प्यारी सहेली – माता प्रसाद दुबे : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : गीता बहुत खुश थी..दो साल बाद उसकी प्यारी सहेली सुधा अपने ससुराल से वापस अपने घर आई थी। सुधा का दो साल पहले एक सम्पन्न परिवार में ब्याह हुआ था। उसके पति राजपत्रित अधिकारी थे। उसका जीवन खुशियों से परिपूर्ण था।

गीता सुधा के घर पहुंच चुकी थी..अपनी प्यारी सहेली से मिलने के लिए। “चाची चाची! गीता दरवाजा खटखटाते हुए बोली।”कौन है?”घर के अंदर से सुधा की मां की आवाज आई।”अरे चाची..मैं हूं गीता” वह जोर से बोली।”आओ गीता बैठो कैसी हो बेटी?”सुधा की मां दरवाजा खोलकर गीता को बैठने का इशारा करते हुए बोली।

” ठीक हूं चाची..सुधा कहा है?”गीता उत्सुकता से अंदर कमरे की ओर देखते हुए बोली।”सुधा सो रही है बेटी..सफर करके आई है..वह थकी हुई है..इसलिए सो रही है” सुधा की मां हड़बड़ाते हुए बोली..जैसे वह कुछ छुपाने का प्रयास कर रही थी। “अच्छा चाची उसे सोने दीजिए..उसे शाम को मेरे घर भेज दीजिएगा..उसे मैं बुलाने आई थी बता दीजियेगा?”कहकर गीता घर से बाहर निकल पड़ी।

गीता वापस गुमसुम उदास अपने घर जा रही थी।वह जान चुकी थी..कि चाची उससे झूठ बोल रही थी। अंदर से सुधा के धीरे-धीरे बोलने की आवाज आ रही थी। वह अपने छोटे भाई से कुछ कह रही थी। उसने जान समझकर उससे न मिलने के लिए अपनी मां को कहकर भेजा था..कि वह सो रही है।

रात के आठ बज रहे थे। सुधा बार-बार अपने घर के बाहर की ओर सुधा के आने की राह देख रही थी..मगर सुधा नहीं आई। “क्या उसकी प्यारी सहेली बदल चुकी थी..यह वही उसकी सहेली है..जो अपने घर के लोगों से ज्यादा उसके साथ रहती थी..

जो हमेशा बड़े सपने देखती थी जीवन में..धन दौलत गाड़ी बंगला वाले घर में जाते ही उसे इतना अहंकार हो गया कि वह अपनी बचपन की गरीब घर की सहेली से मिलने में भी अपना अपमान समझती है”गीता दुख के गहरे सागर में डूब चुकी थी।

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उसकी आंखों से आंसू टपक रहे थे। उसने भी अपने सम्मान की खातिर यह प्रण कर लिया था कि वह कभी भी सुधा के घर किसी से भी मिलने नहीं जाएगी न किसी से कभी बात करेगी।



एक साल बीत चुका..गीता पूरी तरह सुधा को भूल चुकी थी। गीता के मोहल्ले की सड़क पर काफी उथल-पुथल मची हुई थी।काफी लोग उसकी सहेली सुधा के घर की तरफ जा रहे थे। कुछ देर पहले तीन चार गाडियां और पुलिस के जवान भी उधर ही गये थे।

गीता का मन आशंकित हो रहा था। किसी अनहोनी की आहट से उसका मन भयभीत हो रहा था। सब-कुछ भूलकर उसके कदम सुधा के घर की तरफ चल पड़े।

सुधा के घर के आगे काफी भीड़ जुट चुकी थी। सुधा के पति और चाचा सुधा के पापा दो पुलिसकर्मियों के साथ गाड़ी में बैठे थे। सीबीआई के जांच दल का सुधा के घर के अंदर तलाशी अभियान चल रहा था।”अरे क्या हुआ है भैया?

“गीता ने वहा पर मौजूद एक व्यक्ति से पूछा।”करोड़ों रुपए का काला धन मिला है.. चाचा के दामाद के शहर वाले घर में और यहा अपनी ससुराल में भी करोड़ों रुपए छुपा कर रखा है..उसी की तलाशी हों रही है..बहुत बड़ा चोर है?

” वह व्यक्ति गुस्साते हुए गीता से बोला। थोड़ी देर बाद सीबीआई का दल सुधा के पति भाई और पिता को साथ लेकर वहां से जा चुका था। भीड़ छट चुकी थी..लोग सुधा के पति और उनके घरवालों को गालियां दे रहे थे।

सुधा गुमसुम बदहवास अवस्था में एक जगह बुत की तरह खड़ी होकर अपने सामने सड़क की ओर देख रही थी। चाची दहाड़े मारकर रोये जा रही थी। गीता चाहकर भी कुछ नहीं बोली और चुपचाप वहां से जाने लगी।

तभी सुधा के जोर-जोर से रोने की आवाज आने लगी।”मेरी बहन गीता मुझे छोड़कर मत जाओ?”सुधा गीता को रोकते हुए बोली। गीता सुधा की ओर देखकर भी खामोश रही।”गीता मुझसे बोलोगी नहीं..जिस दौलत ऐशो आराम की जिंदगी पाकर मैं अहंकार घमंड में डूबकर अपनी बहन जैसी प्यारी सहेली को भूल चुकी थी..

आज मेरा अहंकार कांच की तरह टूटकर बिखर चुका है..आज मेरे पास कुछ भी नहीं बचा है,धन,दौलत,बंगला गाड़ी, जब्त हो चुका है..पति,पिता, ससुर,भाई,सब सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं..बेईमानी की दौलत पर मुझे इतना घमंड था कि मैं खुद को सबसे अलग श्रेष्ठ समझ बैठी थी..अब कुछ भी नहीं बचा सब खत्म हो चुका है..

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मैं श्रेष्ठता की जंग हार चुकी हूं.. मैं अपनी प्यारी सहेली को हारकर खोना नहीं चाहती.. मुझे माफ़ कर दो गीता?”कहकर सुधा बेहोश हो गई। गीता की आंखों से आंसू टपक रहे थे। वह अपनी प्यारी सहेली की ऐसी हालत देखकर उसे छोड़कर नहीं जा सकती थी जिसकी दुनिया बसकर एक झटके में उजड़कर खाक हो चुकी थी।

#अहंकार 

माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित लखनऊ

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