राज को राज रहने दो – डॉ बीना कुण्डलिया :

आज रेखा सवेरे सवेरे जल्दी उठ गई उसको बाजार जाना था बहुत सामान जो खरीदना उठकर बिस्तर में बैठे बैठे सोचने लगी जल्दी से घर के काम निपटा सीधे बाजार की तरफ निकल जाऊंगी दरअसल उसे आज ही शाम की ट्रेन से अपने मायके के लिए निकलना था। राखी का त्यौहार जो था साल में एक बार मायके जाना होता है शादी हुई तब शुरू शुरू में दो तीन बार चक्कर लग ही जाया

करते थे। तब माँ बाबूजी थे उनसे मिलने का मोह खिंच ले जाता था। दस काम छोड़कर चली जाया करती थी। अब तो वो रहे नहीं भाई भाभी है ऐसा नहीं की वो बुलाते नहीं फोन करके अक्सर कहते रहते आ जाओ मिलने अनेक बार खुद भी आ जाते मगर क्या करूं ?  रेखा ने खुद को ही जवाब दिया अपना ऑफिस पति का ऑफिस बच्चों का स्कूल सास ससुर की देखभाल बड़ा मुश्किल हो जाता

बाहर जाने का कार्यक्रम बनाना। अभी रेखा सब सोच ही रही उसने बिस्तर छोड़ा ही नहीं था कि सासूमां ने आवाज लगाई अरे रेखा उठ गई हो क्या ? कल रात कह कर सोई थी सुबह जल्दी न उठी तो आकर उठा देना। रेखा ने जवाब दिया हाँ मम्मी जी उठ गई बस आ ही रही हूँ ।

रेखा ने जल्दी जल्दी नहा धोकर नाश्ता पानी तैयार किया पति ऑफिस के लिए निकले और वो भी निकल पड़ी बाजार की तरफ सोचती दौपहर खाने तक सब निपटा ही देगी । उसने अपने और बच्चों के लिए पति के लिए व भाई के बच्चों के लिए सुन्दर सुन्दर कपड़े बच्चों के लिए खिलौने खरीदे सास ससुर के लिए ताजा फल खरीद घर वापस आ गई ।

सासूमां ने देखा बहु रेखा कितना सामान खरीद लाई तो बोली दिखाना क्या क्या खरीद लाई हो ?

रेखा दिखाना तो नहीं चाहती थी मगर सासूमां की जिद के कारण उसे दिखाना पड़ा ‌सासूमां ने उसके भाई के बच्चों के लिए खरीदें कपड़े हाथ में उठाये और बोली अच्छा ये कपड़े तो बहुत सुन्दर हैं अपनी ननद के बच्चों के लिए लाई हो अच्छा किया बहुत अच्छा किया कल आ रही है वो,मैं ऐसा करती हूँ इनको अपने कमरे में ही रख लेती हूँ संभालकर।

 रेखा ने सासूमां को कहना चाहा मम्मी जी सुनिए ये कपड़े तो … मगर सासूमां उसकी बात सुने बगैर ही अपने कमरे में चली गईंं । रेखा को बहुत गुस्सा आता है वो अपनी सासूमां की इस आदत को अच्छे से जानती थी तभी वो कपड़े दिखाना नहीं चाहती थी। कहती हैं ये सासूमां भी न … अरे ननद आ रही है

पहले बताना चाहिए उनके बच्चों के लिए भी कपड़े मंगवाने है बता देंती तो वो दो जोड़ी कपड़े और ले आती। एक तो सभी बच्चे हम उम्र है एक एक दो साल का ही अन्तर है सब मे। अब वो कर भी क्या सकती थीं ? दुबारा बाजार भी नहीं जा सकती थी इतना समय नहीं उसके पास शाम को मायके जाने के लिए ट्रेन भी पकड़नी है । मन मसोस कर रह जाती है।

रेखा जल्दी जल्दी दौपहर के खाने की तैयारी कर निपटा अपने कमरे में आकर अटैची तैयार करने लगती है और साथ ही साथ बड़बड़ाती है उसे रह-रह कर अपनी खरीदारी का ख्याल आने लगता है। कितने अरमानों से उसने भाई के बच्चों लिए कपड़े खरीदे थे । अब ऐसा भी नहीं हो सकता पैसे रख दूं

हाथ में भाई के बच्चों के भाभी बिल्कुल नहीं मानेंगीँ एकदम वापस कर देतीं है और ये सासूमां को पता था वो मायके जा रही है वो कपड़े भतीजे भतीजी के लिए है फिर भी ऐसे उठा कर चलती बनी ये क्या बात हुई भला…

रेखा अटैची तैयार करती रही और गुस्से से एकदम चेहरा लाल होता रहा तभी उसके पति रवि ऑफिस से लौट कमरे में प्रवेश करते हैं। रेखा का मुंह गुस्से से लाल उसका मूड खराब देख कर बोलते हैं अरे जानेमन क्या बतायेगीँ ? ये हसीन चेहरे की हवाईया क्यों उड़ गई है आज ? 

