रक्षाबंधन का वचन -शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

भागवंती और भगवान दास एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे।बड़ा भाई,भगवान दास अपनी बहन भागो को कंधे पर बिठाए घुमाए फिरता था पूरा गली-मोहल्ला।घर से किसी भी काम के लिए निकले,बहन भागो पहले से तैयार रहती। मां जानकी जी तंग आकर कहतीं कभी-कभी “क्यों रे,तू तो बड़ा है।ऊंट की तरह हो गया है,समझ अभी तक नहीं आई।वो छोटी है तुझसे,लाड़ करती है।इसका मतलब यह

थोड़ी है कि कंधे पर लादे जहां जाता है,साथ ले जाता है।अरे उम्र उसकी भी तो बढ़ रही है।ऐसी लड़की से कोई शादी करेगा भला?जो भाई के साथ पूरा बाजार घूमती रहती है।तेरे कारण उसके भाग फूट जाएंगे,मैं कहे देती हूं।वह तो तेरे अलावा किसी की सुनती भी नहीं।एक तो बापू ने सर पर चढ़ा रखा है,दूसरा तू रही -सही कसर पूरी कर देता है।ऐसे ही लक्षन रहे तो बिरादिरी से बाहर कर दिए जाएंगे हम।सुन रहा है ?या मैं ही बके जा रही हूं।”

अम्मा की बातें सुनकर,भागो का हांथ और कसकर पकड़ लेता भगवान और कहता”देखना तुम,रानी की तरह ब्याहूंगा इसे।पूरे बिरादरी के लोग देखते रह जाएंगे।मेरी भागो लाखों में एक है।वह ससुराल में रानी बनकर रहेगी,और मैं उसका रक्षक बनकर।”मां सिर पर हाथ रखकर कहती”हे नारायण,अब क्या यही दिन देखना बचा है?बहन -बेटी के घर का हम पानी भी नहीं पीते,और तू बहन की ससुराल जाकर वहीं रहेगा।नाक नहीं कटेगी हमारी?”

अब सच में भागो बड़ी हो रही थी।चौदह साल की हट्टी कट्टी भागो,चौबीस की लगने लगी थी।भगवान दास को अब दो चिंता सताने लगी।भागो के लिए अच्छा वर,और बड़ा घर।वह भी तो साथ आएगा,अपनी बहन के।जानकी जी पति से बोलीं एक दिन”कितने दिन बेटी को घर में बिठाए रखोगे?साथ की सारी सहेलियां ब्याह कर बस गईं।बस तुम्हारी भागो ही बची है।बिरादरी में तरह-तरह की

बातें होतीं हैं,भागो के बापू।लड़की का कन्यादान करके मुक्त होना नहीं है क्या? छोटी-छोटी करते-करते अब बड़ी हो गई है।तुम शुरू करो आस -पास के गांव में बात चलाना।एक बात और सुन लो,ये भगवान ना जाने पाए तुम्हारे साथ।नहीं तो हो चुकी शादी बेटी की।इतने मीन-मेख निकालेगा,कि

लड़के वालों के यहां से उल्टे पैर भागना पड़ेगा।”भाई-बहन के प्रेम से अनजान नहीं थे पिता,फिर भी भागो की शादी की बात चलाने साथ ले जाते।वो यह जानते थे कि बहन के लिए सबसे उचित घर-वर भगवान दास से अच्छा कोई नहीं देख पाऊंगा।छोटी बहन में उसकी जान बसती थी।

एक दिन दूसरे गांव आकर बड़ी सी कोठी, गाय-भैंस, तालाब, खेती-बाड़ी देखकर भगवान को यह तसल्ली हो गई कि यही वह घर है,जहां उसकी बहन रानी बनकर रह सकती है।लड़का प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाता था।तनख्वाह उस जमाने में ज्यादा नहीं  थी ,पर घर द्वार‌ से संपन्न था।

