राखी का तोहफ़ा – प्रेम बजाज

ये उन दिनों की बात है जब करोना की महामारी फैली थी और बहुत से लोगों की नौकरी भी छूट गई थी, हमारे पड़ोस में रहने वाले रमेश की भी नौकरी छूट गई,  जैसे-जैसे समय बीता थोड़ा सा कुछ जमापूंजी थी सब खत्म हो गया, खाने तक के लाले पड़ गए, 5-6 महीनों में बूरा हाल हो चुकी था, उस पर राखी का त्योहार आ गया, तो जानिए रमेश का हाल।

राखी का त्योहार आने वाला है और रमेश को चिंता है कि,”करोना की वजह से नौकरी चली गई घर का गुज़ारा मुश्किल से हो रहा है, बहनों को तोहफे कहां से दूं”

 

वह इसलिए  बहनों को राखी पर बुलाने को कतरा रहा था, मगर जब सामने से बहनों का फोन आया कि,” भाई कल हम लोग जल्दी आ जाएंगी, आप भी तैयार रहना, क्योंकि कल हम रूक नहीं सकती,हमें जल्दी वापिस भी घर पहुंचना है”  

रमेश की चिंता और बढ़ गई सोचने लगा अगर रूकती तो मौका देख कर समझा देता कि इस बार राखी का तोहफा नहीं दे पाऊंगा, अगली बार सब एक साथ दे दूंगा।

 

मगर बहने ये सोच रही है कि ज्यादा समय रूक कर भाई पर खाने-पीने का बोझ ना डाल कर जल्द ही अपने घर वापस चली जाएं, क्योंकि वो जानती है कि करोना की वजह से सब लोग कितने परेशान हैं। 

 

आखिर वो दिन आया, दोनों बहनें सुबह-सुबह पहुंच गई, राखी लेकर, रमेश रूआंसा सा राखी बंधवा कर  भीगे नयनों से जैसे ही बहनों से कुछ कहना चाहता है,  बहने उससे पहले ही भाई के हाथ पर तोहफा रखते हुए,” भाई बहनें सारी उम्र लेती है भाई से, लेकिन कभी भाई को ज़रूरत पड़े तो क्या बहनों का फर्ज नहीं कि वो भाई को तोहफा दें, राखी केवल भाई से तोहफा देने के लिए नहीं, ये प्यार के धागे होते हैं, जो होते कच्चे हैं, मगर बांधते पक्का हैं”

रमेश की ऑंखें बहनों का ऐसा प्यार देखकर छलक जाती है,” जुग-जुग जिओ मेरी प्यारी बहनों, आज मेरी छोटी बहनें बहुत बड़ी हो गईं हैं”

भाभी ने भी दोनों बहनों को गले से लगा लिया।

सब की ऑंखों में आज खुशी के ऑंसू हैं।

 

प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर)

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