने 5 साल से अपने भाई को राखी नहीं बांधी थी क्योंकि दोनों की ही पोस्टिंग बाहर थी दोनों इंजीनियर थीं और उनके पति भी इंजीनियर थे इस बार दोनों बहनों ने रक्षाबंधन पर अपने भाई और भाभी को सरप्राइस देने की सोची 

          दोनों ही बहने अपने भाई से छोटी थीं  दोनों ने निश्चित कर अपने बुजुर्ग माता-पिता से कहा इस बार तो हम दोनों बहनों ने निश्चित किया है भैया भाभी को जरूर राखी बांधेंगे बहुत साल से दूर हैं ।

    रिम्मी और सिम्मी के माता-पिता बहुत खुश हुए पर वह अपनी खुशी छुपा नहीं पा रहे थे इस रक्षाबंधन पर तो दोनों बेटियां घर आ रही हैं एक दिन अचानक अपने बेटे से मां ने बोला बेटा तुम्हारी दोनों बहने  रक्षा बंधन पर आ रही हैं पर वह सरप्राइज देना चाहती थीं मैं इस बात को  तुम्हें बता रही हूं  अपनी खुशी के मारे छुपा नहीं पा रही अभी बहु रश्मि से कुछ मत बोलना पर उनकी बहू रश्मि किचन में खाना बना रही थी उसने यह बात सुन ली उसे सुनकर ज्यादा खुशी नहीं हुई और तभी से रश्मि बाहर घूमने जाने का प्लान बनाने लगी

एक दिन अपने पति राजीव से बोली इस बार तो रक्षाबंधन के एक दिन पहले मुझे मसूरी घूमाने लेकर चलो भाई कुछ नहीं कह पा रहा था क्योंकि उसे पता था दोनों बहने रक्षाबंधन पर आने वाली हैं पर रश्मि ने राजीव से लड़ना झगड़ना शुरू कर दिया और अपने पति राजीव से बोली  कि आपको मेरे साथ चलना ही पड़ेगा

राजीव भी कुछ नहीं बोल पाया जिंदगी तो अपनी पत्नी के साथ ही बितानी थी । राजीव अपने माता पिता के पास जाता है और बोलता है इस बार रक्षाबंधन पर तो हम मसूरी घूमने जा रहे हैं माता पिता अपने बेटे की बात सुनकर दंग रह जाते हैं उन्हें लगता है दोनों बेटियां इतने साल बाद पहली बार रक्षाबंधन पर आ रही हैं और खुद का बेटा ही अपनी पत्नी की बातों में आकर राखी का त्यौहार

छोड़कर जा रहा है माता-पिता बहुत दुखी हो जाते हैं पर अपने बेटे और बहू से कुछ नहीं कहते सोचते हैं यह भी एक सरप्राइज ही है की बहनें राखी पर आयें और भाई भाभी ना मिलें ।

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       राखी के 1 दिन पहले दोनों बहने अपने घर आईं  तो घर में एक सन्नाटा सा छाया हुआ था मम्मी पापा  एक कोने में चुप चाप बैठे हुए थे सोच रहे थे कि अपनी बेटियों को क्या कहेंगे आते ही दोनों बेटियां अपने माता-पिता के गले लग जाती हैं और सोचती हैं कि भैया भाभी  जरूर बाजार गए होंगें पर जब उन्हें पता चलता है कि वह तो मसूरी घूमने गए हैं दोनों बहनें थोड़ी उदास हो जाती हैं लेकिन अपने भैया भाभी के लिए कुछ नहीं बोलतीं और अपने  माता-पिता को सांत्वना देती हैं अरे चिंता मत करो हम दोनों आपके बेटे हैं ना।                                       

इस बार तो अपन कन्हैया जी के संग रक्षाबंधन की खुशियां  मनाएंगे वैसे भी रक्षाबंधन के त्यौहार पर हम बहनें कन्हैया जी को तो सबसे पहले राखी बांधते ही हैं अपने माता-पिता से खूब अच्छी-अच्छी बातें करके उनको खुश कर देती हैं और अपने आस-पड़ोस वालों से और अपने कुछ खास रिश्तेदारों से बोलती हैं इस बार हम अपने घर में धूमधाम से रक्षाबंधन मनाएंगे और कान्हा जी को सब राखियां बंधेंगे डांस गाने करेंगे अच्छी-अच्छी मिठाइयां और पकवान बनाकर खाएंगे फिर क्या था  रक्षाबंधन के दिन दोनों बहने  अपने 

घर को लाइटिंग और फूल मालाओं से  खूब सजा देती हैं और बीच में कान्हा जी का झूला सजाकर रख देती हैं कान्हा जी को नए कपड़े पहनाकर मुकुट लगाकर उस पर सुंदर सा मोर पंख लगा देती हैं  फिर कान्हा जी को झूले में बिठा देती हैं  सामने एक प्लेट में मिठाई रोली चावल और खूब सारी राखियां रख देती हैं धीरे-धीरे घर में कुछ खास रिश्तेदार और आस-पड़ोस बाले आ जाते हैं और सब महिलाएं मिलकर  कान्हा जी को तिलक  लगाती हैं राखी बांधती हैं मिठाई खिलाती हैं और झूला झुलाती हैं  सब मिलकर खूब

डांस गाने करते हैं भजन गाते हैं और फिर खाना खाते हैं मिठाई खाते हैं सबके मन में इतनी प्रसन्नता होती है और सबके मुंह से यही निकलता है ऐसा राखी का त्यौहार कभी नहीं मनाया ऐसी बेटियां भगवान सबको दें  । इतनी धूम धाम से राखी का त्योहार मन जाता है दोनों बहनों की आस पड़ोस वाले और उनके रिश्तेदार खूब तारीफ करते हैं ऐसा रक्षाबंधन का त्यौहार कभी नहीं मनाया रक्षाबंधन के दूसरे दिन ही दोनों बेटियां अपने माता-पिता को इतना खुश करके वापस अपने घर चली जाती हैं 

            जब दूसरे दिन रिम्मी और सिम्मी के भैया भाभी घर आते हैं और घर को इतना सजा हुआ देखते हैं और उन्हें पता चलता है कि रक्षाबंधन इतनी धूमधाम से मनाया गया तब उन्हें बड़ा ही पछतावा होता है इतने साल बाद मेरी दोनों बहने घर आईं थीं अब पता नहीं कब आएंगी ।

     सुनीता माथुर

पुणे महाराष्ट्र

मौलिक रचना

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