राधा जिज्जी – अनुपमा

राधा दीदी जरा गोलू को संभाल लो बहुत परेशान कर रहा है बड़की बहु की आवाज से राधा गोलू को गोदी मैं उठा ही रही थी की पीछे से मानसी पूछ बैठी दीदी क्या बनेगा खाने मैं आज ? राधा ने उसको कहा जो भी हो उसी हिसाब से बना लो यही रहता था उसका रोज एक ही जवाब फिर भी मानसी को जैसे आदत ही हो गई थी पूछने की ।

वैसे इस घर की धुरी है राधा जिज्जी ,छोटे से बड़ा हर किसी को कुछ चाहिए ,कुछ पूछना हो , कुछ काम हो सब बस राधा जिज्जी राधा जिज्जी ही करते थे ।

राधा जिज्जी का ब्याह तेरह साल की उम्र मैं हो गया था ,ओर उनका पति सोलह की उम्र मैं ही चल बसा था ।पिता जी ने उन्हे ससुराल मैं नही छोड़ा ,अपने साथ घर वापस ले आए थे और उनको कभी पराए होने का एहसास नहीं होने दिया ,घर मैं भी सभी को हिदायत दी की राधा जिज्जी पूरे सम्मान के साथ इस घर मैं रहेंगी और अगर किसी ने कभी उन्हे सुनाने की या कुछ गलत कहने की कोशिश भी की तो वो अपना इंतजाम कहीं और कर सकता है । उनका बहुत छोटी उम्र मैं ब्याह करा देने का दुख पिता जी को जीवन भर सालता रहा ,वो भी क्या ही करते गांव का जीवन ऐसा ही होता था ।


आज राधा जिज्जी पिचहतर साल की हो गई है , घर के बड़े छोटे ,आए गए सबका ध्यान राधा जिज्जी ने रखा और सभी ने राधा जिज्जी का भी ध्यान रखा ।

राधा जिज्जी सिर्फ राधा जिज्जी नही थी वो तो खजाना थी और वो भी खुला खजाना , खाने बनाने का हुनर , सिलाई कढ़ाई का हुनर और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण जिंदगी का अनुभव ने उन्हे इतना परिपक्व बनाया था की हर कोई अपनी बातों को सिर्फ उनसे साझा करना चाहता था , कोई सलाह चाहिए तो राधा जिज्जी कहां है पूछता हुआ घर चला आता था ।

राधा जिज्जी के पड़ोस मैं ही शालू नई नई बहू बन कर आई थी , शहर की थी थोड़ी मॉर्डन थी ,शायद घर मैं काम किया नही होगा कभी ,खाना भी बनाना नही आता था , रोज पड़ोस से शालू और उसकी सास की चिक चिक की आवाज आती रहती थी सास चाहती थी बहु घर संभाले काम करे और बहु से तो अभी मुलाकात भी नही हुई थी तो क्या बताए की क्या चाहती थी ।

एक दिन सुबह सुबह दरवाजे पर कार खड़ी देखी जीज्जी ने पड़ोस के ,पता चला की बहु ने बुलवाई है वो वापिस शहर जाना चाहती थी ,गांव मैं रहना ही नही चाहती थी , जिज्जी ने मानसी को बुला कर कहा जाओ तो जरा नई बहू का न्योता कर आओ खाने का , मना करे तो कह देना खाने के बाद चली जाना शहर , 


सो दोपहर को पड़ोसन नई बहू को लेकर आ गई जिज्जी के घर , नई बहू पहली बार गांव मैं किसी और के घर गई थी , सब तरफ घूम घूम कर देख रही थी की घर मैं हर तरफ हर चीज कितनी व्यवस्थित तरीके से रखी हुई है , बच्चे होते हुए भी न कोई शोर है ना कोई हुडदंग और कितनी शांति है , रसोई मैं तीन लोग बिना आवाज किए खाना बना रहे है ,नई बहू को ये सब बहुत अचरज भरा लग रहा था क्योंकि उसके घर मैं तो ऐसा कुछ भी नही था । 

तभी वो राधा जिज्जी की तरफ उनसे मिलने को गई तो देखा राधा जिज्जी और उसकी सासु मां जी बातें कर रहे थे वो छुप के वहीं खड़ी रही । राधा जिज्जी से उसकी सासु मां बस यही बोल रही थी की कुछ आता ही नहीं इसको अभी कोई काम ठीक से नहीं करती है ।तभी राधा जिज्जी की आवाज शालू के कानों मैं पढ़ती है वो कहती है अच्छा ये तो बताओ कमला जब तुम ब्याह होकर आई थी तो कितना काम आता था तुमको ,तुम तो गांव की थी तुम्हारी बहु तो शहर की है पढ़ी लिखी है , धीरे धीरे सब आ गया न तुमको , शालू को भी तुम धीरे धीरे सिखाओगी तब सब सीख जायेगी अभी से वो क्या ही कर पाएगी जब की उसे तुम्हारे परिवेश का कुछ पता ही नही है , वो तो जल्दी ही सीख जायेगी शहर की है पढ़ी लिखी बच्ची है ,अपना सासपना कम करके जरा बेटी समझ के सिखाओ उसे फिर देखो ।

पीछे से मानसी को आता देख शालू एकदम से झेंप गई और राधा जिज्जी के पास जा बैठी , और उनसे बातें करने लगी , सासु मां को राधा जिज्जी के इशारे पर मानसी साथ लिवा ले गई , बातों बातों मैं राधा जिज्जी ने शालू से कहा बेटा तुम तो शहर की पढ़ी लिखी समझदार लड़की हो , छोड़ कर जाना समाधान नहीं होता है , तुम्हारी जैसे लड़कियां गांव आयेगी तो गांव के बच्चियों का भविष्य भी संवरेगा ,जो कुछ तुम्हे आता हो वो तुम यहां के बच्चों को सीखा सकती हो , और घर चलाने मैं क्या है जब गांव की बिना पढ़ी लिखी लड़कियां इतने अच्छे से ये सब कर लेती है तो तुम तो बहुत ही समझदार हो । शालू को राधा जिज्जी की बात समझ आ चुकी थी और वो अब समझ चुकी थी की उसे क्या करना है ।

राधा जिज्जी भी सिर्फ घर की ही नही पूरे गांव की जिज्जी की जिम्मेदारी दिल से निभा रही थी यूं ही तो नही पूरा गांव उन्हे जिज्जी जिज्जी बुलाता फिरता था ।

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