रक्षा सूत्र ही सुरक्षा कवच हैं… –  संगीता त्रिपाठी 

 विभा निर्मला और किशोर जी की बहू थी उसने अनुज से प्रेम विवाह किया था। विवाह से पहले ही अनुज फौज में चला गया। विवाह के समय एक महीने की छुट्टी लेकर आया था। एक महीना कब बीत गया अनुज और विभा को पता नहीं चला।

जब अनुज पोस्टिंग पर जाने लगा तो जाने क्यों विभा का मन घबराने लगा।अनुज ने उसके आँसू पोंछते समझाया -फ़ौजी की पत्नी होते हुये तुम को इतना कमजोर दिल की नहीं होना चाहिए, तुम्हे तो हँस कर विदा करना चाहिए।”मै तुम्हारे बिना बहुत अकेली हो जाऊँगी

अनुज “विभा ने कहा। अनुज ने स्नेह से कहा -पगली मम्मी -पापा और अनु के होते तुम अकेली कहाँ हो, मै जल्दी आऊंगा।और वो जल्दी आया पर तिरंगे में लिपट कर। विभा अनुज को देख बुत बन गई. ईश्वर इतना निर्दयी भी हो सकता हैं। एक माह के वैवाहिक जीवन का ऐसा अंत..।

तभी अनुज के दोस्त ने एक अधूरा पत्र उसे पकड़ा दिया, जो अनुज उसे लिख रहा था।ढेरों प्यार और जज़्बात की अधूरी दास्तां…। अनुज के जाने के बाद विभा ने अनुज की तरह अनु का ख्याल रखने लगी। निर्मला जी और किशोर जी तो बेटे के गम में बेहाल थे पर विभा अनु पर पूरा ध्यान रखती।विभा ने अपनी डिग्री निकाली और जॉब की तलाश में जुट गई, परिवार के भरण -पोषण का सवाल था।

    कई दिन से अनु के हाव -भाव बदल रहे थे। विभा अनु को समझाने की कोशिश करती तो अनु निर्मला जी से एक का चार लगा देती।और निर्मला जी विभा पर बरस पड़ती। बेटे को खोने के बाद बेटी के प्रति अतिशय प्रेम में वो बेटी में परिवर्तन देख नहीं पा रही थी।

बेटी की गलतियों का भी खामियाजा विभा को भुगतना पड़ता। क्योंकि अनुज के शहीद होने की वजह वो विभा को ही मानती। ना अनुज विभा से शादी करता और ना वे अनुज को खोती। किशोर जी निर्मला जी को बहुत समझाते -अनुज देश के लिये शहीद हुआ हैं,

इसमें विभा की क्या गलती…?पर कहते हैं ना कि औरत ही औरत की दुश्मन होती हैं, सो यहाँ भी यही हो रहा था, निर्मला जी को अपने बेटे को खोने का गम हैं पर विभा से कोई हमदर्दी नहीं थी।

      ” भाभी मुझे छोड़ दो,बाहर डेविड मेरा इंतजार कर रहा हैं, दरवाजे के लॉक पर से विभा का हाथ हटाते हुये अनु बोली। “नहीं अनु ये गलती मत करो, माँ को तुम पर कितना विश्वास हैं, उसको मत तोड़ो”।विभा अनु का हाथ पकड़ते बोली,

पर अनु ने दरवाजा खोल लिया और विभा को धक्का दे दिया.। सामने डेविड बाइक पर बैठा था, अनु जा कर पीछे बैठ गई,डेविड ने अनु के हाथ में काला बैग देख पूछा -कैश लाई हो “तभी विभा बोल उठी -डेविड, रुक जाओ इस बैग से मैंने कैश निकाल दिया हैब,

साथ ही 100 नंबर पर कॉल कर दिया , पुलिस आती ही होगी, इतना सुनते ही डेविड बैग फेंक अनु को धक्का दे बाइक ले कर भाग खड़ा हुआ,।” जो तुम्हारे छोटी सी मुसीबत में साथ ना खड़ा हुआ वो आगे तुम्हारा क्या साथ देता अनु..?”अपमानित अनु को बात समझ मे आ गई।

