राजयोग – गरिमा जैन

आज कितने दिनों के बाद रचना से मुलाकात हुई, दिनों नहीं सालों कह सकते हैं। स्कूल टाइम में तो वह कितनी तेज तर्रार लड़की हुआ करती थी। हर चीज में आगे। हम उसे ऑलराउंडर कहकर बुलाते थे। हंसी मजाक करना तो कोई रचना से सीखता। छोटी-छोटी बातों पर ऐसे चुटकुले,

ऐसे जुमले कस देती कि हंसते-हंसते हम सब लोटपोट हो जाते। बर्थडे पार्टी की तो वह शान थी। जिस पार्टी में भी जाती उस पार्टी में चार चांद लग जाते ।पढ़ाई लिखाई में तेज, खेलकूद ने आगे, मन ही मन हम सब रचना जैसे ही बनना चाहते थे फिर वह पढ़ने के लिए बाहर चली गई और हम सब अपनी अपनी जिंदगी में अलग-अलग राहों पर चल दिये।

आज ना जाने कितने सालों के बाद रचना से मिलना हो रहा है ।किसी काम से मैं दिल्ली आई हुई थी। रचना को फेसबुक पर कांटेक्ट किया उसने अपना एड्रेस भेज दिया तो मिलने का प्रोग्राम फिक्स हुआ। मैंने उससे पूछा कि मैं किस समय आ जाऊं तुम्हारे लिए आसान रहेगा। उसने कहा कि वो तो दिन भर खाली है जब  मन हो आ जाओ।

मैं लगभग 3:30 बजे उससे मिलने पहुंची ।बड़ा आलीशान बंगला था उसका ,मेन रोड ,पॉश एरिया  । चार चार गाड़ियां खड़ी ।तभी मुझे अपना छोटा सा घर याद आया ।मुझे  अपने घर से कोई शिकायत नहीं थी लेकिन अपनी सहेली को इतने राजसी ठाट बाट के साथ रहता देख कर मन में खुशी भी हुई और कहीं एक टीस भी उठी।

मैंने दरबान से कहा कि  रचना मैडम को बता दें कि उनकी सहेली मीना उनसे मिलने आई है। दरबान ने तुरंत दरवाजा खोला और मुझे ड्राइंग रूम में बैठा दिया। ड्राइंग रूम क्या था एक बड़ा सा हॉल था जिसमें नाना प्रकार के ऐसे आलीशान साज सज्जा के समान थे

तो शायद जिंदगी में मैंने देखे ही नहीं थे। सबकुछ ऐसा चमक रहा था कि पूछिए मत। सोफे नर्म मुलायम ,दीवारों पर एक से एक पेंटिंग लगी, मुझे तो ऐसा लग रहा था कि अगर मैं किसी चीज को छू भर दूंगी तो वह चीज गंदी हो जाएगी। मुझे अपनी सहेली पर बड़ा नाज हुआ कितने अच्छे से उसने अपने घर को सजा सवार के रखा है।

अभी तक वो वैसे ही एक्टिव बनी हुई है।

तभी सामने से रचना आ रही थी। उसे देखकर पल भर को मैंने पहचाना ही नहीं। रचना बिल्कुल बदल चुकी थी। देखने में वह अपनी उम्र से बहुत बड़ी लग रही थी। स्थूल शरीर खिचड़ी बाल,निस्तेज चेहरा, आंखों के चारों तरफ झुर्रियां। मैंने रचना को देखकर पूछा

” तुझे क्या हो गया “

उसने कहा क्यों, क्या हो गया?


गले में हीरो का हार,कान में हीरे के बूंदे,अंगूठियां  लेकिन उसके चेहरे पर यह हीरे जवाहरात चमक नहीं ला पा रहे थे। उसकी आंखों में एक सूनापन था। मैंने उससे पूछा

“और बता क्या हाल-चाल हैं “

“सब बढ़िया है देख तो रही है, मैं कितने सुख से रह रही हूं”

कहकर उसने एक अजीब  फीकी सी हंसी हंस दी।10 मिनट के अंदर नाश्ता लग गया। बेहतरीन कॉफी, क्रोकरी के तो क्या कहने, नाश्ता इतना अच्छा जैसे फाइव स्टार होटल में सर्व होता है। मैंने थोड़ा बहुत  खाया फिर मैंने रचना से अपनी जिंदगी के बारे में बात करनी शुरू की ।थोड़ी देर में हम खूब हंसी मजाक करने लगे। रचना मुझसे कहने लगी ना जाने वह कितने दिनों के बाद आज खुलकर हंसी है ।मैं उसका चेहरा देखने लगी ।

क्यों, क्यों नहीं हंसती है अब तू ?