शादी तय समय पर धूमधाम से संपन्न हुई।विदाई के समय भगवान दास भी तैयार था,बहन के साथ जाने के लिए।तब मां ने समझाया” बहन की ससुराल में जाकर रहेगा,तो यहां हमें कौन देखेगा?तेरे बापू का काम में कौन हांथ बंटाएगा?कमाई नहीं करेगा,तो अपनी भागो को क्या दे पाएगा?”मन मारते हुए भगवान दास ने बहन को विदा किया।बहन के जाने से खाली पन काटता था उसे।अब भी खाना खाते समय भागो के हिस्से का मां से बोलकर निकलवा कर रखता।

समय बीतने के साथ भागो तीन बच्चों की मां बन चुकी थी।भगवान दास की भी शादी करा दी गई थी।बीमारी के चलते भगवान दास के पिता स्वर्ग सिधार गए।एक ही बेटा हुआ भगवान का।बेटे की हर जरूरत पूरा करते हुए कहते भगवान दास”मेरी जिंदगी और कमाई में सबसे पहला हक मेरी बहन का है।तुम बस उसका ख्याल रखना।राखी ,तीज,भाई दूज पर बुआ को जरूर याद करना।मेरी भागो,मेरा भाग है।मेरी सांसें जब तक चल रही हैं,मेरी बहन का सुख देखना है मुझे।”

भागवंती भी भाई से मिलने आती रहती थी।हर पूजा पाठ में पहली प्रार्थना भाई के लिए होती थी।भगवान‌ दास का बेटा जवान हो चुका था।मां जानकी ने अब बिस्तर पकड़ लिया था।पोते की शादी देख-सुन कर जान-पहचान की लड़की से करवा दी गई।शादी में बुआ अपने परिवार के साथ सिर पर नेंग की थाली रखकर पहुंची।

भगवान दास का अपनी बहन के प्रति अथाह प्रेम बहू को खलने लगा।दादी सास की बीमारी में सेवा करने से,मन उचट गया शीतल (बहू) का।

बहन को भगवान बनाना बर्दाश्त नहीं हो पाता था उससे।स्वभाव से तेज शीतल ने धीरे-धीरे पति के कानों में जहर घोलना शुरू कर दिया।इसकी शुरुआत मां बनते हुई।जानकी जी जा चुकी थीं।अब परिवार में भगवान दास,बेटा और बहू ही बचे।शालिनी ने बुआ के खिलाफ बेटे के मन में इतनी कड़वाहट भर दी कि, अब बेटे को बुआ के साथ-साथ पिता भी दुश्मन लगते। संपत्ति का बंटवारा भी पिता बुआ के नाम कर देंगे,ऐसा अंदेशा लगने लगा था उसे।

राखी आने वाली थी। वृद्ध भगवान दास उसी जोश और उत्साह के साथ बहन के आने की तैयारी कर रहे थे,तभी शालिनी(बहू)ने फरमान सुनाया”हमारे घर के हालात अब पहले जैसे नहीं हैं।मेरे बच्चे का हक मार कर आपकी बहन की खातिरदारी अब नहीं होगी मुझसे।जितना लुटाना था,लुटा चुके।अबसे उनका यहां आना बंद।अगर जाने का जी चले,तो जाकर मिल सकते हैं।फूटी कौड़ी नहीं देने दूंगी मैं।वहां बहन रानी बनकर रह रही है,यहां भाई का बेटा भिखारी हो गया।”

भगवान दास जी का कलेजा मुंह को हो आया।ये कैसी बात कर रही है?सालों का नाता है भागो से।वह तो राखी बांधे बिना रोटी खाएगी नहीं।यहां आकर यदि मेरी दयनीय दशा देखेगी तो टूट जाएगी।तुरंत एक निर्णय लेकर चिट्ठी लिख दी बहन को कि तीरथ करने जा रहें हैं इस बार पुराने मित्रों के साथ।राखी पर ना आए भागो यहां।पत्र पढ़कर बहन को कितना दुख होगा,इसका अंदाजा था उन्हें।बहू-बेटे की बुराई करना भी अधर्म था।भागो पहली बार राखी नहीं बांध पाई भाई को।

शालिनी बहुत खुश हुई कि उसकी चाल कामयाब हो गई।अब इस घर पर उसका एकक्षत्र राज्य रहेगा।आवभगत नहीं करनी पड़ेगी अब किसी की।मायके वालों को लाकर रख देगी,अपनी मदद के लिए।शालिनी का ससुर के प्रति रवैया बिगड़ता ही जा रहा था।भगवान दास जी का कमरा भी अब शालिनी की मां को दे दिया गया था।बरामदे की खाट पर पड़े रहते भगवान दास।उनसे मिलने की

