रक्षा सूत्र – सुधा शर्मा

‘कुछ रिश्ते सिर्फ़ चाहतों के रिश्ते होते हैं  , रूह में बसे रूहानी रिश्ते होते है।

          ऐसा ही तो रिश्ता था सुमि और समीर का। न राह एक , न मंजिल , समीर की अपनी जिम्मेदारियां और सुमि की अपनी तन्हा जिंदगी । बस शब्दों और स्वरों का रिश्ता था दोनों के बीच।

शब्द सुमि के स्वर समीर के।

भावनाओं से परिपूर्ण था उनका मन।

सुमि पढते पढ़ते खो जाती समीर के भावपूर्ण शब्द,

‘कितना प्रेम रस भरा है मेरी सुमि में  कितना वर्णन करती हो अपनी रचनाओं कविताओं में ।वो पल, प्रेम रस मे हम, दोनों डूबेंगे ।आपके शब्द आत्मा में बसते हैं ।

बरस जाओ लूट लो मेरा सारा प्रेम, लुटा दो अपना सारा प्रेम,मिट जाओ मिट जाने दो ।

मेरे जीवन में इतने शब्द, और इतने सुन्दर शब्द , और इतना स्नेह प्रेम वाला इन्सान आप पहले हो जो मेरे जीवन मित्र बन गये  ।नतमस्तक हूँ आपकी भावनाओं आपकी मुहब्बत के आगे, आँखे नम हो जाती हैं ।आपकी मोहब्बत के मोती पलकों पे बिखर जाते है ।दोनों ओर होता है ।तभी मोहब्बत पाक होती है।कुछ आत्मिक रिश्ते होते हैं ।”

कितना कोशिश करती कभी-कभी  खुद को उसके आकर्षण से दूर रखने की पर उसकी हर बात को

प्यार भरे शब्दों से वह निरर्थक कर देता था।जानती थी इन भावनाओं का न तो कोई मतलब है न भविष्य।

उस दिन जब सुमि ने लिखा  ‘मुझे  अकेला छोड़ दो, दूर चले जाओ ।”

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तो लिखा उसने’अकेली तो हो और कितना तन्हा होना है बोलो।एक बात सोचो समान विचारधारा के लोग बडी मुश्किल से मिलते हैं हम दोनों समान विचारधारा रखते हैं

विचारों के माध्यम से ही जुड़े रहेंगे।

               ऐसा क्यों लिखा मै

पास आया हूँ मगर दूर जाने के लिये नहीं ।जीवन पर्यन्त साथ निभाने के लिए ।”

        फिर वह उसे कुछ नहीं कह पाई। कहता था अपनी रचनाओं कविताओं के माध्यम से जियो अपने समीर को।तुम्हारी मुहब्बत शब्दों को बुनती है जितनी मुहब्बत उतने गहरे शब्द ।तुम्हारे शब्दों की

गहराई समुद्र से गहरी, ऊँचाई आसमान से ऊँची ।

       न चाहते हुए भी उसके शब्दों की फुहार में भीगने लगी थी सुमि।


अनचाहे अनजाने ही मन समीर के

की यादों के सैलाब में डूब जाने लगा था।केवल शब्दों के माध्यम से ही तो जुडे थे वे।

  जानती थी तकलीफ के अलावा और क्या हासिल होना था?इन्तजार वो भी बातों का?शब्दों का? पर  जब भी कभी वह

भावनाओं के भंवर से निकलना चाहती समीर अपने शब्दों के मोह में जकड़ लेता ।

      ‘ क्यों आई मेरे जीवन में बेहिसाब , समुद्र से गहरा ।

    कुदरत ने अपने स्वरूप को   सुमि में भरकर मेरे जीवन में उतारा है बस तुम्हारा स्नेह मनमोहक मुस्कान मार्गदर्शन जीवन पर्यन्त मिलता रहे ।”

                वह फिर सब कुछ भूल जाती। जब कभी उसके खयालो से दूर जाने का मन बनाती इतना दर्द छलक आता शब्दों में , समीर कहने लगता’इतना दर्द मत लिखा करो जान मै यही हूँ आपके पास , आपके साथ , हमेशा।”

           सुमि फिर उसकी  यादों में खो जाती।उसके खूबसूरत शब्द, उसकी तस्वीरें, उसके गीत उसके बेचैन मन को राहत पहुंचाते थे।अक्सर मन भीग जाता उसकी आवाज़ सुनकर।

उस दिन बहुत बेचैन हो कर लिखा

सुमि ने

‘तुम्हारे स्वर मेरे हो जाये

मेरे शब्द तुम्हारे ।

मेरी खुशियाँ तुम्हारी हो जाये

मै ले लूँ गम तुम्हारे ।

तुम मेरे मन में बस जाओ

मै मन में तुम्हारे।

तुम्हारी कलाई पर बँध जाऊँ रक्षा सूत्र बन कर

तुम्हारे गले का ताबीज़ बन कर सारी मुश्किलों से बचा लूँ मैं

मेरी  सारी इबादत, सारी प्रार्थना से

रौशन रहे तेरी खुशियों के चिराग

बस इतनी  सी है आरजू

मेरे दिल की ।’

     सच में उसकी मंगलकामनाओ  के अलावा कुछ भी नहीं चाहिये जिसने उसे बेपनाह प्यार की अलौकिक अनुभूति से भर दिया था।

             ऐसा भी होता है क्या ?समीर की अपनी जिंदगी, कभी उसको देखना भी सम्भव नहीं होगा, सुमि की अपनी तन्हा जिंदगी। सिर्फ एक दूसरे की खुशी

के अलावा और कोई चाहत नही ।कैसी अद्भुत,बेहिसाब, निस्वार्थ चाहत?

#दिल_का_रिश्ता

मौलिक स्वरचित

सुधा शर्मा

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