उसने कहा किसके साथ हसू, अकेले दीवारों के साथ?

” क्यों तेरे पति “

” उनको तो मेरे लिए समय ही नहीं है”

” और बच्चे”

बच्चे ,बच्चे अब बड़े हो गए हैं ।अभी टीना कॉलेज से आती होगी तुम भी मिल लेना ।

मैंने कहा “टीना कॉलेज से आ रही है तो उसके लिए कुछ खाना नहीं बनाएगी तू “बोल कर मुझे अपने कहने पर अफसोस हुआ ,भला रचना भी खाना बनाती होगी ?उसके यहां तो कुक की फौज है ।एक मुझे अपना हाल याद आया, जब बच्चे स्कूल से आने वाले होते हैं और पति ऑफिस से किचन में बुरी तरह काम फैला होता है। एक पल को सांस लेने की फुर्सत नहीं होती। एक तरफ कुकर सीटी मार रहा होता है तो एक तरफ सब्जी पक रही होती है। उधर फ्रिज में रायता बनाकर रखना होता है ।मेरी तो हालत बुरी रहती है।

रचना की जिंदगी कितनी आरामदायक है। बच्चे स्कूल से आने वाले हैं पर उसे कोई चिंता नहीं। पति बाहर काम से गए हुए हैं ,जिंदगी में कितना समय है उसके पास ।मैंने फिर रचना से कहा ‘अगर तुम खाली बैठी हो तो चलो आसपास की मार्केट घूम आते हैं ,मुझे भी दिखाओ तुम्हारे घर के आस-पास कौन सी मार्केट है ।रचना एक उदासी भरी सांस लेकर बोली “मार्केट गए हुए कई दिन हो गए लेकिन तुम आई हो तो तुम्हारे साथ जरूर जाउंगी ।हम बाहर कॉपी भी पिएंगे। बहुत दिन हो गए ।अभी जब लास्ट बार दोस्तों के संग किटी पार्टी में गई थी बस तभी बाहर निकली थी। कोई महीना भर होने को आ गया ।


महीना भर मैं मन ही मन सोचने लगी ।यहां तो रोज घर के काम खत्म करके बाजार जाना ही जाना है। कभी चाय की पत्ती नहीं है, कभी चीनी ,कभी सब्जी खत्म है कभी फल । मैं कुछ रचना से बोल नहीं पाई । हम लगभग 4:15 बजे घर से निकल गए ।मैंने उससे पूछा तुम्हारी बेटी टीना आएगी तुम घर पर नहीं मिलोगी तो उसे कैसा लगेगा । खाना तो तुम्हारे कुक बना देंगे पर बच्चे तो मां को ढूंढते हैं। उसने मेरी तरह बड़े गौर से देखा और पूछा

“क्या तेरे बच्चे अभी भी तुझे पूछते हैं ?

मैंने कहा ‘दुनिया भर की बातें बतानी होती है। स्कूल कॉलेज से आकर किसने क्या कहा किस टीचर ने कैसे मजाक किया। किस बच्चे को सजा मिली यह सब सुन सुन के लगता है मैं भी अपने स्कूल वापस लौट आई हूं।”

रचना ने कहा यह सब चीज तो बच्चों ने उसे सालों पहले ही बताना छोड़ दी ।आते हैं खाना कभी खाते हैं कभी नहीं खाते अभी बाहर से खाते हैं ।सीधे अपने कमरे में चले जाते हैं और दरवाजा बंद। मुझे सुनकर बड़ा अजीब लगा। किसी को रचना की जरूरत नहीं है ।क्या उनकी जिंदगी में अपनी मां की कोई अहमियत नहीं।

मैंने कहा तुम्हारे पति !

वह सिर्फ जाते समय बता देते हैं कि वह तीन-चार दिन के लिए बाहर जा रहे हैं।

” और उनका सामान “मुझे बोलकर फिर  अफसोस हुआ। रचना के घर पर  नौकरों की फौजों है तो कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं ।उसने कहा वह सब सामान  तो खुद ही पैक कर लेते हैं। रोज ही ट्रैवल करना रहता है ।

“फिर भी क्या उन्हें तुम्हारी जरूरत नहीं पड़ती।”

रचना ने कहा किसी को भी उसकी जरूरत नहीं है बस वह एक सामान की तरह घर में रखी रहती है। कहीं पार्टी में जाना होता था तो पहले उसके पति उसे ले जाया करते थे अब वह भी लेकर नहीं जाते ।अकेले ही चले जाते हैं। बच्चे अपने दोस्तों के संग घूमते है।