अनुमति किसी को नहीं थी।बेटा महीने की पांच तारीख को आकर बस पास बैठता।पेंशन के कागजात पर अंगूठा लगवाने।अपनी लाचारी से ज्यादा भागो से ना मिल पाने का दुख खलता भगवान दास को।एक रात बिना किसी से कुछ कहे,निकल पड़े भगवान दास।तीन साल से बहन को देख नहीं पाए थे।ना ही राखी बंधवा पाए थे।एक वृद्धाश्रम में जाकर शरण ली भगवान दास ने।मंदिर के पास ही था वह

वृद्धाश्रम।पुजारी जी से जान-पहचान होने के कारण उन्हें वहां शरण मिलने में असुविधा नहीं हुई।बीमारी रहने वाले भगवान दास ने अब अपने शरीर और मन को संतुलित करना शुरू कर दिया।भागो से मिलना होगा,इस राखी में।ऐसे बीमार और असहाय दिखा ,तो मर ही जाएगी वह।अब मैं उसे यहां

बुला सकता हूं,राखी पर।उसके घर में अगर पता चला कि हमारे परिवार में क्लेस है तो,उसकी बड़ी बेइज्जती होगी।अब भगवान दास आश्रम की समस्त गतिविधियों में भाग लेते।खुश रहते। शारीरिक श्रम करते।महीने में तनख्वाह के रूप में कुछ पैसे मिलते थे।उन्हें जोड़-जोड़कर भागो को देने के लिए रखते रहे।

भाई की कुछ खबर नहीं मिल पा रही थी।ना ही फोन पर बहू बात करवाती,और ना ही भाई का खत आया।इस राखी भी भाई की कलाई सूनी रह जाएगी। सोचते-सोचते घर के आंगन में बैठी भागो भाई को याद ही कर रही थी कि,डाकिया चिट्ठी लेकर आया।भैया ने राखी पर बुलवाया है इतने सालों बाद।पर पता तो कहीं और का है।यहां कब चले गए सपरिवार।किसी ने कुछ बताया नहीं। ख़ैर,भागो ने भी अपने परिवार में किसी को कुछ बताना उचित नहीं समझा।पति गुजर चुके थे।दो बेटे-बहू थे।सब

अपने-अपने काम काज में लगे थे।भागो को पति की पेंशन मिलती थी हर महीने।पति के रहते ही घर की ऊपरी मंजिल किराए पर उठा दिया था,उसका पैसा भागो के खाते में ही आता था।दोनों बेटे बहू मां का ख्याल रखते थे।बड़े चाव से बच्चों को राखी पर भाई के पास जाने की बात बताकर भागो लग गई राखी की तैयारी में।चूरमा के लड्डू घी में बने पसंद थे भाई को।वही बनाकर राखी वाले दिन

अकेली ही पहुंची बस से भाई के पास।बेटों ने कहा भी कि कार से चलने को ,पर उन्होंने मना कर दिया।आश्रम के गेट पर पहुंचते ही भाई बैंच पर उसका इंतजार करता मिला।सालों बाद मिल रहे थे भाई -बहन। लिपटकर खूब रोए दोनों।भाई के आंसुओं ने सब व्यथा कह डाली।चूरमा के लड्डू साथियों को बांटते हुए कहा भगवान दास ने”देखो,मेरी भागो लाई है।मेरा भाग लेकर आई है साथ में।इस करुण विदारक दृश्य को देखकर आश्रम में उपस्थित सभी वृद्ध रोने लगे।संचालक ने और राखियों का इंतजाम किया।भागो ने सभी भाईयों को राखी बांधी।जिस भाई के कंधे पर बैठ बचपन

बिताया,आज उसी भाई के झुके असहाय कंधों को देखकर उसकी रीढ़ की हड्डी कांप गई।बचपन से लेकर जब तक सामर्थ्य था,भाई ने उसे अपने हिस्से की भी खुशी दी थी,बदले में उसने कभी कुछ नहीं दिया भाई को।अब वह उन्हें यहां नहीं रहने देगी।अभी साथ में लेकर जाएगी अपने घर।दोनों जीवन

भर साथ रहेंगे।राखी का नेंग पांच सौ रुपये पकड़ाकर भगवान दास जी ने कहा”रख लें अभी इतना ही।अगली राखी में तेरे आंचल में भर दूंगा मैं राखी का नेंग।जब तक मैं जिंदा हूं,तू मुझे यहीं आकर राखी बांधेगी ना?”

