” रक्षाबंधन” – गोमती सिंह

——सुबह के 8:00 बज रहे थे पावन महीना सावन फिर पूर्णमासी का दिन था मां सुबह 6:00 बजे भोर से ही    उठ कर नहा धोकर अपने बच्चों के लिए खीर पूरी बना रही थी दोनों लड़कियां भी उठकर नहा धोकर तंग  तैयार हो गई थी। अपने दोनों छोटे छोटे भाइयों को बड़े प्यार से उठाकर नहला धुला कर राखी बांध चुकी थी  क्योंकि वे दोनों अभी अबोध बालक थे लेकिन वही उनके सबसे बड़े भैया जो कॉलेज से छुट्टी लेकर शरारत का पिटारा अपने बहनों के लिए भर कर लाए थे और

उसी  शरारत को लेकर आज  सावन के पूर्णमासी के दिन  भी वह सोकर  नहीं उठ रहे थे  बड़ी बहन अन्नू अपने भैया को उठाने लगी- उठो ना भैया जाओ जल्दी नहा धो कर आओ 16 -17 वर्ष के उसके भैया में अपनी बहनों को सताने के लिए शरारत खूब भरा रहता था उसे पता था आज उसकी प्यारी प्यारी बहनें उसे राखी बांध कर ही खाना खाएंगे मगर कच्चे उम्र में वह उनकी भूख का अंदाजा नहीं लगा पाते थे और अपनी बहनों को तंग करते रहते थे जब अन्नू अपने भैया को  उठाने लगी तब वह बोले- क्यों ?क्यों  जल्दी सो कर उठूंगा ? और क्यों जल्दी नहाऊँगा ? पहली बात तो यह है कि मैं 9:00 बजे से पहले बिस्तर नहीं छोडूंगा और 11:00 बजे से पहले नहाऊँगा  नहीं । इतने में छोटी बहन मीनू आ गई और अपने भैया का चादर खींचने लगी। तीनों भाई बहनों में बाल चपलता की लड़ाई होने लगी।

          फिर उन सब की मां पुकारने लगी उठो बेटा जल्दी नहा कर आ जाओ तैयार हो जाओ आज रक्षाबंधन है ना बेटा जल्दी आ आ जाना इस तरह मौज मस्ती करते दिन व्यतीत हो रहे थे । 

       अब अजय की बड़ी बहन अन्नू  विवाह योग्य हो गई योग घर वर  देखकर उसका विवाह कर दिया गया। फिर घूम कर महीना सावन का आया अब  सभी भाई बहनों में  गंभीरता आ गई थी।  सभी वयस्क हो रहे थे शरारत ऊंगलियां  छुड़ा रही थी । तभी तो शरारत की शुरुआत करने वाली बहन अन्नू नहा धोकर नई साड़ी पहन कर चुपचाप एक कोने में बैठी हुई थी अपने भैया की आने का इंतजार कर रही थी वह कुछ बोल ही नहीं पा रही थी।



क्योंकि उसकी आत्मा में समाज के बनाए हुए या यूं कहें की भगवान के बनाए हुए पराए पन ने डेरा डाल रखा था यह हमारे भारतवर्ष की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है की लड़कियां विवाह के पश्चात अपने जन्म स्थान में पराई कहीं जाती हैं जिन पर हमें गर्व है हमारे देश की लड़कियों को इस संस्कृति  पर अभिमान है, अपनों से बिछड़ते हैं तभी तो अपनेपन  का आभास पुख्ता होता है जिससे भावुकता का जन्म होता है और आँसू  का निर्माण होता है। भारतवर्ष के किसी भी परिवार में पहली बार आँसू यहीं से निकलते हैं । जिस आँसू  का रूपांतरण खुशी होती है और औपचारिक पराए पन का आविर्भाव होता है । अनु को इसी पराए पन ने घेर रखा था। 

अजय को भी आज सब कुछ सुना सुना लग रहा था वह 11:00 बजे राखी बंधवाने वाला अजय आज सुबह 9:00 बजे ही  तैयार हो गया था। अन्नू और मीनू ने अपने भैया के लिए आसन लगा रखी थी ,  जिसमें आकर अजय चुपचाप बैठकर अपनी कलाई आगे बढ़ा दिया अन्नू  राखी बांध के दूर खड़ी हो गई छोटी बहन मीनू ने थोड़ी सी शरारत जिंदा  रखी पर्व से उदासी को दूर करने का भरसक प्रयास किया  जो उसे भी औपचारिक ही लग रही थी ।

अपने भैया को राखी बांधते हुए कहने लगी लाओ राखी बांधने का उपहार लाओ अजय को भी सभी लड़ाई औपचारिक ही लग रही थी जो कभी मस्ती का परिचायक हुआ करती थी फिर बनावटी ही सही शरारत होने लगी काहे का पैसा कितने की है तुम्हारी राखी ₹2 की लो ₹4 ले लो लेकिन वही अन्नू दूर दरवाजे पर लटक कर खड़ी हुई थी मां भांप गई अंतर्मन की भावना को छुपाते हुए बोली- जाओ बेटी अन्नू तुम भी अपने भैया से राखी का उपहार मांगो इतना सुनते ही अजय की आंखें डबडबा गई और वह अपने बहन के मूक पन को समझ गया फिर उसे जो दरवाजे पर लटक रही थी उसे अपने आसन में बिठाया और अनमोल राशि उसके हाथों में थमाया और बिना कहे बिना बोले  आंखों ही आंखों में अपनी बहन को हर विषम परिस्थिति में रक्षा करने के लिए तत्पर रहने का वादा किया तब दोनों भाई बहनों की आंखों से निर्झर आंसू झरने लगे तब विदा होते सावन फिर से बरस गया।

        ।।इति।।

        -गोमती सिंह 

           छत्तीसगढ़ 

    स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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