बहुत ही जिद की थी अमृत ने मां से ,मां हमें भी एक बहन चाहिए । सब दोस्तों के पास है ,सब माथे पर लाल रंग का टीका लगाते हैं। अगले साल वह भी दोस्तों में खूब शान से माथे पर राखी का टीका,उसमें चावल के कुछ दाने जो मां ने नन्ही अनन्या से लगवाए थे दिखा रहा था। बहुत लाड़ लड़ाता था वो अनन्या से। अमृत की तो जैसे जीवन डोरी अनन्या से चलती और अन्नया भी उसे पूरी बहन गिरी दिखाती थी।भाई- भाई कर सारी बातें मनवाती थी।
त्योहार वाले दिन तो पूरा घर धमा चौकड़ी से भर जाता था। पूरा घर ढाय ढाय की आवाज से गूंजता रहता था जब मैं और अनन्या चोर पुलिस खेलते थे। तब मां और अमृत को नहीं पता था कि यह खेल और ये आवाज उनके दिल की गहराइयों में सदमे की तरह ठहर जाएगी ।अमृत की नन्ही अनन्या वायु सेना में कमांडर बन आकाश में बुलंदियों और हौसलों की उड़ान भर रही थी ।
वहीं अमृत आर्मी में मेजर बन देश को बहादुरी और हौसलों की नई कहानियां दे रहा था। अब घर में वह धमा चौकड़ी और मुस्कुराहटों के फव्वारे नहीं गूंजते थे। अनन्या के देखे गए सपने अमृत को सोने नहीं देते थे, नहीं चाहता था कि उसकी छोटी बहन अपनी जान हथेली पर रखे । जिस जान की मुस्तैदी से रक्षा करने का वादा वह दिल से दिया करता था और बदले में अनन्या भाई की बलाए अपने सर पर लेने का जिम्मा उठाती थी ।
वो नहीं चाहता था कि अनन्या उस जान को जोखिम में डाले। उसे लगने लगा ,अनन्या के लिए उसके सपने ज्यादा मायने रखते है। सपने अपनों से ज्यादा बड़े हो गए । अमृत की आंखें रात में डबडबाती और सुबह अनमनी सी जगती अब तक जहां अनन्या अपने दुश्मनों को कई बार धराशाई कर चुकी थी । वही अमृत की दुआओं में देश रक्षा के साथ अपनी नन्ही की रक्षा की प्रार्थना भी जुड़ गई। कई महीनों से भाई बहनों की मीठी तकरार बाकी थी। घर की रंगोली बिगाड़ने वाली धमाचौकड़ी भी नहीं हुई थी ।अमृत ने दिल की बेचैनी और भारी आवाज से अनन्या को फोन किया ।
“अब तक नाराज है नन्ही मुझसे, रक्षा कवच नहीं मिलेगा मुझे तेरा इस बार। इस बार आजा राखी पर”
कैसे मना करती अनन्या स्नेह की डोर जो बंधी थी भाई के साथ।
“पूरी कोशिश करूंगी अगर मैं ना आ पाई तो किसी से राखी बंधवा लेना ।
“राखी तो तेरे हाथ से ही बंधेगी बहना,अमृत बोला।
कुछ दिन बचे थे राखी के। अमृत की छुट्टी सैसंन हो चुकी थी । खुशी से झूमता हुआ वो घर पहुंचा और राखी के दिन का इंतजार करने लगा । पर उस दिन न्यूज़ में दुश्मनी सेना के हवाई हमले की खबर सुन बेचैन हो उठा था। भाई की चिंता थी वो बहन के लिए और यह चिंता व्यर्थ नहीं थी। राखी वाले दिन अनन्या घर तो आई तो पर चहकती हुई नहीं।
तिरंगे में लिपटी हुई । उसकी उड़ान थम चुकी थी। उसे फोन पर की गई बातें याद आने लगी, उसका दिल फूट फूट कर रोने लगा। अब राखी बांधने वाले हाथ ना थे, ना लड्डू ,दिए से सजी थाली थी। अमृत का दिल उसे कचोट रहा था। अगर छुट्टी ना लेता तो शायद शुरुआती जवाबी हमले में जो आर्मी से मदद मांगी गई थी उसमें अपनी बहन की रक्षा कर पाता वो। पर उसकी अनन्या से मिलने की चाहत उसका तो रक्षा कवच बन गया,वो लड़ाई में जाने से बच गया था ।
अमृत सोचने लगा अनन्या ने सच्चे दिल से मेरी बलाए अपने उपर ले ली थी और मैं अपनी बहन की रक्षा नहीं कर पाया। माँ और अमृत निर्जीव पड़ी अमृता को देख फूट फूट कर रोते रहे।
~तृप्ति शर्मा