राखी की सुबह थी। सूरज की किरणें खिड़की से झांक रही थीं, मानो चांदी के धागों को सुनहरे रंग में रंगने आई हों। लेकिन मिष्टू के कमरे का माहौल उतना उज्ज्वल नहीं था। दस वर्षीया मिष्टू, जिसके चेहरे पर आमतौर पर चावल के दाने जैसी मासूम मुस्कान खिली रहती थी, आज बिल्कुल बादलों से घिरे पहाड़ जैसी लग रही थी। उसकी नज़रें, अपनी टेबल पर रखे सुनहरे रिबन से सजे छोटे से
उपहार के डिब्बे और उसके ठीक सामने, उसके तीन वर्षीय भाई इबू पर अटकी थीं। इबू, जो क्षण भर पहले ही उसकी बहुमूल्य बार्बी डाल को ‘गेंद’ समझकर फेंकने की कोशिश कर रहा था, अब उसकी मैथ की नोटबुक के पन्नों पर टूटी क्रेयॉन से जंगली सी आकृतियाँ बना रहा था।
मिष्टू गहरी सांस लेकर, आँखें मूंदकर बोली “भगवान जी… ये क्या लाकर दे दिया आपने?”
उसके मन में उस दिन की याद ताजा हो आई जब उसने मंदिर में जाकर, दीये जलाकर, अथक प्रार्थना की थी – एक छोटा, प्यारा भाई या बहन चाहिए था उसे। कोई जिसके साथ खेले, बातें करे, जिसकी रक्षा करे। भगवान ने उसकी सुन ली, और इबू उनका घर आया – गुलाबी गालों वाला, आंखों में चंचलता भरा एक नन्हा उपहार। पहले दिन से ही मिष्टू का दिल इबू के लिए पिघल गया। उसकी
हर छोटी-बड़ी ज़रूरत का ध्यान रखती, उसे सुलाती, कहानियाँ सुनाती उसकी नैपी बदलती । लेकिन जैसे-जैसे इबू बड़ा हुआ, उसकी चंचलता ‘चुनौती’ में बदलने लगी। उसकी चित्रकारी अक्सर मिष्टू की किताबों तक पहुँच जाती, उसके स्केच पैनगायब हो जाते, और उसकी नींद इबू की रात भर चलने वाली ‘गाड़ी-गाड़ी’ की आवाज़ों से टूट जाती।
मिष्टू नेअपनी नोटबुक को बचाते हुए कहा , आवाज़ में रोष था -“इबू! बस करो! ये मेरी नोटबुक है! तुम्हारी ड्राइंग बुक नहीं! हटो यहाँ से!”
इबू ने चौंककर सिर उठाते हुए देखा , बड़ी-बड़ी निर्दोष आँखें फैलाकर कहा”दीदी… कार बना रहा था… देखो ना!” उसने क्रेयॉन से भरे हाथ से नोटबुक के पन्ने की ओर इशारा किया, जहाँ एक अजीबोगरीब आकृति बनी थी।
मिष्टू का धैर्य जवाब दे गया। उसने नोटबुक उठाई और तेजी से अपनी माँ के पास रसोई में पहुँची, जहाँ राखी के लिए हलवा बनाने की तैयारी चल रही थी। उसकी आँखें नम थीं।
मिष्टू:(आवाज़ काँपते हुए) “मम्मा! ये देखो इबू ने क्या किया और मान भी नहीं रहा है! मैंने भगवान से प्यारा सा भाई माँगा था, ये… ये तो टॉर्नेडो है! रोज़ मेरा सामान तोड़ता है, मेरी नींद खराब करता है, मेरी किताबें खराब करता है!”
माँ: ( गैस से कड़ाही उतारते हुए, मुस्कुराते हुए) “अरे बेटा, ये तो सभी छोटे भाई करते हैं। तुम भी तो छोटी थी, तुमने भी तो…”
मिष्टू:(बीच में ही टोकते हुए, जोश से) “नहीं मम्मा! मैंने कभी इतनी शैतान नहीं थी ! मैंने तो सिर्फ़ एक छोटा सा, प्यारा भाई माँगा था, जो मेरे साथ खेले। ये तो मेरा सारा खेल बिगाड़ देता है! ये गलत आइटम आ गया है! ऑनलाइन रिटर्न क्यों नहीं है भाई? मुझे रिफंड चाहिए! पूरा रिफंड! इस टॉर्नेडो को वापस ले लो!”