रेखा के पति रवि हसीन मिजाज खुशनुमा स्वभाव के इंसान जिनकी बात पर रेखा हंस हंस कर लोटपोट हो जाती थी मगर आज उसने बस एक नजर भर गुस्से से पति को देखा। रवि एक बार तो सकपका गया बोला लगता है मामला कुछ ज्यादा ही गम्भीर है।

पति की बात से रेखा की आँखों में आँसू आ जाते हैं। उसने सुबकते हुए सारी बातें पति को बताई रवि बोले रेखा इसमें परेशान होने की जरूरत ही क्या है ? मम्मी की आदत तुम अच्छी तरह से जानती ही हो ।

तुम ऐसा करो, भाई के बच्चों के लिए वहीं मायके जाकर जी भर शापिंग कर लेना इससे बच्चों को भी उनकी पसंद का सामान मिल जायेगा और हाँ पैसो की कमी हो तो मेरा कार्ड ले जाओ आराम से शौपिंग कर लेना घूमना फिरना । पति की बात से रेखा का थोड़ा गुस्सा शांत हुआ वो बोली ये भी ठीक है फिर भी मम्मी जी ये आदत आखिर कब तक झेलनी पड़ेगी मुझे ? 

रवि बोला तुम परेशान मत होओ कल दीदी आ रहीं हैं मैं उनसे बात करूंगा सब समझा दूंगा वो बहुत समझदार हैं अपने हिसाब से मम्मी को समझा देंगी ‌। रेखा ने खुशी से रवि की तरफ देखा क्या सच में दीदी समझा देंगी । हाँ, हाँ बिल्कुल समझा देंगी । तुम खुशी खुशी जाओ और हाँ दो दिन बाद लौट आओगी न रवि बोला। दीदी के साथ भी एक दिन गुजार लेना बहुत दिनों बाद आ रही है। चली जायेगी दो चार दिन में वो भी। 

हाँ छुट्टी ही कहा हैं मुश्किल से मिली ये भी एक दिन दीदी के साथ भी बिता लुंगी रेखा बोली।

निश्चित समय पर रेखा मायके पहुंच भाभी और बच्चों के साथ खूब शापिंग करती है। और दो दिन बाद ससुराल वापस आ जाती है। ससुराल में ननद मीता उससे खूब स्नेह पूर्वक मिलती है। वो स्वभाव से बहुत नरम मान सम्मान देने वाली होती है। बताती है वो हफ्ते भर के लिए रहने आई है घर का वातावरण सुखद पता ही नहीं चलता दो चार दिन कैसे गुजर जाते हैं आज रेखा थोड़ा जल्दी ऑफिस से घर आ जाती है ननद कल जाने वाली है ताकि ज्यादा समय उनके साथ बिता सके।  

तभी ननद मीता सभी के सामने रेखा से कहती हैं भाभी चलो बाजार घूमने चलते हैं आज ।

 वो क्या है… मैं, आपके बच्चों के लिए कपड़े खिलौने कुछ भी न ला सकी । 

मैंने खरीदे तो थे मगर मेरी सासूमां ने एन वक्त पर सभी खरीदे कपड़े अपनी बेटी मेरी ननद के बच्चों के लिए रख लिये अब मेरे पास ज्यादा समय नहीं था तो सोचा यही शापिंग कर लुंगी। 

ननद की बात सुनकर रेखा एक बार सासूमां के चेहरे की तरफ देखती है दूसरी बार ननद मीता के चेहरे की तरफ। सासूमां के चेहरे पर हवाईयां उड़ रही होती हैं। चेहरे पर आते रंग बिरंगे भाव आसानी से पढ़े जा सकते थे। ऐसा लग रहा जैसे उन्होंने कोई अपराध कर दिया हो वो अपराध बोध से ग्रसित कमरे से बाहर जाने के लिए मुड़ती है और जाते जाते एक नजर बहु रेखा की तरफ देखती है… क्षमा याचना भरी नज़र से मानों कह रही हो- “बहु राज को राज ही रहने देना मेरी बेटी के आगे कुछ मत बोलना” रेखा सासूमां के हाव-भाव देख सब समझ जाती है।

 वो अपनी ननद से कहती हैं लेकिन दीदी मेरी सासूमां तो बहुत अच्छी है वो मेरे साथ कभी ऐसा नहीं करतीँ पहले ही बता देती है क्या मंगवाना है मैं वैसे ही उसी हिसाब से शापिंग कर लाती हूँ । 

चलो दीदी हम चलते हैं घूमने शाम का खाना भी बाहर ही खाते हैं आज, माँ बाबू जी के लिए पैक करवा लायेंगे। और निकल पड़ते हैं सैर सपाटे पर 

दोनों खरीदारी कर हंसते खिलखिलाते वापस लौटती हैं। सासूमां कृतज्ञता भरी नज़र से बहू रेखा की तरफ देखती है। और ननद मीता भी रेखा की तरफ देखकर हौले से इस कदर  मुस्कुराती है।  मुस्कुराहट ऐसी जैसे किसी राज की बात राज रहने देने पर होती है तीखी पैनी सन्देह भरी नजर के साथ… वो भीतर ही भीतर सन्तुष्ट हो जाती है उसको बहुत अच्छी भाभी मिली है जो उसकी माँ की

इज्जत सम्मान का कितने अच्छे से ख्याल करती है। फिर तो घर में खुशी का माहौल बन जाता है सभी बच्चे अपनी अपनी पसंद के कपड़े, खिलौने लेकर इधर दौड़ते एक दूसरे को दिखाते मस्ती करने लगे और सभी घर के बड़े आपस में बतियाते चुहलबाज़ी करने प्रसन्न चित्त नजर आने लगे।

लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया 

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