 मैंने कहा” तो क्या तेरे दोस्त नहीं हैं “


दोस्त तो है, किटी पार्टी भी है पर सबसे औपचारिकता वाली दोस्ती है। कोई जिगरी दोस्त नहीं बना रे तेरी तरह मीना। अपनी दोस्ती कितनी अच्छी थी। हम दिल की बातें एक दूसरे से शेयर कर लिया करते थे पर अब मेरे साथ ऐसा कोई दोस्त नहीं है ।सब दिखावटी समाज है यहां ।

थोड़ी देर में हम पास के मॉल में पहुंच गए। हम दोनों ने खूब मस्ती की। चुस्की वाली आइसक्रीम खाई, चॉकलेट शेक पिया। रचना खूब हंस रही थी बिल्कुल वैसे जैसे बचपन में हंसा करती थी। हम लोगों ने पीछे सालों की कई बातें एक दूसरे से शेयर की और खूब लोटपोट हुए । जब हम घर वापस आए मुझे वापस लौटना था ।शाम के 9:00 बजे कि मेरी ट्रेन थी। रचना ने कहा कि वह मुझे स्टेशन तक छोड़ने अवश्य आएगी पर मैंने कहा नहीं , मैंने कैब बुक कर रखी है तुम तकल्लुफ ना करो ।

जब हम घर पर पहुंचे जो उसकी  बेटी बेटा सब घर पर ही थे लेकिन ना कोई उससे मिलने आया ना मुझसे। घर में एक अजीब सा सन्नाटा था। लगता था अगर खास भी दो तो दीवारें गूंज उठेगी ।मैंने कहा रचना तू गाना क्यों नहीं सुनती ।पहले तू कितना गाना सुनती थी। अरे गाना मन ना करे भजन ही सुन लिया कर पर कुछ घर में चहल-पहल तो हो। घर में जैसे वीरानी छाई है ।मैंने उसका मोबाइल उठाया और एक अच्छा सा गाना बजा दिया ।रचना मंत्रमुग्ध होकर सुनने लगी। गाने से सुनसान पड़े घर में एक जिंदगी आ गई। रचना ने मुझसे कहा मीना तू सोचती होगी तेरी दोस्त की जिंदगी बड़ी सुखद है, बड़ी अच्छी है लेकिन मैं सच बताऊं तेरी जिंदगी मुझसे लाख गुना अच्छी है, तेरे बच्चे तुझे पूछते हैं, तेरा पति तेरे बिना खाना नहीं खाता ,वह जो भी काम करते हैं उसमे तेरी सहमति जरूरी है ।तेरे हाथ में घर की बागडोर है ।मेरे हाथ में तो कुछ भी नहीं रहा। मैंने उससे कहा रचना यह सब तेरी ही गलती है। तूने अपने हाथ से क्यों सब  निकल जाने दिया ।तूने अपना चौका क्यों छोड़ दिया? अपने पति के लिए सामान पैक करना क्यों बंद कर दिया? तू कसम खा हमारी दोस्ती की आज से तू चिकन में जाकर कुछ ना कुछ अपने परिवार के लिए रोज बनाएगी भले वे खाये या नही।तेरे पति जब भी बाहर जाएंगे तो रोज उनसे खैर सलामत जरुर पूछेगी अगर वह अच्छे से बात नहीं करेंगे तब भी तू पूछेगी ।लौटने पर उनके साथ समय बिताने की कोशिश कर ।तू घर का पड़ा कोई पुराना सामान नहीं है यह तेरा परिवार है और तेरा परिवार  टूटा नहीं है सिर्फ थोड़ा बिखर गया है, तुझे ही उसे वापस जोड़ने  की जरूरत है और तू यह कर सकती है। भगवान ने तुझे तीव्र बुद्धि दी है एक चुस्त-दुरुस्त शरीर दिया

था तुझे सिर्फ जरूरत है खुद को फिर से वापस खड़ा करने की ।

जब रचना मुझे विदा देने दरवाजे तक आई तो उसके चेहरे पर हीरो की चमक आ चुकी थी ।वह गले लगकर मुझसे जोर से रोने लगी। उसने कहा मीना अगर तू आज ना आती तो मेरी जिंदगी यूं ही खत्म हो जाती। मैं सच में घर का  कोई फर्नीचर नहीं मैं एक इंसान हूं ।देखना अगली बार जब तुम मुझसे मिलने दिल्ली आएगी तो तुझे एक नई रचना मिलेगी। मैंने उसे कस के गले लगाया और हम दोनों मुस्कुराते हुए एक दूसरे से विदा हो गए।

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