माँ का मुस्कुराना और गहरा गया। वह मिष्टू के पास आई, उसके कंधे पर हाथ रखा, और उसे एक कुर्सी पर बैठाया।
माँअत्यंत कोमल स्वर में बोली “बेटी मिष्टू, क्या तुम्हें याद है जब इबू पैदा हुआ था? अस्पताल से घर आया था, छोटा सा ? तुम उसके पास घंटों बैठी रहती थी, उसे हिलाती थी, उसके छोटे-छोटे हाथों को देखकर मुस्कुराती थी।”
मिष्टू ने झुंझलाहट से भरा चेहरा बनाया, लेकिन माँ की बातों ने उसके मन में एक धुंधली सी याद जगा दी – नन्हे इबू की मीठी खुशबू, उसका छोटू सा हाथ पकड़ना।
माँ ने बात जारी रखते हुए कहा “और क्या तुम्हें याद है जब उसने पहली बार ‘दीदी’ बोला था? तुम्हारे चेहरे पर जो चमक आई थी, वो तो सूरज को भी मात दे देती थी।”
मिष्टू की आँखों की चमक धीरे-धीरे वापस आने लगी।
माँ: “हाँ बेटा, वो तुम्हें तंग करता है। वो तुम्हारे सामान को अपना समझता है क्योंकि तुम उसके लिए दुनिया हो। वो तुम्हारा ध्यान खींचना चाहता है, हमेशा। क्योंकि उसकी दीदी उसके लिए सबसे कूल, सबसे प्यारी, सबसे महत्वपूर्ण है।” माँ ने मिष्टू की ओर देखा, उसकी आँखों में गहरा प्यार और समझ थी। “और रिफंड की बात… बेटी, प्यार कोई ऑनलाइन ऑर्डर नहीं है जिसका एक्सचेंज या रिटर्न हो।
प्यार तो एक बीज की तरह होता है। हम उसे बोते हैं, पानी देते हैं, धूप दिखाते हैं। कभी काँटे भी आते हैं, तूफान भी आते हैं। पर उन कठिनाइयों को सहकर, धैर्य से देखभाल करने पर ही वो बीज एक सुंदर, मजबूत पेड़ बनता है। इबू तुम्हारा बीज है, मिष्टू। अभी वो छोटा है, उसे तुम्हारे प्यार और धैर्य की ज़रूरत है। तुम्हारी नोटबुक तो नई ली जा सकती हैं, पर एक भाई का प्यार, उसका तुम्हारे प्रति भरोसा… वो अनमोल है, अदला-बदली के बाहर है।”
माँ के शब्द मिष्टू के दिल में उतर गए, जैसे गर्मी में ठंडी फुहार। उसकी नाराज़गी धीरे-धीरें पिघलने लगी। तभी इबू कमरे में आ धमका, उसकी छोटी मुट्ठी में कुछ जकड़ा हुआ था।
इबू ने उत्सुकता से, मिष्टू की ओर देखकर कहा “दीदी! राखी! बांधो! इबू को राखी!” उसने अपनी छोटी कलाई आगे बढ़ा दी। उसकी आँखों में उत्सुकता और प्रेम की चमक थी।
मिष्टू ने इबू की ओर देखा। उसके चेहरे पर क्रेयॉन का एक धब्बा था, उसके बाल बिखरे हुए थे। उसकी नज़र फिर उस सुनहरे रिबन वाले उपहार के डिब्बे पर गई जो उसने ख़ास इबू के लिए चुना था – उसका पसंदीदा चॉकलेट बार और एक छोटी सी रोबोट कार। ‘रिफंड’ का ख्याल अब बेमानी लगा। माँ की बातें उसके मन में गूँज रही थीं – काँटों के बीच भी फूल खिलते हैं।
मिष्टू ने एक गहरी सांस लेते हुए, मुस्कुराते हुए कहा “हाँ छोटू, आ जाओ। दीदी तुम्हें राखी बांधेगी।”
वह उठी, उपहार का डिब्बा उठाया, और इबू के पास गई। उसे गोद में बिठाया। इबू का चेहरा खुशी से चमक उठा। मिष्टू ने प्यार से राखी उसकी कलाई पर बाँधी, साथ ही एक मीठा चुंबन लगाया।
मिष्टू:”ये लो, तुम्हारे लिए गिफ्ट भी।”
इबू डिब्बा खोलते ही खुशी से चिल्लाया”वाह! कार! चॉकलेट! दीदी आप बहुत अच्छी हो! बहुत प्यारी हो” उसने मिष्टू को जोर से गले लगा लिया। उस छोटे से, गर्मजोशी भरे आलिंगन में मिष्टू को वो सब कुछ महसूस हुआ जो शब्दों से परे था – असीम प्रेम, अटूट विश्वास, एक ऐसा बंधन जो तंग करने वाले क्षणों से कहीं ऊपर था।
उस पल मिष्टू को जीवन की एक गहरी सच्चाई का एहसास हुआ। जीवन में हर चीज एकदम परफेक्ट नहीं होती। प्रार्थनाओं का उत्तर हमेशा हमारी कल्पना के अनुरूप नहीं आता। सच्चा प्रेम सिर्फ मीठी बातों और आसान पलों में नहीं, बल्कि झुंझलाहट, समझौते, और क्षमा में भी निहित होता है। इबू उसका ‘टॉर्नेडो’ ही था, लेकिन वही उसकी दुनिया को रोशन करने वाली चिंगारी भी था। भगवान ने उसे जो दिया था, वह एकदम सही था – खट्टे-मीठे स्वादों से भरा, असली और अमूल्य।
राखी का धागा सिर्फ कलाई पर नहीं बंधा था, वह दो भाई-बहनों के दिलों को फिर से जोड़ने वाली भावनाओं की डोर बन गया था – जीवन की अधूरी परिपूर्णता का साक्षात्कार। और मिष्टू जान गई, कुछ उपहार जीवन भर रिटर्न नहीं किए जा सकते, क्योंकि वे ही तो असली जीवन की धड़कन होते हैं।
डॉ० मनीषा भारद्वाज
ब्याड़ा (पंचरूखी ) पालमपुर
हिमाचल प्रदेश
Dr Manisha Bhardwaj