भागो ने भाई की कलाई माथे पर लगाते हुए कहा”अब तुम यहां नहीं रहोगे।चलो मेरे साथ अभी के अभी।विदाई के समय कहते थे ना,तेरे घर पर ही रहूंगा तेरे साथ।तब जमाने की रीत ने ऐसा नहीं होने दिया।अब हम दोनों को कोई अलग नहीं कर पाएगा भैया।मरते दम तक हम साथ रहेंगे।तुम्हें किसी से कुछ लेने की जरूरत नहीं।मेरा घर तुम्हारा भी है।तुम अधिकार से रहना मेरे साथ,अपनी भागो के

साथ।”भगवान दास जी ने तुरंत अपने आंसू पोंछे और कहा”पगली ,याद नहीं मां क्या कहती थी?बेटी के घर का पानी भी नहीं पीते हम।मैं तेरे घर आकर नहीं रह सकता।मां को वचन दिया था मैंने।पगली मैं यहां बहुत खुश हूं।देख मेरे जैसे कितने भाई यहां रहते हैं।कितनी बहनें हैं यहां।तू तो मुझे ले

जाएगी,पर इनका क्या होगा? इन्होंने मुझे बड़ा स्नेह दिया है।और देख,अब मैं पहले से ज्यादा स्वस्थ हूं।खूब पसीना बहाता हूं।भरपेट खाता हूं।पास के मंदिर की साफ-सफाई भी करता हूं मैं।तुझसे मिलना तो हो जाएगा हर राखी।मुझे साथ ले जाने की बात मत कह बहना।तेरे बेटे-बहू के सामने मैं बिचारा बनकर नहीं रह सकता,और ना ही मेरी वजह से तेरा अपमान होना देखा जाएगा।बच्चों की अपमान दृष्टि झेलना मौत से भी बदतर है।तू मुझे वचन दे आज,कि अपना ख्याल रखेगी।मेरी चिंता बिल्कुल नहीं करेगी।मेरे लिए अपने परिवार से नहीं लड़ेंगी।दे वचन आज।”

भागो ने भाई का माथा चूमकर दो वचन दिए।एक तो भाई को ,एक अपने आप को।शाम की बस से घर वापस आते ही बच्चों को बुलाया भागो ने।ख़ुद को दिए वचन को भी तो निभाना था,समय रहते।अपनी जमा पूंजी के नाम से जो भी था ,दोनों बेटों के नाम कर दिया भागो ने।बेटे कारण पूछते रहे ,पर भागो ने कुछ नहीं बताया।बहुओं को बुलाकर अपने गहने भी बांट दिए उसने।सभी आश्चर्यचकित थे

कि अम्मा क्यों ऐसा कर रहीं हैं?बड़े बेटे ने जोर देकर पूछा “अम्मा,ये सब क्यों कर रही हो?क्या परेशानी है तुम्हें?हम तुम्हारा ख्याल नहीं रखते क्या,जो सब कुछ बांटे दे रही हो?तुम कहीं जाने वाली हो क्या?तीरथ में जाना है,तो जाओ।ये सब कुछ अपना क्यों दे रही हो?कुछ तो बोलो अम्मा।”

बेटों को गले से लगाकर खूब आशीर्वाद देती हुई भागो बोली”अब मेरा इस संपत्ति से मोह छूट गया है रे।पैसा-पैसा करते ज़िंदगी निकल जाती है,अपने पीछे छूट जातें हैं।तुम लोग बहुत ध्यान रखते हो मेरा,इसमें कोई संदेह नहीं।मालूम है बन्ना इस दुनिया में मुझे सबसे ज्यादा प्यार मेरा भाई करता है