घर के अंदर आते ही जैसे ही विभा ने ही दरवाजा बंद किया, खट से लाइट जल उठी। सामने निर्मला जी और किशोर जी खड़े थे।”कहाँ गई थी इतनी रात को “किशोर जी का स्वर गुस्से से कांप उठा। विभा कुछ बोलती उससे पहले ही निर्मला जी के कटु शब्द विभा के कानों में टकराये।

“मेरे बेटे को पहले ही खा गई अब ना जाने क्या गुल खिला रही अनु इसी के लक्छन सीख रही थी,खुद का कोई भविष्य हैं नहीं, मेरी बेटी की भी जिंदगी बरबाद कर रही “…विभा की कलाई पर दबाव पड़ा पर विभा ने उस हाथ को परे धकेल दिया। और अनु को कोने में छुपाने की कोशिश की ।


“बताती क्यों नहीं, कहाँ से आ रही हो “किशोर जी की दहाड़ती आवाज सुन विभा कांप गई। विभा जब तक कुछ बोलती, किशोर जी की नजर कोने में छुपी अनु और उस काले बैग पर पड़ी। सुबह से इसी काले बैग को ढूढ़ रहे थे, जिसमें उनकी एफ. डी. तुड़ा कर लाये पैसे थे।

विभा ने याचक दृष्टि से किशोर जी को देखा, किशोर जी समझ गये, गुस्से और खींझ से वहाँ से हट गये। निर्मला जी का बड़बड़ना चालू था “मैंने पहले ही अनुज को कहा था, मुझे इस लड़की का चाल -चलन ठीक नहीं लग रहा, पर ना अनुज ने मेरी सुनी ना आपने,

अनुज तो चला गया, आप ही भुगतो अब, चल निकल यहाँ से” कह निर्मला जी ने जोर से विभा को दरवाज़े के बाहर धकेलना चाहा, पर उनके हाथों को किसी ने कस कर पकड़ लिया।

“अरे अनु तू ” बेटी को देख निर्मला जी चौंक गई।”हाँ अनु ही हैं निर्मला, पहचान लो, विभा को कुछ मत कहो, तुम्हारी ही परवरिश ठीक नहीं, और चाल -चलन विभा का नहीं, अनु का खराब हैं। विभा का चाल -चलन और परवरिश तो बहुत अच्छी हैं,

तभी तो सबकी प्रताड़ना सह कर भी विभा यहीं हैं।, पूछो अपनी बेटी से कहाँ थी अभी तक..??अनु सर झुकाये खड़ी थी। पापा, अनु को अपनी गलती समझ में आ गई, आप उसे माफ कर दें, एक बार गलती सुधारने का मौका मिलना चाहिए।

किशोर जी ने अग्नेय नेत्र से निर्मला जी को देखा।निर्मला जी का सर शर्म से झुक गया।परायी लड़की के चाल -चलन पर ऊँगली आसानी से उठा दी, पर जब बात अपनी पर आई तो खामोश हो गई।वही परायी लड़की इस घर की इज्जत को बचाने की कोशिश कर रही।

पूरब दिशा में लाली फैल रही थी, सूर्योदय होने वाला हैं निर्मला जी चाय बना कर विभा के कमरे में ले आई, जहाँ विभा अनुज की तस्वीर के सामने बैठी अपलक अनुज को देख रही। सर पर हाथ फेरते निर्मला जी बोली -बेटा अपनी इस माँ को माफ कर दो,

मै अपने अनुज की अमानत की रक्षा नहीं कर पाई। “आपने रक्षा नहीं की पर भाभी ने भाई बन मेरी और इस परिवार की रक्षा की। सही मायने में भाभी इस घर की बेटा हैं।”अनु बोली, फिर विभा के गले लग बोली -अपनी इस नालायक बहन को माफ कर दो भाभी “। “तू सही कह रही “कह निर्मला जी ने विभा को गले लगा लिया। मन का मैल दूर हुआ तो रिश्ते खूबसूरत हो गये। दरवाजे की ओट में खड़े किशोर जी भी अपने आँसू रोक नहीं पाये।

 

       ” रक्षा ” एक खूबसूरत अहसास हैं, रिश्तों की रक्षा ही सुरक्षा कवच हैं। “

 

                      —संगीता त्रिपाठी 

#रक्षा 

 

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