रज्जो चार वर्षों से हमारे घर काम कर रही थी।ज्यादातर नियत समय पर आना और पूरी निष्ठा से काम करना… हम सब उससे बहुत प्रसन्न रहते थे। हमारी पुरानी विश्वासी मेड ने उसको रखवाया था,”मैडम जी, ये रज्जो है। नई नई गाँव से आई है। अब मैं थक चुकी हूँ…बहू काम करने से रोक रही है। मेरी जगह ये करेगी।आपको कोई शिकायत का मौका नही देगी।”
वो सोच में पड़ गई,”अभी नई नई आई है। ठीक है पर समय बड़ा खराब चल रहा है… इसकी गारंटी कौन लेगा?”
“मैं हूँ ना इसकी गारंटर…इसका आधार कार्ड”
कह कर वो हँसने लगी और उस दिन रज्जो यानि राजरानी को उनके घर का सब काम समझा कर चली गई। और सच में उसने सारा काम बखूबी सम्हाल लिया था और धीरे धीरे अगल बगल की भी दो कोठियों में काम पकड़ लिया था।
उस दिन उनकी तबियत थोड़ी ढ़ीली थी। कॉलेज जाने का मन नहीं हुआ। चुपचाप लेटी ही थी, तभी रज्जो आ गई,”क्या मैडम जी, आज लेटी हुई हैं। खूब कड़क मसालेदार चाय लाती हूँ…आज मैं भी आपके साथ पी लेती हूँ…रोज तो अकेली ही पीती हूँ।”
चाय लेकर वो भी पास में पसक्का मार कर बैठ गई।
“एक बात बता। ये इतना सुंदर नाम …राजरानी… इसको किसने इतना घिस कर छोटा कर दिया?”
“क्या बताऊँ मैडम जी! अम्माँ तो दुलार से राजरानी ही बुलाती थी। बहुत बार कहती भी थी…ये तो सच में राजरानी ही बनेगी।”
“तो फिर”
उन्हें भी आनन्द आने लगा था।
“तो फ़िर क्या कहूँ। इनसे ब्याह हो गया… इन्होने ही मेरा नाम घिस कर आधा कर दिया।”
उन्होनें रस लेते हुए फिर सवाल दाग दिया,”क्यों भला??”
“वो हुआ यूँ , एक दिन ये बोले… तू काहे की राजरानी है…रज्जो बोलने में आसानी भी है और मन का लाड़ दुलार भी टपकता है।” कहने को तो बोल गई पर शरमा कर कप उठा कर भागने लगी पर उन्होनें हाथ पकड़ कर बैठा लिया।
“और बता, तेरा आदमी क्या करता है?”
“काम करता है मैडम जी।”
वो हँसकर बोली,”हाँ भई हाँ। काम तो करता ही होगा पर क्या काम करता है।”
“मैडम जी, घर का सारा काम करता है। दो छोटे बच्चे हैं… उनको देखता है… तैयार करके स्कूल भेजता है और जब मैं थकहार कर घर पहुँचती हूँ तो लाख मना करने पर गर्मागर्म चाय भी पिलाता है।”
वो आश्चर्य से बोली,”अच्छा!!!! इतना सब करता है और तो और तुझे चाय भी पिलाता है।”
“जी मैडम, मना करती हूँ तो कहता है… इतना थक कर आई है। मेरे हाथ की कड़क चाय तेरी थकान उतार देगी।”
“वो सब ठीक है पर तू सारे दिन खटती है। वो बाहर काम क्यों नही करता?”
“शुरु में उसे काम नही मिला। मैं शांति बाई के कारण तीन चार कोठियों में जम गई। फिर घर व बच्चे कौन देखता… मैं अच्छा कमा ले जाती हूँ…वो उधर सब सम्हाल लेता है। अब तो शर्मा जी की कोठी में नाइट गार्ड का काम भी मिल गया है।”
बताते हुए संतोष की गहरी छाया उसके साँवले चेहरे को भी लाल कर गई और उन्होनें उसके सिर हाथ फेर कर कहा,”तू तो अपने नाम के अनुरूप सच में राजरानी ही तो है री।”
नीरजा कृष्णा
पटना