हमेशा से।उसने अपने हिस्से के सुख में से भी मुझे पहले दिया।आज वही असहाय होकर वृद्धाश्रम में रह रहा है। संपत्ति उसके पास भी ज्यादा नहीं तो कम भी ना थी।इसी संपत्ति के मोह में बेटे-बहू ने जीना दूभर कर दिया उनका।इतना मजबूर कर दिया कि बाप-दादा का घर छोड़ना पड़ा।धिक्कारती हूं मैं खुद को कि कुछ नहीं कर पाई उनके लिए।साथ में लाना चाहती थी ,तो मना कर दिया।वो नहीं

रह सकता बेटी के घर,पर मैं तो रह सकती हूं ना अपने भाई के संग। उम्र के इस आखिरी पड़ाव में मैं अपने भाई के साथ ही रहना चाहती हूं।कल को जब दोनों में से किसी की भी आंख बंद हो तो ,सामने रहे दोनों एक दूसरे के।यह वचन मैंने खुद को दिया है।कल स्वतंत्रता दिवस है ना।कल ही मैं घर छोड़ दूंगीं।मुझे मत रोकना अब।तुम लोगों को कसम है मेरी।मेरी आखिरी इच्छा समझ इसका मान रखना।

तुम लोगों के प्रति कोई असमंजस नहीं है मन में,पर मेरे भाई को आज मेरी असल में जरूरत है।जब तक विषय वस्तु से मोह नहीं छोड़ देती,बहन होने का कर्तव्य नहीं निभा पाऊंगी।अब हम जब तक जिएंगे,साथ में जिएंगे।ना कोई छोटा ना बड़ा।उस वृद्धाश्रम में बहुत सारे लोगों को अपनों को तरसते

देखा है मैंने।क्यों ना मैं अपने से जाकर उन्हें अपना बना लूं।तुम सब का जब मन करे अपनी अम्मा और उसके परिवार से मिलने आ जाना।बस अब संबंधों की दुहाई देकर मुझसे मेरे वचन निभाने का अधिकार मत छीनना।यह मेरा आखिरी फैसला है।”

अम्मा की बातें सुनकर सभी रो रहें थे।इस मतलबी दुनिया में भाई -बहन का ऐसा निःस्वार्थ प्रेम!यह तो जीवन भर की पूंजी है अम्मा की।अगले दिन आजादी का जश्न मना रहा था पूरा देश।भागो अपने बेटे -बहू के साथ वृद्धाश्रम पहुंची।संचालक महोदय से रजिस्टर मांगकर अपना नाम लिखवाया उसने।भाई से नहीं मिली तब तक।बरामदे में खूब सजावट की गई थी पन्नियों ,गुब्बारों से।झंडा फहराने की तैयारी

हो रही थी।भगवान दास खुशी -खुशी सारी तैयारियों में आगे थे।संचालक महोदय ने आकर कहा”आज झंडा फहराएगी,हमारी बहन भागवती।”भागो ने पहली बार तिरंगे की रस्सी को छुआ था।झंडा ऊपर जा रहा था ,और राष्टृगान गाया जाने लगा।बचपन में यही दृश्य भाई के कंधों पर बैठकर

देखा था।आज नई आजादी मिली भागो को अपने मोह से।अब वह यहीं सबके साथ ,अपने भाई के साथ रहेगी।कोई कड़वाहट नहीं है यहां।कोई दिखावा नहीं।कोई डर नहीं।आज सच्चे मायने में आजादी का स्वाद चखा था बहुतों ने।एक भाई ने,एक बहन ने,एक परिवार ने।

भाई -बहन को लिपटकर रोते देखकर, उस वृद्धाश्रम के सभी सदस्यों में रिश्तों के प्रति फिर से आशा जाग रही थी आज।भागो ने खुद को दिए वचन का मान रखने के लिए, अपने बच्चों को ढेर सारा आशीर्वाद देकर विदा किया।

तिरंगा दूर तक लहराते हुए दिख रहा था वापसी में बच्चों को।आज एक बहन ही नहीं जीत गई,एक भाई भी जीत गया।

शुभ्रा बैनर्जी 

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